डूंगरपुर का सफर

डूंगरपुर पहाड़ों का नगर
डूंगरपुर राजस्थान के दक्षिण में बसा एक नगर है। इसकी स्थापना 1282 में रावल वीर सिंह ने की थी। उन्होंने यह क्षेत्र भील प्रमुख डुंगरिया को हरा कर किया था जिनके नाम पर इस जगह का नाम डूंगरपुर पड़ा था। 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे अपने अधिकार में ले लिया। यह जगह डूंगरपुर प्रिंसली स्टेट की राजधानी थी। यहां से होकर बहने वाली सोम और माही नदियां इसे उदयपुर और बंसवाड़ा से अलग करती हैं। पहाड़ों का नगर कहलाने वाला डूंगरपुर में जीव-जन्तुओं और पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं। डूंगरपुर वास्तुकला की विशेष शैली के लिए जाना जाता है जो यहां के महलों और अन्य ऐतिहासिक इमारतों में देखी जा सकती है।

क्या देखें                                              
जूना महल
सफेद पत्थरों से बने इस सातमंजिला महल का निर्माण 13वीं शताब्दी में हुआ था। इसकी विशालता को देखते हुए यह महल से अधिक किला प्रतीत होता है। इसका प्रचलित नाम पुराना महल है। इस महल का निर्माण तब हुआ था जब मेवाड़ वंश के लोगों ने अलग होकर यहां अपना साम्राज्य स्थापित किया था। महल के बाहरी क्षेत्र में बने आने जाने के संकर रास्ते दुश्मनों से बचाव के लिए बनाए गए थे। महल के अंदर की सजावट में कांच, शीशों और लघुचित्रों का प्रयोग किया गया था। महल की दीवारों और छतों पर डूंगरपुर के इतिहास और 16वीं से 18वीं शताब्दी के बीच राजा रहे व्यक्तियों के चित्र उकेरे गए हैं। इस महल में केवल वे मेहमान की आ सकते हैं जो उदय विलास महल में ठहरे हों।

दियो सोमनाथ
दियो सोमनाथ डूंगरपुर से 24 किमी. उत्तर-पूर्व में स्थित है। दियो सोमनाथ सोम नदी के किनार बना एक प्राचीन शिव मंदिर है। मंदिर के बार में माना जाता है कि इसका निर्माण विक्रम संवत 12 शताब्दी के आसपास हुआ था। सफेद पत्थर से बने इस मंदिर पर पुराने समय की छाप देखी जा सकती है। मंदिर के अंदर अनेक शिलालेख भी देखे जा सकते हैं।

राजमाता देवेंद्र कुंवर राज्य संग्रहालय और सांस्कृतिक केंद्र
यह संग्रहालय 1988 में आम जनता के लिए खोला गया था। यहां एक खूबसूरत शिल्प दीर्घा है। इस दीर्घा में तत्कालीन वगद प्रदेश की इतिहास के बार में जानकारी मिलता है। यह वगद प्रदेश आज के डूंगरपुर, बंसवाड़ा और खेड़वाड़ा तक फैला हुआ था। समय: सुबह 10 बजे-शाम 4.30 बजे तक, शुक्रवार और सरकारी अवकाश के दिन बंद

गैब सागर झील
इस झील के खूबसूरत प्राकृतिक वातावरण में कई पक्षी रहते हैं। इसलिए यहां बड़ी संख्या में पक्षियों को देखने में रुचि रखने वाले यहां आते हैं। झील के पास ही श्रीनाथजी का प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा कई छोटे-छोटे मंदिर हैं। इनमें से एक मंदिर विजय राज राजेश्वर का है जो भगवान शिव को समर्पित है।

डूंगरपुर के आसपास दर्शनीय स्थल
बड़ौदा (41 किमी.)
डूंगरपुर से 41 किमी. दूर बड़ौदा वगद की पूर्व राजधानी थी। यह गांव अपने खूबसूरत और ऐतिहासिक मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इनमें से सबसे ज्यादा लोकप्रिय है सफेद पत्थरों से बना शिवजी का प्राचीन मंदिर। इस मंदिर के पास एक कुंडली है जिस पर संवत 1349 अंकित है। गांव के बीच में एक पुराना जैन मंदिर है जो मुख्य रूप से पार्श्‍वनाथ  को समर्पित है। मंदिर की काली दीवारों पर 24 जन र्तीथकरों को उकेरा गया है।


बानेश्वर (60 किमी.)
बानेश्वर मंदिर डूंगरपुर से 60 किमी. दूर है। इस मंदिर में इस क्षेत्र का सबसे प्रसिद्ध और पवित्र शिवलिंग स्थापित है। यह मंदिर सोम और माही नदी के मुहाने पर बना है। इस दो मंजिला भवन में बारीकी से तराशे गए खंबे और दरवाजे हैं। माघ शुक्ल एकादशी से माघ शुक्ल पूर्णिमा तक यहां एक मेला लगता है। शिव मंदिर के पास ही भगवान विष्णु का  मंदिर है। एक अनुमान के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 1793 ई. में हुआ था। इस मंदिर के बारे में माना जाता है कि इसी जगह भगवान कृष्ण के अवतार माव्जी ने ध्यान लगाया था। यहां पर एक और मंदिर भी है जो ब्रह्माजी को समर्पित है।


