भरतपुर का सफर
भरतपुर - यहाँ, पक्षियों के साथ व्यक्तिगत हो सकते हैं आप
भरतपुर भारत का एक जाना माना पर्यटन गंतव्य है। इसे राजस्थान का पूर्वी द्वार भी कहा जाता है और यह राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित है। यह एक प्राचीन शहर है जिसका निर्माण वर्ष 1733 में महाराजा सूरजमल ने करवाया था। इस शहर का नाम हिंदुओं के भगवान राम के भाई भरत के नाम पर पड़ा।
भगवान राम के भाई लक्ष्मण की भी भरतपुर में पारिवारिक भगवान के रूप में पूजा की जाती है। भरतपुर को लोहगढ़ भी कहा जाता है क्योंकि यह जयपुर, उदयपुर, जैसलमेर और जोधपुर जैसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों के लिए एक मार्ग के रूप में कार्य करता है। भरतपुर जिला हरियाणा, उत्तर प्रदेश, धौलपुर, करौली, जयपुर और अलवर से लगा हुआ है।
पक्षियों के लिए स्वर्ग
पक्षी उत्सुकों का स्वर्ग भरतपुर विश्व में अपने राष्ट्रीय उद्यान के लिए प्रसिद्द है। यह उद्यान लगभग 375 प्रकार के पक्षियों का प्राकृतिक आवास है। इस उद्यान की सैर के लिए सबसे उत्तम समय ठंड और मानसून के मौसम हैं। प्रवासी जलपक्षी जैसे सिर पर पट्टी और ग्रे रंग के पैरों वाली बतख, कुछ अन्य पक्षी जैसे पिनटेल बतख, सामान्य छोटी बतख, रक्तिम बतख, जंगली बतख, वेगंस, शोवेलेर्स, सामान्य बतख, लाल कलगी वाली बतख, और गद्वाल्ल्स को आमतौर पर जंगल में देखा जाता है।
वास्तुकला शैलियों का एक मिश्रण
भरतपुर में स्मारकों की वास्तुकला राजपूत, मुगल और ब्रिटिश स्थापत्य शैली के प्रभाव को दर्शाती है। लोह्गढ़ किला राजस्थान राज्य के जानी माने किलों में से एक है। पर्यटक शहर में डीग किला, भरतपुर महल, गोपाल भवन और सरकारी संग्रहालय भी देख सकते हैं। इसके अलावा, बांकेबिहारी मंदिर, गंगा मंदिर और लक्ष्मण मंदिर भरतपुर के कुछ प्रमुख धार्मिक स्थान हैं।
भरतपुर पहुँचना
इस सुंदर गंतव्य स्थान तक वायुमार्ग, रेलमार्ग और रास्ते से आसानी से पहुँचा जा सकता है। पर्यटक दिल्ली के इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से टैक्सी या बस द्वारा इस स्थान तक आसानी से पहुँच सकते हैं। यह हवाई अड्डा प्रमुख भारतीय शहरों जैसे मुंबई, बंगलुरु, कोलकाता और चेन्नई से नियमित उड़ानों द्वारा जुड़ा हुआ है। भरतपुर रेलवे स्टेशन जयपुर, मुंबई, अहमदाबाद और दिल्ली से जुड़ा हुआ है। पर्यटक भरतपुर पहुँचने के लिए स्टेशन से बस या टैक्सी ले सकते हैं। विभिन्न शहरों जैसे आगरा, नई दिल्ली, फतेहपुर सीकरी, जयपुर और अलवर से भरतपुर के लिए राज्य परिवहन की तथा निजी बसें भी उपलब्ध हैं।
थार मरुस्थल के पास स्थित होने के कारण भरतपुर की जलवायु चरम होती है। भरतपुर की सैर के लए ठंड और मानसून का मौसम उपयुक्त होता है।
डीग किला, भरतपुर
