झालावाड़ का सफर


झालावाड़- एक ऐतिहासिक स्वर्ग
झालावाड़ राजस्थान के हाडोती (हाडावती) क्षेत्र में दक्षिण पूर्वी भाग में स्थित है। इसे हाडा की भूमि भी कहा जाता है। इस जिले का कुल क्षेत्रफल 6928 किमी है और यह कोटा डिविजन (खंड) में आता है। झालावाड़ को ब्रिजनगर भी कहा जाता है और यह जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। जिले का उत्तर पूर्वी क्षेत्र बारां जिले से घिरा है जबकि दक्षिण पश्चिमी भाग पर कोटा जिले की सीमा है।

इतिहास में देखने पर !
ऐतिहासिक रूप से झालावाड़ शहर का निर्माण 1791 ई. में झाला ज़ालिम सिंह द्वारा हुआ था, जो उस समय कोटा जिले के दीवान थे। उनका सपना इस जगह को सैन्य छावनी के रूप में विकसित करना था जिससे मराठा घुसपैठियों से इस क्षेत्र की रक्षा हो सके। बाद में अंग्रेजों ने इस स्थान को झाला ज़ालिम सिंह के पोते झाला मदन सिंह को सौंप दिया। वे झालावाड़ के पहले शासक बने और उन्होंने 1838 से 1845 तक इस स्थान पर राज्य किया।

झालावाड़ में पर्यटन स्थलों का भ्रमण
झालावाड़ के लिए यात्रा की योजना बना रहे पर्यटक ऐतिहासिक झालावाड़ किले का भ्रमण कर सकते हैं। इस किले को ‘गढ़ महल’ के नाम से भी जाना जाता है। झालावाड़ में 100 फीट ऊँचा सूर्य मंदिर है जो भगवान् सूर्य को समर्पित है। आप इस मंदिर के अंदर भव्यता से नक्काशी की गई मूर्तियाँ देख सकते हैं। यह शहर चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित है और चारों तरफ दीवारों से घिरा है।
चन्द्रभागा नदी के किनारे और भी कई मंदिर है जिनका निर्माण छठवीं से चौदहवीं शताब्दी के दौरान हुआ था। ये धार्मिक स्थल बीते युग की कलात्मक उत्कृष्टता को दर्शाते हैं। इन सभी मंदिरों में पद्मनाथ मंदिर, श्री द्वारकाधीश मंदिर एवं शांतिनाथ जैन मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं।
इच्छुक यात्री बौद्ध गुफाओं और स्तूपों की यात्रा कर सकते हैं जहाँ वे जटिल आकृतियों को देख सकते हैं, जो यहाँ के मूल निवासियों की रचनात्मक विशेषज्ञता का पक्का सबूत है। इसके अलावा पर्यटक भीमसागर डेम (बाँध), जैन श्वेतांबर नागेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर, उन्हेल और शासकीय संग्रहालय भी देख सकते हैं। इस संग्रहालय में पुराने सिक्के, शिलालेख और प्राचीन मूर्तियों के खंडहर जैसी कई महत्वपूर्ण वस्तुएं रखी गई हैं। इसमें हिन्दू भगवान् अर्धनारीश्वर नटराज की मूर्ती भी है जिसे मास्को में ‘फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया’ (भारत के त्यौहार) समारोह में प्रदर्शित किया गया था।
गागरों किला, अतिशय जैन मंदिर, दलहनपुर, मनोहर थाना किला, गंगधार का किला झालावाड़ के अंदर और इसके आसपास देखने योग्य कुछ अन्य स्थल हैं।

संयोजकता
यह जिला वायुमार्ग, रेलमार्ग और सडक द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। कोटा का हवाईअड्डा झालावाड़ के सबसे पास का हवाईअड्डा है जो 82 किमी की दूरी पर स्थित है। यह हवाईअड्डा भारत के सभी बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। रामगंज मंडी रेलवे स्टेशन झालावाड़ का सबसे नजदीक का रेलवे स्टेशन है। झालावाड़ जाने के लिए यात्रियों को स्टेशन और हवाईअड्डे से टैक्सी और कैब्स उपलब्ध हैं। यह जिला निजी और राजस्थान परिवहन की बसों द्वारा आस पास के शहरों जैसे कि जयपुर, कोटा और बूंदी से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

