जयपुर - गुलाबी नगरी का सफर
जयपुर, भारत के पुराने शहरों में से एक है जिसे पिंक सिटी के नाम से जाना जाता है। राजस्थान राज्य की राजधानी कहा जाने वाला जयपुर शहर एक अर्द्ध रेगिस्तान क्षेत्र में स्थित है। इस खूबसूरत शहर को अम्बेर के राजा महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा बंगाल के एक वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य की मदद से बनाया गया था। यह भारत का पहला शहर है जिसे वास्तुशास्त्र के अनुसार बनाया गया था।
यह जगह हिंदू वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है, जो पिथापड़ा रूप यानि आठ भागों के मंडल में बना हुआ है। राजा सवाई सिंह माधों, खगोलविज्ञान के बारे में जानकारी रखते थे और इसी कारण उन्होने 9 के अंक को ज्यादा महत्व दिया और शहर के निर्माण में 9 का ध्यान रखा। यह 9 अंक, 9 ग्रहों के प्रतीक होते है।
जयपुर शहर, अपने किलों, महलों और हवेलियों के विख्यात है, दुनिया भर के पर्यटक भारी संख्या में भ्रमण करने आते है। दूर - दराज के क्षेत्रों के लोग यहां अपनी ऐतिहासिक विरासत की गवाह बनी इस समृद्ध संस्कृति और पंरपरा को देखने आते है। अम्बेर किला, नाहरगढ़ किला, हवा महल, शीश महल, गणेश पोल और जल महल, जयपुर के लोकप्रिय पर्यटक स्थलों में से हैं।
मेले और त्यौहार
महलों और किलों के अलावा जयपुर शहर मेले और त्यौहारों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। यहां के लोकप्रिय वार्षिक त्यौहारों में से एक जयपुर विंटेज कार रैली है जिसका आयोजन हर साल जनवरी माह में किया जाता है। यह कार रैली एक प्रमुख आकर्षण केंद्र होती है जो पर्यटकों के बीच खासी प्रसिद्ध है।
कार प्रेमी यहां आकर विंटेज कारों जैसे - मर्सिडीज, ऑस्टिन और फिएट आदि का अद्भभुत संग्रह देख सकते हैं। इनमें से कुछ कारें तो 1900 वीं सदी की है।
अन्य प्रसिद्ध उत्सवों में से एक महोत्सव एलीफैण्ट फेस्टिवल भी है जिसका आयोजन हर साल होली के अवसर पर किया जाता है जो हिन्दूओं का मुख्य पर्व होता है। इस महोत्सव में कई रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते है साथ ही जिंदा हाथियों को सजा कर लाया जाता है।
इसके अलावा, गणगौर महोत्सव भी यहां काफी लोकप्रिय है गणगौर का अर्थ होता है शिव और पार्वती। गण अर्थात् हिंदूओं के भगवाना शिव और गौर अर्थात् भगवान शिव की पत्नी पार्वती। यह त्यौहार वैवाहिक जीवन में खुशी का प्रतीक होता है। जयपुर के कुछ अन्य त्यौहारों और मेलों में बाणगंगा मेला, तीज, होली और चाकसू मेला भी काफी फेमस हैं।
फुर्सत के पल
जयपुर में पर्यटक फुर्सत के पल मजे के साथ बिता सकते हैं। रोमांच प्रेमी यहां आकर ऊंट की सवारी, गर्म हवा के गुब्बारों की सैर और रॉक क्लाइम्बिंग जैसे खेलों का आंनद उठा सकते है। उत्साही लोग अच्छा समय व्यतीत करने के लिए आस करौली और रणथंभौर जैसे राष्ट्रीय उद्यानों की सैर के लिए भी जा सकते हैं।
आगंतुक, जयपुर में आकर खरीददारी करना कभी नहीं भूलते है। यहां के कई बाजारों में विभिन्न प्रकार के सरणी, गहने, कालीन, मिट्टी के बर्तन और रत्न आदि मिलते है जो बिल्कूल अलग और अनोखे होते है। वैसे पर्यटक हस्तकला सामग्री, कलाकृतियों, परिधान और ब्रांडेड कपड़े भी जयपुर की एम आई रोड़ से खरीद सकते है। लेकिन आपको यहां के स्थानीय बाजारों में खरीदारी करते समय बार्गेनिंग करनी पड़ेगी।