भरतपुर से 35 किमी. की दूरी पर स्थित डीग किले का निर्माण महाराजा सूरजमल ने 1730 में करवाया था। यह किला डीग शहर में स्थित है जो जाट राजाओं की पूर्व राजधानी था।किले का केंद्रीय बुर्ज एक बुलंद ऊंचाई पर स्थित है, जिसके चारों ओर एक संकरी नहर है। एक 8 किमी. लंबी दीवार इस किले की सीमा बनाती है। इस किले में 12 बुर्ज हैं जिसमें लाखा बुर्ज सबसे बड़ा है। लाखा बुर्ज किले के उत्तरी पश्चिमी कोने में स्थित है। बंगालदार स्थापत्य शैली में बनी हुई सूरजमल हवेली किले का एक महत्वपूर्ण भाग है। किले में एक उद्यान है जो उद्यानों की पारसी शैली “चारबाग” शैली में बना हुआ है। इस किले का आंतरिक भाग अब अवशेष मात्र है। डीग महल डीग किले के बगल में स्थित है। यह महल कई महलों का समूह है जिसमें पुराना महल, शीशमहल, सूरज भवन, नन्द भवन, किशन भवन, केशव भवन और गोपाल भवन शामिल हैं।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर का सर्वाधिक प्रसिद्द पर्यटन आकर्षण है। यह पार्क जिसे केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान भी कहा जाता है, का निर्माण लगभग 250 वर्ष पहले महाराजा सूरजमल ने करवाया था। 1964 में जब तक यह उद्यान पक्षी अभयारण्य के रूप में स्थापित नहीं हुआ था तब तक भरतपुर के महाराजा इस उद्यान का उपयोग बतखों के शिकार के लिए
निजी स्थान के रूप में किया करते थे। 1982 में भरतपुर पक्षी अभ्यारण्य को राष्ट्रीय पार्क घोषित कर दिया गया और इसका नाम केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान रखा गया। वर्ष 1985 में यूनेस्को ने इस उद्यान विश्व विरासत स्थान की मान्यता दी। प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में पर्यटक इस लोकप्रिय राष्ट्रीय उद्यान की सैर करने के लिए आते हैं। वर्तमान में इस पार्क में कछुओं की 7 किस्में, मछलियों की 50 किस्में और उभयचरों की 5 किस्में पाई जाती हैं। इसके अलावा यह उद्यान पक्षियों की लगभग 375 किस्मों का प्राकृतिक आवास है। मानसून के मौसम के दौरान देश के प्रत्येक भागों से पक्षियों के झुंड यहाँ आते हैं। पानी में पाए जाने कुछ पक्षी जैसे सिर पर पट्टी और ग्रे रंग के पैरों वाली बतख, कुछ अन्य पक्षी जैसे पिनटेल बतख, सामान्य छोटी बतख, रक्तिम बतख, जंगली बतख, वेगंस, शोवेलेर्स, सामान्य बतख, लाल कलगी वाली बतख, और गद्वाल्ल्स यहाँ पाए जाते हैं। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटक अन्य पक्षी जैसे शाही गिद्ध, मैदानी गिद्ध, पीला भूरा गिद्ध, धब्बेदार गिद्ध, हैरियर गिद्ध और सुस्त गिद्ध देख सकते हैं। पक्षियों के अलावा पर्यटक जानवर जैसे काला हिरन, पायथन, साम्बर, धब्बेदार हिरण और नीलगाय देख सकते हैं। केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर से बस और ऑटोरिक्शा से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है; विशेष अनुरोध पर विद्युत गाडियां भी उपलब्ध हैं। हालांकि इस पार्क की सैर का सबसे अच्छा तरीका यह है कि पैदल, साईकिल या साईकिल रिक्शे द्वारा इसकी सैर की जाए। इच्छुक पर्यटक उद्यान अधिकारियों की अनुमति से किफ़ायती दाम पर किराये की साईकिल ले सकते हैं।
बंध बरेठा, भरतपुर