मौसम
पर्यटकों को गर्मियों के दौरान यहाँ नहीं आना चाहिए क्योंकि इस समय यहाँ का मौसम अत्यधिक गर्म होता है और तापमान 27 डिग्री सेल्सियस से लेकर 42 डिग्री सेल्सियस तक होता है। मानसून में इस क्षेत्र का तापमान कम हो जाता है और औसत तापमान 30 डिग्री सेल्सियस के आस पास होता है। सर्दियों के दौरान अधिकतम और न्यूनतम तापमान क्रमश: 25 डिग्री सेल्सियस और 10 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया जाता है।


झालावाड़ किला, झालावाड़   Jhalawar Fort, Jhalawar
झालावाड़ किले को गढ़ महल के नाम से भी जाना जाता है और यह झालावाड़ शहर के मध्य स्थित है। महाराजा राणा मदन सिंह ने इस किले को 1840-1845 के दौरान बनवाया था। आजकल जिलाधीश कार्यालय (कलेक्टोरेट) और कई अन्य सरकारी कार्यालय इस किले में है। महाराजा के उत्तराधिकारियों ने इस जगह की सुंदरता को बढाने के लिए यहाँ कई खूबसूरत चित्र लगाए हैं। ये चित्र आज भी कमरों में रखे हुए हैं और इन्हें संबंधित अधिकारियों की अनुमति लेकर ही देखा जा सकता है। ज़नाना खास को महिलाओं का महल भी कहा जाता है। ज़नाना महल दर्पण और दीवारों पर भित्तिचित्रों से अलंकृत है। यह हाडोती कला विद्यालय (हाडोती स्कूल ऑफ़ आर्ट) का उत्कृष्ट उदाहरण है।


ककोनी, बरन   Kakuni, Baran
ककोनी, बरन जिले के छिपबरोड़ तहशील से केवल 85 कि.मी दूर है। परवान नदी के किनारे स्थित यह स्थान अपने मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। 8वी सदी में बने जैन, शिव और वैष्णव मंदिर आज खंडर बन चुके है। ककोनी मंदिर की 60% मूर्तियाँ कोटा और झालावार के अजायबघर में रखी गयी है।यहाँ आज भी राजा भीम दियो द्वारा बनाये गए भीमगढ़ किले के अवशेष मौजूद है।


अतिशय जैन मंदिर, झालावाड़  Atishay Jain Temples, Jhalawar
अतिशय जैन मंदिर प्रसिद्ध जैन मंदिर हैं जिनका निर्माण सत्रहवीं शताब्दी में हुआ था। ये मंदिर झालावाड़ से 34 किमी दूर स्थित हैं। मंदिर की भव्यता इसकी सुंदर वास्तुकला में झलकती है। भगवान् आदिनाथ की ध्यानावस्था में बैठी हुई 6 फीट ऊँची मूर्ती दूर दूर के क्षेत्रों से भक्तों को आकर्षित करती है। भक्तों को यहाँ सस्ती दरों पर आवास एवं भोजन उपलब्ध है।


भवानी नाट्य शाला, झालावाड़  Bhawani Natya Shala, Jhalawar
भवानी नाट्य शाला झालावाड़ किले के पास स्थित है। इसका निर्माण वर्ष 1921 में हुआ था। यह शानदार थियेटर कई यादगार नाटकों एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का साक्षी रहा है। इस स्थान का मुख्य आकर्षण इसकी अनूठी भूमिगत संरचना है। इसके अलावा मंच भी कम उंचाई पर बनाया गया है जिससे घोड़ों और रथों को आसानी से देखा जा सके। ऐसा माना जाता है कि संपूर्ण विश्व में ऐसे सिर्फ आठ थियेटर हैं। उस समय जब यह थियेटर बहुत अधिक प्रसिद्ध था, शाकुंतलम और शेक्सपियर जैसे नाटक यहाँ प्रदर्शित किये गए थे।  इस नाट्य शाला का प्रयोग पारसी थिएटर की तरह भी किया जाता है।  वे पर्यटक जिन्हें कला में रुचि है थियेटर में जाकर उस बीते युग के जादू को महसूस कर सकते हैं।