प्रसिद्ध भोजन
जयपुर, अपने स्वादिष्ट, मसालेदार और चटपटे भोजन के लिए जो कि प्याज, अदरक और लहसून से मिलकर बनता है के लिए काफी विख्यात है। दाल बाटी - चूरमा, प्याज की कचौड़ी, कबाब, मुर्ग को खाटो और अचारी मुर्ग यहां के प्रसिद्ध व्यंजन है। फूड लवर्स इन सभी व्यंजनों को यहां के नेहरू बाजार और जौहरी बाजार में जाकर खा सकते है, यह दोनो ही बाजार स्ट्रीट फूड मार्केट हैं जहां सभी प्रकार के स्थानीय भोजन के ठेले सड़क के किनारे लगे रहते है। इसके अलावा जयपुर की प्रसिद्ध मिठाईयां घेवर, मिश्री मावा और मावा कचौड़ी भी देश भर में काफी लोकप्रिय हैं।
वर्तमान में इस इमारत को जयपुर के राजा सवाई माधो सिंह द्वितीय को समर्पित करके एक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया। इस संग्रहालय में बनारसी साडि़यों और पश्मीना शॉल के साथ कई शाही पोशाकों का प्रर्दशन किया गया है।
महाराजा सवाई माधो सिंह ( 1750 - 1768 ) के द्वारा पहनी जाने वाली शाही पोशाकों को भी इस संग्रहालय में रखा गया है जिन्हे आम जनता देख सकती है। सिटी पैलेस परिसर में महारानी पैलेस या क्वीन पैलेस भी स्थित है जहां कई प्राचीन राजपूतों हथियारों को दर्शाया गया है। यहां के संग्रहालय में हाथी दांत तलवारें, चेन हथियार, बंदुक, पिस्टल, तोपें, प्वाइजन टिप वाले ब्लेड और गन पाउडर के पाउच भी प्रर्दशन के लिए रखे गए हैं। इन सभी के बीच सिजर - कैंची - एक्शन सबसे ज्यादा उल्लेखनीय हथियार है। इनमें से कुछ हथियार तो 15 वीं सदी के आसपास के है। सिटी पैलेस, पर्यटकों के लिए सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। इसमें भ्रमण करने के लिए भारतीयों को 75 रू और विदेशियों को 300 रू का प्रवेश शुल्क देना पड़ता है।
इस तोप में 8 मीटर लंबे बैरल रखने की सुविधा है जो दुनिया भर में पाई जाने वाली तोपों के बीच सबसे ज्यादा प्रसिद्ध तोप है। किले के सबसे ऊंचे प्वाइंट पर दीया बुर्ज है जो लगभग सात मंजिले पर स्थित है, यहां से पूरे शहर का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है।
वेधशाला के निर्माण में उत्तम गुणवत्ता वाला संगमरमर और पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। यहां पर राम यंत्र भी रखा है जो उस काल में ऊंचाई मापने का यंत्र या साधन हुआ करता था। यह यंत्र, वेधशाला में अपने तरीके का अद्वितीय उपकरण है जो महाराजा की खगोलीय कौशल का प्रतिनिधित्व करता है।
इसके अलावा यहां अन्य उपकरण भी देखे जा सकते है जैसे- ध्रुव, दक्षिणा, नरिवल्या, राशिवाल्शया, स्मॉल सम्राट, लार्ज सम्राट, द आर्व्जवर सीट, दिशा, स्मॉल राम, लार्ज राम यंत्र, स्मॉल क्रांति, लार्ज क्रांति, राज उन्नाथामसा, जय प्रकाश और दिग्नता
इस किले का नामकरण जयपुर के राजकुमार नाहर के नाम पर किया गया था। कहा जाता है कि राजकुमार की आत्मा, इस किले के निर्माण में काफी बाधा पहुंचाती थी जिसके बाद किले के परिसर में एक मंदिर का निर्माण करवाया गया जिसमें राजकुमार की आत्मा की शांति के लिए काफी प्रयास किए गए थे।