बंध बरेठा एक पुराना वन्यजीव आरक्षित क्षेत्र है। यह भरतपुर शहर से 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस रिज़र्व में पर्यटक कुछ शानदार वन्यजीव प्रजातियां जैसे तेंदुआ, चीतल, सांभर, नीले बैल, जंगली सूअर और बिज्जू देख सकते हैं। इसके अलावा यह वन्यजीव आरक्षित क्षेत्र पक्षियों के लगभग 200 किस्मों का घर है। इस रिज़र्व में एक बाँध है जो ककुंड नदी के ऊपर बना हुआ है। इस महल के निर्माण कार्य का प्रारंभ 1866 में महाराजा जसवंत सिंह ने करवाया था। हालांकि इस बाँध का निर्माण कार्य 1897-88 में महाराजा राम सिंह के शासनकाल के दौरान पूर्ण हुआ। इस रिज़र्व में एक प्राचीन महल भी है जो भरतपुर के शाही परिवार का है।
भरतपुर महल, भरतपुर
भरतपुर महल मुगल और राजपूत स्थापत्य शैली के मिश्रण को दर्शाता है। इस महल के कक्ष के फर्श जटिल डिज़ाइन वाली टाइल्स से सुसज्जित हैं। महल के मुख्य खंड को एक संग्रहालय में बदल दिया गया है जो ईसा पश्चात दूसरी शताब्दी के कुछ अवशेषों को प्रदर्शित करता है। यह संग्रहालय इस क्षेत्र की कलात्मक संस्कृति की मिसाल है।
गंगा मंदिर, भरतपुर
गंगा मंदिर भरतपुर में एक लोकप्रिय मंदिर है। इस मंदिर के निर्माण कार्य का प्रारंभ महाराजा बलवंत सिंह ने 1845 में किया था, हालांकि यह लगभग 90 वर्षों में पूरा हुआ। इस मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने पर महाराजा बलवंत सिंह के पांचवें उत्तराधिकारी बृजेन्द्रसिंह ने इस मंदिर में देवी गंगा नदी की मूर्ति की स्थापना की। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राज्य के सभी कर्मचारियों के एक महीने के वेतन से किया गया था। इस मंदिर की संरचना राजपूत, मुगल और द्रविड़ स्थापत्य शैलियों का एक समामेलन दर्शाती है। इस मंदिर की दीवारें और स्तंभ मनोरम और आनंदप्रद नक्काशियों से सुसज्जित हैं। इस मंदिर के मुख्य आकर्षण भगवान कृष्ण, लक्ष्मी नारायण और शिव पार्वती की मूर्तियां हैं। गंगासप्तमी और गंगा दशहरा के अवसर पर बड़ी संख्या में भक्त यहाँ आते हैं।
बांकेबिहारी मंदिर, भरतपुर
भरतपुर शहर के ह्रदय में स्थित बांके बिहारी मंदिर भारत के प्रसिद्द मंदिरों में से एक है। यह शानदार मंदिर हिंदू भगवान कृष्ण को समर्पित है। मंदिर के मुख्य कक्ष में भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी राधा की मूर्ति है। कक्ष की ओर जाने वाले रास्ते में भगवान कृष्ण के बचपन के चित्र लगे हुए हैं। इस मंदिर की दीवारों और छत पर विभिन्न देवताओं के चित्र लगे हुए हैं। इस मंदिर का डिज़ाइन ब्रज स्थापत्य शैली को दर्शाता है। यात्री स्थानीय वाहनों का उपयोग करके इस मंदिर टक पहुँच सकते हैं।
सरकारी संग्रहालय, भरतपुर
सरकारी संग्रहालय भरतपुर में एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है। यह लोह्गढ़ किले के अंदर स्थित है। यह संग्रहालय भरतपुर की ऐतिहासिक संपत्ति के शानदार संचयन का प्रदर्शन करता है। यह इमारत जो आज एक संग्रहालय है भरतपुर के शासकों का प्रशासनिक खंड हुआ करती थी। 1944 में प्रशासनिक खंड कचहरी कलां को संग्रहालय में बदल दिया गया। बाद में इस इमारत की पहली मंजिल कमरा खास को भी संग्रहालय में जोड़ा गया। इन इमारतों का निर्माण महाराजा बलवंत सिंह ने 19 वीं शताब्दी के दौरान किया था। यह संग्रहालय प्राचीन मूर्तियों, चित्रों, सिक्कों, शिलालेखों, सिक्कों, प्राणी नमूनों, सजावटी कला वस्तुओं और जाट शासकों द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले हथियारों का दुर्लभ संचयन प्रस्तुत करता है। इस संग्रहालय की आर्ट गैलरी में लिथो पेपर, अभ्रक और पीपल के पत्तों पर बने लघु चित्र दिखाए गए हैं। यह संग्रहालय भरतपुर के मुख्य बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन से केवल 4 किमी. की दूरी पर है।