भीमसागर डेम, झालावाड़  Bhimsagar Dam, Jhalawar
भीमसागर बाँध झालावाड़ से 24 किमी दूर है। यह उजाड़ नदी पर बनाया गया है। यह मौ बोरदा के खंडहरों के पास है जो खिची चौहानों की राजधानी हुआ करती थी। मंदिरों, महलों, और मुसलमानों के लिए मस्जिदों और राजपूतों के मलबे इस क्षेत्र में पाए जाते हैं। इसके अलावा पर्यटक यहाँ पिकनिक का आनन्द भी उठा सकते हैं।


बौद्ध गुफाएं और स्तूप, झालावाड़   Buddhist Caves and Stupas, Jhalawar
बौद्ध गुफाएं और स्तूप झालावाड़ के मुख्य आकर्षण हैं। ये चट्टानों में काटी गई मौलिक गुफाएं कोलवी गाँव में खुदाई के दौरान मिली थीं। पुरातत्व और इतिहास की दृष्टी से ये गुफाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं। यह गाँव झालावाड़ शहर से 90 किमी दूर है। भगवान बुद्ध की गजरूप संरचना और स्तूप पर सुंदर नक्काशी गुफाओं की सुंदरता को और बढ़ाते हैं। कोलवी गाँव कई गावों से घिरा हुआ है जैसे कि यह सदियों पहले उपस्थित संपन्न सभ्यता का प्रदर्शन कर रहा हो। इस स्थान के मूल निवासियों में बौद्ध संस्कृति की छाप देखी जा सकती है।


चन्द्रभागा मंदिर, झालावाड़   Chandrabhaga Temples, Jhalawar
चन्द्रभागा मंदिर चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित हैं और झालावाड़ से लगभग 7 किमी दूर हैं। छठवीं से चौदहवीं शताब्दी के मध्य बने हुए ये मंदिर पुराने दिनों की कला का उत्तम उदाहरण है। ख़ूबसूरती से गढ़े गए स्तंभ और मेहराब के आकर के प्रवेश द्वार बीते हुए युग के कलाकारों की कलात्मक उत्कृष्टता को दर्शाता है। वैसे नदी के किनारे बहुत सारे मंदिर हैं पर उनमें से श्री द्वारकाधीश मंदिर, शांतिनाथ जैन मंदिर और पद्मनाथ मंदिर बहुत प्रसिद्ध हैं।


दलहनपुर, झालावाड़  Dalhanpur, Jhalawar
दलहनपुर , झालावाड़ से 54 किमी दूर है और छापी नदी के किनारे पर स्थित है। इस क्षेत्र के मंदिर नक्काशी किये गए स्तंभों, कामुक मूर्तियों एवं तोरण के लिए प्रसिद्ध हैं। इस क्षेत्र में एक सिंचाई बाँध का काम शुरू है। इस जगह की सुंदरता हरे भरे घने जंगलों और पशुचारे के कारण और भी बढ़ जाती है।


गंगधार का किला, झालावाड़  Fort of Gangdhar, Jhalawar
गंगधार का किला , झालावाड़ से 140 किमी की दूरी पर है। इस स्थान का मुख्य आकर्षण एक प्राचीन शिलालेख है। इसके अलावा यात्री आस पास के मंदिर भी देख सकते हैं।


गागरों किला, झालावाड़  Gagron Fort, Jhalawar
गागरों किला झालावाड़ से 12 किमी की दूरी पर स्थित है। इस किले का निर्माण सातवीं से चौदहवीं शताब्दी के मध्य हुआ था। यह तीन ओर से अहू और काली सिंध के पानी से घिरा हुआ है। पानी और जंगलों से सुरक्षित यह किला कुछ ही ऐतिहासिक स्थलों में से एक है जिसमें ‘वन’ और ‘जल’ दुर्ग दोनों हैं। किले के बाहर यात्री सूफी संत मिट्ठे शाह की दरगाह देख सकते हैं। प्रत्येक वर्ष मोहर्रम के अवसर पर यहाँ एक मेला आयोजित किया जाता है। संत पीपा जी का मठ भी, जो संत कबीर के समकालीन के रूप में प्रसिद्ध है, किले के पास स्थित है।