किले के नाम में बाने वाला शब्द नाहरगढ़ का अर्थ होता है - बाघों का निवास। किले में एक माधवेन्द्र भवन है जिसका इस्तेमाल राजा और उनके परिवारजनों द्वारा गर्मियों के दिनों में किया जाता था। वर्तमान में यह किला एक पिकनिक स्पॉट बन गया है जो जयपुर में काफी लोकप्रिय है। पर्यटक यहां आकर किले के परिसर में स्थित कैफेटेरिया और रेस्टोरेंट में एंजाय कर सकते है।
सैलानी इस किले में आकर हाथी की सवारी करके जंबो के ऊपर से किले के ऊपरी दृश्यों का भी आनंद उठा सकते हैं। महल परिसर में एक मंदिर भी है जो हिंदू धर्म की देवी शिला माता को समर्पित है। दीवान - ए - आम, शीश महल, गणेश पोल, सुख निवास, जैस मंदिर, दिला राम बाग और मोहन बाड़ी आदि अम्बेर किला के आकर्षणों में से एक है।
यहां की वाइल्डलाइफ सेंचुरी में कई प्रकार और प्रजातियों के पक्षियों व वनस्पतियों का भी अच्छा खासा जमावड़ा देखने को मिलता है। पर्यटक, सेंचुरी का आनंद सफारी पर सैर करके उठा सकते है। झील और वाइल्डलाइफ सेंचुरी के अलावा यह गांव मंदिरों, हवेली और पुराने किलों के भी जाना जाता है। यह जगह जयपुर के राजाओं के स्मारकों के लिए भी प्रसिद्ध है।
पर्यटक यहां आकर बाघ, सरीसृप के विभिन्न प्रकार, बंदर और कई अन्य जानवर भी देख सकते हैं। यहां भारी संख्या में आने वाले प्रवासी पक्षियों को भी देखा जा सकता है। इस सुंदर पार्क के भ्रमण के लिए पर्यटकों को जंगल सफारी की सवारी की सलाह दी जाती है।
सांभर झील समुद्र तल से 1,200 फुट की ऊँचाई पर स्थित है।
जब यह झील भरी रहती है, तब इसका क्षेत्रफल 90 वर्ग मील रहता है।
सांभर झील में तीन नदियाँ आकर गिरती हैं।
झील से बड़े पैमाने पर नमक का उत्पादन किया जाता है।
अनुमान है कि अरावली के शिष्ट और नाइस के गर्तों में भरा हुआ गाद ही नमक का स्रोत है। गाद में स्थित विलयशील सोडियम यौगिक वर्षा के जल में घुसकर नदियों द्वारा झील में पहुँचाता है और जल के वाष्पन के पश्चात झील में नमक के रूप में रह जाता है
कैसे पहुँचें जयपुर एयर द्वारा
जयपुर का नजदीकी एयरपोर्ट संगानेर है जो शहर से कुल 11 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह जयपुर का नजदीकी एयरबेस है। यह एयरपोर्ट देश के कई शहरों जैसे मुम्बई, दिल्ली, औरंगाबाद, उदयपुर और जोधपुर आदि से फ्लाइट द्वारा सीधे जुड़ा है। यात्री, एयरपोर्ट से शहर तक आने के लिए टैक्सी किराए पर ले सकते है।
कैसे पहुँचें जयपुर ट्रेन द्वारा
जयपुर रेलवे स्टेशन, राजस्थान राज्य का सेंट्रल रेल हेड है। यह देश के कई मुख्य शहरों से नियमित रूप से चलने वाली ट्रेनों द्वारा जुड़ा है। कॉमन ट्रेन के अलावा, पर्यटक जयपुर तक एक स्पेशल ट्रेन के द्वारा भी पहुंच सकते है जिसे पैलेस ऑन व्हील कहा जाता है। यह ट्रेन दिल्ली से चलती है। यह एक लक्जरी ट्रेन है जो राजस्थान के प्रमुख शहरों जैसे जयपुर, अल्वर, और उदयपुर से होकर गुजरती है।
कैसे पहुँचें जयपुर सड़क मार्ग
पिंक सिटी जयपुर, देश के गंतव्य स्थलों तक सड़क मार्ग द्वारा भली - भांति जुड़ा हुआ है। नई दिल्ली और आगरा से जयपुर के लिए कई सीधी बसें मिलती है। दिल्ली और आगरा के बीच का यह सड़क मार्ग गोल्डन ट्रैवल क्षेत्र का हिस्सा है।