लक्ष्मण मंदिर, भरतपुर
लक्ष्मण मंदिर भरतपुर का एक प्रमुख तीर्थ है जो माना जाता है कि 400 साल पुराना है। यह मंदिर राजस्थानी स्थापत्य शैली की मिसाल है। इस मंदिर के दरवाज़े, छत, स्तंभ, दीवारें और मेहराब पठार के शानदार काम से सुसज्जित हैं। यह मंदिर भरतपुर शहर के केंद्र में स्थित है और हिंदू भगवान राम के भाई लक्ष्मण को समर्पित है। एक किवदंती के अनुसार इस मंदिर का निर्माण एक साधु “नागा बाबा” ने किया था। इस मंदिर के पास एक अन्य लक्ष्मण मंदिर स्थित है। यह मंदिर भी लक्ष्मण को समर्पित है और इसका निर्माण 1870 में महाराजा बलदेव सिंह के शासनकाल में हुआ था। यह मंदिर बलुआ पत्थर और संगमरमर से बनाया गया है। यह मंदिर भगवान राम, लक्ष्मण, उर्मिला, भारत, शत्रुघ्न और हनुमान की अष्टधातु की मूर्तियों के लिए प्रसिद्द है। शहर के किसे भी भाग से दोनों मंदिरों तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।
गोपाल भवन, भरतपुर
गोपाल भवन कलात्मक रूप से बनी हुई एक इमारत है जिसका निर्माण 1760 में हुआ था। इमारत के प्रवेश द्वार पर एक सुंदर उद्यान है। इमारत के पिछले भाग में गोपाल सागर है जो दो छोटे मंडपों सावन और भादों से बंधा हुआ है। उद्यान के आगे एक उठी हुई छत है जिसमें संगमरमर का एक मेहराब है। यह मेहराब जाट राजा महाराजा सूरजमल द्वारा मुगलों से एक युद्ध जयचिन्ह के रूप में लाया गया और एक आसन पर रखा गया।
गोपाल भवन के परिसर में एक दावत कक्ष है। यह कक्ष प्राचीन वस्तुओं, स्मृति चिन्ह और विक्टोरियन फर्नीचर (गृह सज्जा का सामान) के दुर्लभ संग्रह को प्रदर्शित करता है। कक्ष के ऊपर से देखने पर सुंदर फुहारों से घिरा हुआ धंसा हुआ एक छोटा तलब दिखाई देता है। भरतपुर के किसी भी भाग से गोपाल भवन तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।
लोह्गढ़ किला, भरतपुर
लोहागढ़ किले का निर्माण 18वीं शताब्दी के आरंभ में जाट शासक महाराजा सूरजमल ने करवाया था। यह किला भरतपुर के जाट शासकों की हिम्मत और शौर्य का प्रतीक है। अपनी सुरक्षा प्रणाली के कारण यह किला लोहागढ़ के नाम से जाना गया। किले के चारों और गहरी खाइयां हैं जो इसे सुरक्षा प्रदान करती हैं। यद्यपि लोहागढ़ किला इस क्षेत्र के अन्य किलों के समान वैभवशाली नहीं हैं लेकिन इसकी ताकत और भव्यता अद्भुत है। किले के अंदर महत्वपूर्ण स्थान हैं: किशोरी महल, महल खास, मोती महल और कोठी खास। सूरजमल ने मुगलों और अंग्रेजों पर अपनी जीत की याद में किले के अंदर जवाहर बुर्ज और फतेह बुर्ज बनवाए। यहां अष्टधातु से निर्मित एक द्वार भी है जिसमें हाथियों के विशाल चित्र बने हुए हैं।
भरतपुर- एक नजर में
राज्य: राजस्थान
क्षेत्रफल: 22 वर्ग किमी।
समुद्र तल से ऊंचाई: 250 मीटर
भाषा: राजस्थानी, हिंदी, अंग्रेजी
कब जाएं: अक्टूबर से फरवरी
एसटीडी कोड: 05644