शासकीय संग्रहालय, झालावाड़  Government Museum, Jhalawar
शासकीय संग्रहालय को वर्ष 1915 में स्थापित किया गया था। दुर्लभ पांडुलिपियां, सुंदर मूर्तियाँ, पुराने सिक्के और चित्र इस संग्रहालय के मुख्य आकर्षण हैं। इसके अलावा आप यहाँ 5वीं और 7वीं शताब्दी के प्राचीन शिलालेख भी देख सकते हैं। खुदाई में मिली कई अलग अलग मूर्तियाँ इस संग्रहालय में रखी गई हैं। इसमें हिन्दू भगवान् अर्धनारीश्वर नटराज की मूर्ती भी है जिसे मास्को में ‘फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया’ (भारत के त्यौहार) समारोह में प्रदर्शित किया गया था। अन्य कई मूर्तियों में लक्ष्मीनारायण, त्रिमूर्ति, नटराज, विष्णु और कृष्ण की मूर्तियाँ सम्मिलित हैं।


जैन श्वेतांबर नागेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर, झालावाड़  Jain Swetambar Nageshwar Parshwanath Temple, Unhel, Jhalawar
जैन श्वेतांबर नागेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर झालावाड़ के सुदूर दक्षिणी भाग में स्थित है और शहर से 150 किमी की दूरी पर स्थित है। यह पवित्र स्थल भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित है जिसका निर्माण गुजरात, महाराष्ट्र और मालवा (मध्य प्रदेश) के जैन समुदाय द्वारा किया गया है। इस मंदिर में रखी गई भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ती लगभग 1000 साल पुरानी है। इस जगह का भ्रमण कर रहे पर्यटक धर्मशाला में सस्ती दरों पर भोजन और आवास का लाभ उठा सकते हैं।


झालरा पाटन, झालावाड़   : Jhalara Patan, Jhalawar
झालरा पाटन, झालावाड़ से 7 किमी की दूरी पर स्थित है। इस स्थान की मुख्य विशेषता यह है कि पूरा शहर एक दीवार से घिरा हुआ है। महाराजा विक्रमादित्य के पोते परमार चन्द्र सेन ने इस शहर का निर्माण किया था। झालरा पाटन चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित है और इसे ‘मंदिर की घंटियों का शहर’ भी कहा जाता है। ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेज अधिकारी जेम्स टॉड इस क्षेत्र में लगभग 108 मंदिर होने का दावा करते हैं। इन प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक 100 फीट ऊँचा, 10 वीं शताब्दी में बना सूर्य मंदिर है। इसमें कई सुंदर मूर्तियाँ है जो इसकी सुंदरता को और बढाती हैं। इसके अलावा यहाँ मंदिरों का एक समूह है जिसका निर्माण छठवीं से चौदहवीं शताब्दी के बीच हुआ था। इस जगह के दो मुख्य मंदिर शांतिनाथ जैन मंदिर और श्री द्वारकाधीश मंदिर हैं जिन्हें झाला जालिम सिंह ने ग्यारहवीं शताब्दी में बनवाया था। द्वारकाधीश मंदिर जाने वाले पर्यटक हर्बल गार्डन और चौपाटी भी देख सकते हैं।


मनोहर थाना किला, झालावाड़  Manohar Thana Fort, Jhalawar
मनोहर थाना किला, झालावाड़ से 90 किमी की दूरी पर स्थित है। इसके नाम का शाब्दिक अर्थ 'सुंदर चौकी’ है। यह किला दो नदियों परवान और कलीखाड के मिलने का साक्षी है। यह दोहरे स्तर वाला दुर्ग और कंगूरे वाला है, क्योंकि प्राचीन समय में, सुरक्षा की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण स्थान था।



पृथ्वी विलास महल, झालावाड़  Prithvi Vilas Palace, Jhalawar
पृथ्वी विलास महल को राजा भवानी सिंह ने वर्ष 1912 ई. में बनवाया था। आजकल यहाँ पर इस जगह के पूर्व शासक के परिवार का एक सदस्य इस महल में रहता है। इस महल के अंदर तीन तरफ से जाया जा सकता है। इस महल में एक मोनोग्राम भी है जो पूर्व शासकों के शौर्य और विनम्रता की कहानियां बताता है।




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