यह जगह हिंदू वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है, जो पिथापड़ा रूप यानि आठ भागों के मंडल में बना हुआ है। राजा सवाई सिंह माधों, खगोलविज्ञान के बारे में जानकारी रखते थे और इसी कारण उन्होने 9 के अंक को ज्यादा महत्व दिया और शहर के निर्माण में 9 का ध्यान रखा। यह 9 अंक, 9 ग्रहों के प्रतीक होते है।
जयपुर शहर, अपने किलों, महलों और हवेलियों के विख्यात है, दुनिया भर के पर्यटक भारी संख्या में भ्रमण करने आते है। दूर - दराज के क्षेत्रों के लोग यहां अपनी ऐतिहासिक विरासत की गवाह बनी इस समृद्ध संस्कृति और पंरपरा को देखने आते है। अम्बेर किला, नाहरगढ़ किला, हवा महल, शीश महल, गणेश पोल और जल महल, जयपुर के लोकप्रिय पर्यटक स्थलों में से हैं।
मेले और त्यौहार
महलों और किलों के अलावा जयपुर शहर मेले और त्यौहारों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। यहां के लोकप्रिय वार्षिक त्यौहारों में से एक जयपुर विंटेज कार रैली है जिसका आयोजन हर साल जनवरी माह में किया जाता है। यह कार रैली एक प्रमुख आकर्षण केंद्र होती है जो पर्यटकों के बीच खासी प्रसिद्ध है।
कार प्रेमी यहां आकर विंटेज कारों जैसे - मर्सिडीज, ऑस्टिन और फिएट आदि का अद्भभुत संग्रह देख सकते हैं। इनमें से कुछ कारें तो 1900 वीं सदी की है।
अन्य प्रसिद्ध उत्सवों में से एक महोत्सव एलीफैण्ट फेस्टिवल भी है जिसका आयोजन हर साल होली के अवसर पर किया जाता है जो हिन्दूओं का मुख्य पर्व होता है। इस महोत्सव में कई रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते है साथ ही जिंदा हाथियों को सजा कर लाया जाता है।
इसके अलावा, गणगौर महोत्सव भी यहां काफी लोकप्रिय है गणगौर का अर्थ होता है शिव और पार्वती। गण अर्थात् हिंदूओं के भगवाना शिव और गौर अर्थात् भगवान शिव की पत्नी पार्वती। यह त्यौहार वैवाहिक जीवन में खुशी का प्रतीक होता है। जयपुर के कुछ अन्य त्यौहारों और मेलों में बाणगंगा मेला, तीज, होली और चाकसू मेला भी काफी फेमस हैं।
फुर्सत के पल
जयपुर में पर्यटक फुर्सत के पल मजे के साथ बिता सकते हैं। रोमांच प्रेमी यहां आकर ऊंट की सवारी, गर्म हवा के गुब्बारों की सैर और रॉक क्लाइम्बिंग जैसे खेलों का आंनद उठा सकते है। उत्साही लोग अच्छा समय व्यतीत करने के लिए आस करौली और रणथंभौर जैसे राष्ट्रीय उद्यानों की सैर के लिए भी जा सकते हैं।
आगंतुक, जयपुर में आकर खरीददारी करना कभी नहीं भूलते है। यहां के कई बाजारों में विभिन्न प्रकार के सरणी, गहने, कालीन, मिट्टी के बर्तन और रत्न आदि मिलते है जो बिल्कूल अलग और अनोखे होते है। वैसे पर्यटक हस्तकला सामग्री, कलाकृतियों, परिधान और ब्रांडेड कपड़े भी जयपुर की एम आई रोड़ से खरीद सकते है। लेकिन आपको यहां के स्थानीय बाजारों में खरीदारी करते समय बार्गेनिंग करनी पड़ेगी।
प्रसिद्ध भोजन
जयपुर, अपने स्वादिष्ट, मसालेदार और चटपटे भोजन के लिए जो कि प्याज, अदरक और लहसून से मिलकर बनता है के लिए काफी विख्यात है। दाल बाटी - चूरमा, प्याज की कचौड़ी, कबाब, मुर्ग को खाटो और अचारी मुर्ग यहां के प्रसिद्ध व्यंजन है। फूड लवर्स इन सभी व्यंजनों को यहां के नेहरू बाजार और जौहरी बाजार में जाकर खा सकते है, यह दोनो ही बाजार स्ट्रीट फूड मार्केट हैं जहां सभी प्रकार के स्थानीय भोजन के ठेले सड़क के किनारे लगे रहते है। इसके अलावा जयपुर की प्रसिद्ध मिठाईयां घेवर, मिश्री मावा और मावा कचौड़ी भी देश भर में काफी लोकप्रिय हैं।