भरतपुर भारत का एक जाना माना पर्यटन गंतव्य है। इसे राजस्थान का पूर्वी द्वार भी कहा जाता है और यह राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित है। यह एक प्राचीन शहर है जिसका निर्माण वर्ष 1733 में महाराजा सूरजमल ने करवाया था। इस शहर का नाम हिंदुओं के भगवान राम के भाई भरत के नाम पर पड़ा।
भगवान राम के भाई लक्ष्मण की भी भरतपुर में पारिवारिक भगवान के रूप में पूजा की जाती है। भरतपुर को लोहगढ़ भी कहा जाता है क्योंकि यह जयपुर, उदयपुर, जैसलमेर और जोधपुर जैसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों के लिए एक मार्ग के रूप में कार्य करता है। भरतपुर जिला हरियाणा, उत्तर प्रदेश, धौलपुर, करौली, जयपुर और अलवर से लगा हुआ है।
पक्षियों के लिए स्वर्ग
पक्षी उत्सुकों का स्वर्ग भरतपुर विश्व में अपने राष्ट्रीय उद्यान के लिए प्रसिद्द है। यह उद्यान लगभग 375 प्रकार के पक्षियों का प्राकृतिक आवास है। इस उद्यान की सैर के लिए सबसे उत्तम समय ठंड और मानसून के मौसम हैं। प्रवासी जलपक्षी जैसे सिर पर पट्टी और ग्रे रंग के पैरों वाली बतख, कुछ अन्य पक्षी जैसे पिनटेल बतख, सामान्य छोटी बतख, रक्तिम बतख, जंगली बतख, वेगंस, शोवेलेर्स, सामान्य बतख, लाल कलगी वाली बतख, और गद्वाल्ल्स को आमतौर पर जंगल में देखा जाता है।
वास्तुकला शैलियों का एक मिश्रण
भरतपुर में स्मारकों की वास्तुकला राजपूत, मुगल और ब्रिटिश स्थापत्य शैली के प्रभाव को दर्शाती है। लोह्गढ़ किला राजस्थान राज्य के जानी माने किलों में से एक है। पर्यटक शहर में डीग किला, भरतपुर महल, गोपाल भवन और सरकारी संग्रहालय भी देख सकते हैं। इसके अलावा, बांकेबिहारी मंदिर, गंगा मंदिर और लक्ष्मण मंदिर भरतपुर के कुछ प्रमुख धार्मिक स्थान हैं।
भरतपुर पहुँचना
इस सुंदर गंतव्य स्थान तक वायुमार्ग, रेलमार्ग और रास्ते से आसानी से पहुँचा जा सकता है। पर्यटक दिल्ली के इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से टैक्सी या बस द्वारा इस स्थान तक आसानी से पहुँच सकते हैं। यह हवाई अड्डा प्रमुख भारतीय शहरों जैसे मुंबई, बंगलुरु, कोलकाता और चेन्नई से नियमित उड़ानों द्वारा जुड़ा हुआ है। भरतपुर रेलवे स्टेशन जयपुर, मुंबई, अहमदाबाद और दिल्ली से जुड़ा हुआ है। पर्यटक भरतपुर पहुँचने के लिए स्टेशन से बस या टैक्सी ले सकते हैं। विभिन्न शहरों जैसे आगरा, नई दिल्ली, फतेहपुर सीकरी, जयपुर और अलवर से भरतपुर के लिए राज्य परिवहन की तथा निजी बसें भी उपलब्ध हैं।
थार मरुस्थल के पास स्थित होने के कारण भरतपुर की जलवायु चरम होती है। भरतपुर की सैर के लए ठंड और मानसून का मौसम उपयुक्त होता है।
डीग किला, भरतपुर