गलीकोट  (58 किमी.)
माही नदी के किनार बसा गलीकोट गांव डूंगरपुर से 58 किमी. दक्षिण पूर्व में स्थित है। एक जमाने में यह परमारों की राजधानी हुआ करता था। आज भी यहां पर एक पुराने किले के खंडहर देखे जा सकते हैं। यहां पर सैयद फखरुद्दीन की मजार है। उर्स के दौरान पूरे देश से हजारों दाउद बोहारा श्रद्धालु आते हैं। यह उर्स प्रतिवर्ष माहर्रम से 27वें दिन मनाया जाता है। सैयद फखरुद्दीन धार्मिक व्यक्ति थे और घूम-घूम कर ज्ञान का प्रचार-प्रसार करते थे। इसी क्रम में गलीकोट गांव में उनकी मृत्यु हुई थी। इस मजार के अलावा भी इस जिले में अन्य महत्वपूर्ण स्थान भी हैं जैसे मोधपुर का विजिया माता का मंदिर और वसुंधरा का वसुंधरा देवी मंदिर।


विजय राजराजेश्वर मंदिर, डुंगरपुर
विजय राजराजेश्वर मंदिर गैब सागर झील के किनारे स्थित है। यह मंदिर हिंदू भगवान शिव को समर्पित है और यह अपनी शानदार स्थापत्य शैली के लिए प्रसिद्द है। इसका निर्माण महारावल विजय सिंह ने प्रारंभ किया जिसे बाद में महारावल लक्ष्मण सिंह द्वारा 1923 में पूरा किया गया। पर्यटक यहाँ भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती की सुंदर मूर्तियां देख सकते हैं।


श्रीनाथजी मंदिर, डुंगरपुर
श्रीनाथजी मंदिर का निर्माण महारावल पुंजराज ने वर्ष 1623 में किया था। इस मंदिर के मुख्य आकर्षण श्री राधिकाजी और गोवर्धननाथजी की मूर्ति है। पर्यटक यहाँ एक गैलरी देख सकते हैं जो मुख्य मंदिर में है। वे यहाँ अनेक मध्यम आकार के मंदिर भी देख सकते हैं। जो मुख्य मंदिर के परिसर में हैं। इन मंदिरों में 16 मंदिर पश्चिममुखी, 16 मंदिर पूर्वमुखी और 4 मंदिर उत्तरमुखी हैं। ये मंदिर श्री बाँकेबिहारीजी और श्री रामचन्द्रजी को समर्पित हैं।
यहाँ तीन मंज़िला कक्ष है जो यहाँ स्थित तीनों मंदिरों के लिए गूढ़ मंडप एक सार्वजनिक कक्ष है। यह कक्ष 64 पायों और 12 स्तंभों पर खड़ा है।


कैसे पहुंचें
वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर (110 किमी.)
रेल मार्ग: नजदीकी रेलवे स्टेशन रतलाम (80 किमी., मध्यप्रदेश में) है जो देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है।
सड़क मार्ग: डूंगरपुर को राजस्थान के अन्य शहरों और उत्तर भारत के राज्यों से जोड़ने वाली अनेक सड़कें हैं। राज्य परिवहन की बसें और निजी बसें इन शहरों से डूंगरपुर के बीच चलती हैं।

खानपान
खाने पीने के लिए उदय बिलास पेलेस पर्यटकों का पसंद आता है। यहां मुख्य रूप से भारतीय भोजन मिलता है शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का खाना होता है। हिन्दुस्तानी खाने के अलावा कॉन्टीनेंटल और चाइनीज फूड भी मिलता है। इसके अलावा भी डूंगरपुर में कुछ छोटे रेस्टोरेंट ओर ढाबे भी हैं।


डूंगरपुर- एक नजर में
राज्य: राजस्थान
दूरी: उदयपुर से 100 किमी. दक्षिण, जयपुर से 469 किमी. दक्षिण पश्चिम, दिल्ली से 752 किमी. दक्षिण पश्चिम
जयपुर से रूट: राष्ट्रीय राजमार्ग 8 से अजमेर, बीवाड़, नाथद्वार और उदयपुर होते हुए खेड़वाड़, वहां से राज्य राजमार्ग से डूंगरपुर
क्षेत्रफल: 3770 वर्ग किमी.
भाषा: हिन्दी, राजस्थानी, अंग्रेजी
तापमान: गर्मियों में अधि. 42 और न्यू. 25, सर्दियों में अधि. 22 और न्यू. 0
वर्षा: जुलाई-मध्य सितंबर तक
कब जाएं: अक्टूबर-मार्च









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