सिटी पैलेस, जयपुर
सिटी पैलेस एक लोकप्रिय विरासत है जो शहर के बीचोबीच स्थित है। यह शहर की शानदार इमारतों में से एक है। इस शानदार महल का निर्माण महाराजा सवाई जय सिंह माधो ने करवाया था जिन्होने जयपुर की स्थापना की थी। महल में राजपूत और मुगल शैली की वास्तुकला का एक सुंदर समामेलन है। महल के प्रवेश द्वार पर मुबारक महल ( स्वागत महल ) बना हुआ है। इसका निर्माण भी महाराजा सवाई माधो सिंह ने 19 वीं सदी में करवाया था जिसका इस्तेमाल स्वागत क्षेत्र के रूप मे किया जाता था।वर्तमान में इस इमारत को जयपुर के राजा सवाई माधो सिंह द्वितीय को समर्पित करके एक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया। इस संग्रहालय में बनारसी साडि़यों और पश्मीना शॉल के साथ कई शाही पोशाकों का प्रर्दशन किया गया है।
महाराजा सवाई माधो सिंह ( 1750 - 1768 ) के द्वारा पहनी जाने वाली शाही पोशाकों को भी इस संग्रहालय में रखा गया है जिन्हे आम जनता देख सकती है। सिटी पैलेस परिसर में महारानी पैलेस या क्वीन पैलेस भी स्थित है जहां कई प्राचीन राजपूतों हथियारों को दर्शाया गया है। यहां के संग्रहालय में हाथी दांत तलवारें, चेन हथियार, बंदुक, पिस्टल, तोपें, प्वाइजन टिप वाले ब्लेड और गन पाउडर के पाउच भी प्रर्दशन के लिए रखे गए हैं। इन सभी के बीच सिजर - कैंची - एक्शन सबसे ज्यादा उल्लेखनीय हथियार है। इनमें से कुछ हथियार तो 15 वीं सदी के आसपास के है। सिटी पैलेस, पर्यटकों के लिए सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। इसमें भ्रमण करने के लिए भारतीयों को 75 रू और विदेशियों को 300 रू का प्रवेश शुल्क देना पड़ता है।
जयगढ़ किला, जयपुर
जयगढ़ किले को विजय किले के रूप में जाना जाता है। यह जयपुर के विख्यात पर्यटन स्थलों में से एक है जो शहर से 15 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह ईगल्स के हिल पर अम्बेर किले से 400 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। इस किले के दो प्रवेश द्वार है जिन्हे दूंगर दरवाजा और अवानी दरवाजा कहा जाता है जो क्रमश: दक्षिण और पूर्व दिशाओं पर बने हुए है। किले में स्थित सागर तालाब में पानी को इक्ट्ठा करने की उचित व्यवस्था है। किले का निर्माण, सेना की सेवा के उदेश्य से किया गया था जिसकी दीवारे लगभग 3 किमी. के क्षेत्र में फैली हूई है। किले के शीर्ष पर एक विशाल तोप रखी है जिसे जयवैन कहा जाता है, इस तोप का वजन 50 टन है।इस तोप में 8 मीटर लंबे बैरल रखने की सुविधा है जो दुनिया भर में पाई जाने वाली तोपों के बीच सबसे ज्यादा प्रसिद्ध तोप है। किले के सबसे ऊंचे प्वाइंट पर दीया बुर्ज है जो लगभग सात मंजिले पर स्थित है, यहां से पूरे शहर का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है।
लक्ष्मीनारायण मंदिर, जयपुर
लक्ष्मी नारायण मंदिर को बिरला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है जो मोती डोगरी पहाड़ी की चोटी के तलहटी पर स्थित है। यह मंदिर हिंदूओं के भगवान विष्णु और उनकी पत्नी लक्ष्मी को समर्पित है। यह मंदिर बिरला फाउंडेशन द्वारा 1980 के दशक में बनाया गया था। मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति को पूरे एक ही संगमरमर के पत्थर से बनाया गया है।