भरतपुर से 35 किमी. की दूरी पर स्थित डीग किले का निर्माण महाराजा सूरजमल ने 1730 में करवाया था। यह किला डीग शहर में स्थित है जो जाट राजाओं की पूर्व राजधानी था।किले का केंद्रीय बुर्ज एक बुलंद ऊंचाई पर स्थित है, जिसके चारों ओर एक संकरी नहर है। एक 8 किमी. लंबी दीवार इस किले की सीमा बनाती है। इस किले में 12 बुर्ज हैं जिसमें लाखा बुर्ज सबसे बड़ा है। लाखा बुर्ज किले के उत्तरी पश्चिमी कोने में स्थित है। बंगालदार स्थापत्य शैली में बनी हुई सूरजमल हवेली किले का एक महत्वपूर्ण भाग है। किले में एक उद्यान है जो उद्यानों की पारसी शैली “चारबाग” शैली में बना हुआ है। इस किले का आंतरिक भाग अब अवशेष मात्र है। डीग महल डीग किले के बगल में स्थित है। यह महल कई महलों का समूह है जिसमें पुराना महल, शीशमहल, सूरज भवन, नन्द भवन, किशन भवन, केशव भवन और गोपाल भवन शामिल हैं।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर का सर्वाधिक प्रसिद्द पर्यटन आकर्षण है। यह पार्क जिसे केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान भी कहा जाता है, का निर्माण लगभग 250 वर्ष पहले महाराजा सूरजमल ने करवाया था। 1964 में जब तक यह उद्यान पक्षी अभयारण्य के रूप में स्थापित नहीं हुआ था तब तक भरतपुर के महाराजा इस उद्यान का उपयोग बतखों के शिकार के लिए
निजी स्थान के रूप में किया करते थे। 1982 में भरतपुर पक्षी अभ्यारण्य को राष्ट्रीय पार्क घोषित कर दिया गया और इसका नाम केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान रखा गया। वर्ष 1985 में यूनेस्को ने इस उद्यान विश्व विरासत स्थान की मान्यता दी। प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में पर्यटक इस लोकप्रिय राष्ट्रीय उद्यान की सैर करने के लिए आते हैं। वर्तमान में इस पार्क में कछुओं की 7 किस्में, मछलियों की 50 किस्में और उभयचरों की 5 किस्में पाई जाती हैं। इसके अलावा यह उद्यान पक्षियों की लगभग 375 किस्मों का प्राकृतिक आवास है। मानसून के मौसम के दौरान देश के प्रत्येक भागों से पक्षियों के झुंड यहाँ आते हैं। पानी में पाए जाने कुछ पक्षी जैसे सिर पर पट्टी और ग्रे रंग के पैरों वाली बतख, कुछ अन्य पक्षी जैसे पिनटेल बतख, सामान्य छोटी बतख, रक्तिम बतख, जंगली बतख, वेगंस, शोवेलेर्स, सामान्य बतख, लाल कलगी वाली बतख, और गद्वाल्ल्स यहाँ पाए जाते हैं। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटक अन्य पक्षी जैसे शाही गिद्ध, मैदानी गिद्ध, पीला भूरा गिद्ध, धब्बेदार गिद्ध, हैरियर गिद्ध और सुस्त गिद्ध देख सकते हैं। पक्षियों के अलावा पर्यटक जानवर जैसे काला हिरन, पायथन, साम्बर, धब्बेदार हिरण और नीलगाय देख सकते हैं। केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर से बस और ऑटोरिक्शा से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है; विशेष अनुरोध पर विद्युत गाडियां भी उपलब्ध हैं। हालांकि इस पार्क की सैर का सबसे अच्छा तरीका यह है कि पैदल, साईकिल या साईकिल रिक्शे द्वारा इसकी सैर की जाए। इच्छुक पर्यटक उद्यान अधिकारियों की अनुमति से किफ़ायती दाम पर किराये की साईकिल ले सकते हैं।
बंध बरेठा, भरतपुर
बंध बरेठा एक पुराना वन्यजीव आरक्षित क्षेत्र है। यह भरतपुर शहर से 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस रिज़र्व में पर्यटक कुछ शानदार वन्यजीव प्रजातियां जैसे तेंदुआ, चीतल, सांभर, नीले बैल, जंगली सूअर और बिज्जू देख सकते हैं। इसके अलावा यह वन्यजीव आरक्षित क्षेत्र पक्षियों के लगभग 200 किस्मों का घर है। इस रिज़र्व में एक बाँध है जो ककुंड नदी के ऊपर बना हुआ है। इस महल के निर्माण कार्य का प्रारंभ 1866 में महाराजा जसवंत सिंह ने करवाया था। हालांकि इस बाँध का निर्माण कार्य 1897-88 में महाराजा राम सिंह के शासनकाल के दौरान पूर्ण हुआ। इस रिज़र्व में एक प्राचीन महल भी है जो भरतपुर के शाही परिवार का है।
भरतपुर महल, भरतपुर
भरतपुर महल मुगल और राजपूत स्थापत्य शैली के मिश्रण को दर्शाता है। इस महल के कक्ष के फर्श जटिल डिज़ाइन वाली टाइल्स से सुसज्जित हैं। महल के मुख्य खंड को एक संग्रहालय में बदल दिया गया है जो ईसा पश्चात दूसरी शताब्दी के कुछ अवशेषों को प्रदर्शित करता है। यह संग्रहालय इस क्षेत्र की कलात्मक संस्कृति की मिसाल है।
गंगा मंदिर, भरतपुर
गंगा मंदिर भरतपुर में एक लोकप्रिय मंदिर है। इस मंदिर के निर्माण कार्य का प्रारंभ महाराजा बलवंत सिंह ने 1845 में किया था, हालांकि यह लगभग 90 वर्षों में पूरा हुआ। इस मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने पर महाराजा बलवंत सिंह के पांचवें उत्तराधिकारी बृजेन्द्रसिंह ने इस मंदिर में देवी गंगा नदी की मूर्ति की स्थापना की। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राज्य के सभी कर्मचारियों के एक महीने के वेतन से किया गया था। इस मंदिर की संरचना राजपूत, मुगल और द्रविड़ स्थापत्य शैलियों का एक समामेलन दर्शाती है। इस मंदिर की दीवारें और स्तंभ मनोरम और आनंदप्रद नक्काशियों से सुसज्जित हैं। इस मंदिर के मुख्य आकर्षण भगवान कृष्ण, लक्ष्मी नारायण और शिव पार्वती की मूर्तियां हैं। गंगासप्तमी और गंगा दशहरा के अवसर पर बड़ी संख्या में भक्त यहाँ आते हैं।
बांकेबिहारी मंदिर, भरतपुर
भरतपुर शहर के ह्रदय में स्थित बांके बिहारी मंदिर भारत के प्रसिद्द मंदिरों में से एक है। यह शानदार मंदिर हिंदू भगवान कृष्ण को समर्पित है। मंदिर के मुख्य कक्ष में भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी राधा की मूर्ति है। कक्ष की ओर जाने वाले रास्ते में भगवान कृष्ण के बचपन के चित्र लगे हुए हैं। इस मंदिर की दीवारों और छत पर विभिन्न देवताओं के चित्र लगे हुए हैं। इस मंदिर का डिज़ाइन ब्रज स्थापत्य शैली को दर्शाता है। यात्री स्थानीय वाहनों का उपयोग करके इस मंदिर टक पहुँच सकते हैं।
सरकारी संग्रहालय, भरतपुर
सरकारी संग्रहालय भरतपुर में एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है। यह लोह्गढ़ किले के अंदर स्थित है। यह संग्रहालय भरतपुर की ऐतिहासिक संपत्ति के शानदार संचयन का प्रदर्शन करता है। यह इमारत जो आज एक संग्रहालय है भरतपुर के शासकों का प्रशासनिक खंड हुआ करती थी। 1944 में प्रशासनिक खंड कचहरी कलां को संग्रहालय में बदल दिया गया। बाद में इस इमारत की पहली मंजिल कमरा खास को भी संग्रहालय में जोड़ा गया। इन इमारतों का निर्माण महाराजा बलवंत सिंह ने 19 वीं शताब्दी के दौरान किया था। यह संग्रहालय प्राचीन मूर्तियों, चित्रों, सिक्कों, शिलालेखों, सिक्कों, प्राणी नमूनों, सजावटी कला वस्तुओं और जाट शासकों द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले हथियारों का दुर्लभ संचयन प्रस्तुत करता है। इस संग्रहालय की आर्ट गैलरी में लिथो पेपर, अभ्रक और पीपल के पत्तों पर बने लघु चित्र दिखाए गए हैं। यह संग्रहालय भरतपुर के मुख्य बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन से केवल 4 किमी. की दूरी पर है।