जंतर - मंतर, जयपुर
जंतर - मंतर, भारत की पांच खगोलीय वेधशालाओं में से सबसे बड़ा है जिसकी स्थापना राजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा की गई थी। यह वेधशाला, यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की गिनती में सम्मिलित है जिसके बारे में यूनेस्को का कथन है कि यह वेधशाला मुगल काल के खगोलीय कौशल और ब्रह्माण्ड संबंधी अवधारणाओं की अभिव्यक्ति का सर्वश्रेष्ट नमूना है।वेधशाला के निर्माण में उत्तम गुणवत्ता वाला संगमरमर और पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। यहां पर राम यंत्र भी रखा है जो उस काल में ऊंचाई मापने का यंत्र या साधन हुआ करता था। यह यंत्र, वेधशाला में अपने तरीके का अद्वितीय उपकरण है जो महाराजा की खगोलीय कौशल का प्रतिनिधित्व करता है।
इसके अलावा यहां अन्य उपकरण भी देखे जा सकते है जैसे- ध्रुव, दक्षिणा, नरिवल्या, राशिवाल्शया, स्मॉल सम्राट, लार्ज सम्राट, द आर्व्जवर सीट, दिशा, स्मॉल राम, लार्ज राम यंत्र, स्मॉल क्रांति, लार्ज क्रांति, राज उन्नाथामसा, जय प्रकाश और दिग्नता
नाहरगढ़ किला, जयपुर
नाहरगढ़ फोर्ट को जयपुर के राजा सवाई जय सिंह द्वारा बनाया गया था। इस किले का निर्माण कार्य 1734 में पूरा किया गया, हालांकि बाद में 1880 में महाराजा सवाई सिंह माधो द्वारा किले की विशाल दीवारों और बुर्जो का पुननिर्माण भी करवाया गया था। यह किला, अरावली पर्वतों की श्रृंखला में बना हुआ है जो भारतीय और यूरोपीय वास्तुकला का सुंदर समामेलन है।इस किले का नामकरण जयपुर के राजकुमार नाहर के नाम पर किया गया था। कहा जाता है कि राजकुमार की आत्मा, इस किले के निर्माण में काफी बाधा पहुंचाती थी जिसके बाद किले के परिसर में एक मंदिर का निर्माण करवाया गया जिसमें राजकुमार की आत्मा की शांति के लिए काफी प्रयास किए गए थे।
किले के नाम में बाने वाला शब्द नाहरगढ़ का अर्थ होता है - बाघों का निवास। किले में एक माधवेन्द्र भवन है जिसका इस्तेमाल राजा और उनके परिवारजनों द्वारा गर्मियों के दिनों में किया जाता था। वर्तमान में यह किला एक पिकनिक स्पॉट बन गया है जो जयपुर में काफी लोकप्रिय है। पर्यटक यहां आकर किले के परिसर में स्थित कैफेटेरिया और रेस्टोरेंट में एंजाय कर सकते है।
राम निवास बाग, जयपुर
राम निवास बाग एक खूबसूरत गार्डन है जिसे अकाल रहित परियोजना के अर्न्तगत 19 वीं सदी के दौरान महाराजा राम सिंह द्वारा बनवाया गया था। इस बड़े पार्क में खेलने के लिए काफी बड़ा स्थान है और साथ ही साथ एक चिडि़याघर और वनस्पति संग्रहालय भी है। इसके अलावा, यहां अल्बर्ट हॉल है जिसे ब्रिटिश वास्तुकार सर स्विटन जैकोब ने डिजायन किया था, इसके अलावा उन्होने राजस्थान के कई नामचीन इमारतों को भी डिजायन किया था जो भारत और अरबी वास्तुकला के संयोजन के लिए काफी प्रसिद्ध है। वैसे यहां की इमारतों में ब्रिटिश और भारतीय डिजायन का भी काम्बीनेशन देखने को मिलता है।
अल्बर्ट हॉल, जयपुर