लक्ष्मण मंदिर, भरतपुर
लक्ष्मण मंदिर भरतपुर का एक प्रमुख तीर्थ है जो माना जाता है कि 400 साल पुराना है। यह मंदिर राजस्थानी स्थापत्य शैली की मिसाल है। इस मंदिर के दरवाज़े, छत, स्तंभ, दीवारें और मेहराब पठार के शानदार काम से सुसज्जित हैं। यह मंदिर भरतपुर शहर के केंद्र में स्थित है और हिंदू भगवान राम के भाई लक्ष्मण को समर्पित है। एक किवदंती के अनुसार इस मंदिर का निर्माण एक साधु “नागा बाबा” ने किया था। इस मंदिर के पास एक अन्य लक्ष्मण मंदिर स्थित है। यह मंदिर भी लक्ष्मण को समर्पित है और इसका निर्माण 1870 में महाराजा बलदेव सिंह के शासनकाल में हुआ था। यह मंदिर बलुआ पत्थर और संगमरमर से बनाया गया है। यह मंदिर भगवान राम, लक्ष्मण, उर्मिला, भारत, शत्रुघ्न और हनुमान की अष्टधातु की मूर्तियों के लिए प्रसिद्द है। शहर के किसे भी भाग से दोनों मंदिरों तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।
गोपाल भवन, भरतपुर
गोपाल भवन कलात्मक रूप से बनी हुई एक इमारत है जिसका निर्माण 1760 में हुआ था। इमारत के प्रवेश द्वार पर एक सुंदर उद्यान है। इमारत के पिछले भाग में गोपाल सागर है जो दो छोटे मंडपों सावन और भादों से बंधा हुआ है। उद्यान के आगे एक उठी हुई छत है जिसमें संगमरमर का एक मेहराब है। यह मेहराब जाट राजा महाराजा सूरजमल द्वारा मुगलों से एक युद्ध जयचिन्ह के रूप में लाया गया और एक आसन पर रखा गया।
गोपाल भवन के परिसर में एक दावत कक्ष है। यह कक्ष प्राचीन वस्तुओं, स्मृति चिन्ह और विक्टोरियन फर्नीचर (गृह सज्जा का सामान) के दुर्लभ संग्रह को प्रदर्शित करता है। कक्ष के ऊपर से देखने पर सुंदर फुहारों से घिरा हुआ धंसा हुआ एक छोटा तलब दिखाई देता है। भरतपुर के किसी भी भाग से गोपाल भवन तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।
लोह्गढ़ किला, भरतपुर
लोहागढ़ किले का निर्माण 18वीं शताब्दी के आरंभ में जाट शासक महाराजा सूरजमल ने करवाया था। यह किला भरतपुर के जाट शासकों की हिम्मत और शौर्य का प्रतीक है। अपनी सुरक्षा प्रणाली के कारण यह किला लोहागढ़ के नाम से जाना गया। किले के चारों और गहरी खाइयां हैं जो इसे सुरक्षा प्रदान करती हैं। यद्यपि लोहागढ़ किला इस क्षेत्र के अन्य किलों के समान वैभवशाली नहीं हैं लेकिन इसकी ताकत और भव्यता अद्भुत है। किले के अंदर महत्वपूर्ण स्थान हैं: किशोरी महल, महल खास, मोती महल और कोठी खास। सूरजमल ने मुगलों और अंग्रेजों पर अपनी जीत की याद में किले के अंदर जवाहर बुर्ज और फतेह बुर्ज बनवाए। यहां अष्टधातु से निर्मित एक द्वार भी है जिसमें हाथियों के विशाल चित्र बने हुए हैं।
भरतपुर- एक नजर में
राज्य: राजस्थान
क्षेत्रफल: 22 वर्ग किमी।
समुद्र तल से ऊंचाई: 250 मीटर
भाषा: राजस्थानी, हिंदी, अंग्रेजी
कब जाएं: अक्टूबर से फरवरी
एसटीडी कोड: 05644
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