अल्बर्ट हॉल का निर्माण महाराजा सवाई सिंह माधो द्वारा 1886 ई. में 4 लाख रूपए की लागत से सूखा राहत परियोजना के अर्न्तगत किया गया था। यह एक सुरम्य और खूबसूरत गार्डन है जो राम निवास बाग में स्थित है। इस इमारत को सर स्विंटन जैकब ने डिजायन किया था। आजकल, अल्बर्ट हॉल का इस्तेमाल एक संग्रहालय के रूप में किया जाता है जिसमें धातु मूर्तियों, चित्रों, हाथी दातों, कालीन और रंगीन क्रिस्टल का भव्य संग्रह प्रदर्शित किया गया है। अल्बर्ट हॉल के पास में ही एक चिडि़या घर और रवींद्र रंग मंच ( थियेटर ) भी स्थित है। अल्बर्ट हॉल संग्रहालय पर्यटकों के लिए सुबह 9 से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। प्रवेश शुल्क काफी सस्ती या यूं कहे तो नाम मात्र की है। भारतीय पर्यटकों को 20 और विदेशी पर्यटकों को 150 रूपए प्रवेश शुल्क देना पड़ता है।
अम्बेर किला, जयपुर
अम्बेर किला को लगभग 200 साल की अवधि में राजा मानसिंह, मिर्जा राजा जय सिंह और सवाई जय सिंह द्वारा बनाया गया था। जयपुर के अस्तित्व में आने से पहले यह लगभग 7 के लिए कच्छचावाहा शासकों की राजधानी के रूप में जाना जाता था। यह किला मूठा झील के किनारे पर स्थित है जहां महलों, मंडपों, हॉल, मंदिरों और उद्यान यानि गार्डन भी हैं।सैलानी इस किले में आकर हाथी की सवारी करके जंबो के ऊपर से किले के ऊपरी दृश्यों का भी आनंद उठा सकते हैं। महल परिसर में एक मंदिर भी है जो हिंदू धर्म की देवी शिला माता को समर्पित है। दीवान - ए - आम, शीश महल, गणेश पोल, सुख निवास, जैस मंदिर, दिला राम बाग और मोहन बाड़ी आदि अम्बेर किला के आकर्षणों में से एक है।
शीश महल, जयपुर
शीश महल, अम्बेर का ही एक हिस्सा है जो दर्पण हॉल के नाम से लोकप्रिय है। यह हॉल, जय मंदिर का एक हिस्सा है जो बेहद खूबसूरती से दर्पणों से सजाया गया है। छत और दीवारों पर लगे शीशे के टुकडे, प्रकाश पड़ने पर प्रतिबिंबित होते है और चमक पूरे हॉल में फैल जाती है। जयपुर के राजा, राजा जय सिंह ने इस हॉल का निर्माण अपने विशेष मेहमानों के लिए करवाया था, हॉल को 1623 ई. में बनवाया गया था। हॉल में लगे हुए शीशों को बेल्जियम से आयात किया गया था।
गणेश पोल, जयपुर
गणेश पोल, अम्बेर किले के मुख्य महल में स्थित है। इसका निर्माण राजा जय सिंह द्वितीय ने 1611 से 1667 के बीच करवाया था। अम्बेर किले में प्रवेश के लिए सात मुख्य द्वार है जिनमें से गणेश पोल एक है। इस गेट के माध्यम से उस काल में केवल राजा और उनका परिवार ही प्रवेश कर सकता था जिससे वह आसानी से अपने निजी कक्षों में बिना व्यवधान के पहुंच जाया करते थे। इस द्वार पर हिंदू भगवान गणेश जी की शानदार रंग बिरंगी मूर्ति भी रखी हुई है। यह द्वार, मुगलों और राजपूतों की वास्तुकला के बीच के एकीकरण का प्रतिनिधित्व करता है।
चंद्र महल, जयपुर
चंद्र महल, जयपुर के राजा जयसिंह द्वितीय द्वारा बनवाया गया था जो सिटी पैलेस परिसर में ही स्थित है। यह महल पूरे किले का एक सांतवे हिस्से को घेरे हुए है। वर्तमान समय में जयपुर के महाराजा का यह निवास स्थान है। यह महल अपने सुंदर पुष्प अलंकरण, शीशे से जड़ी दीवारों और भित्ति चित्रों के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां एक सात मंजिला गढ़ भी है जिनमें से पहली दो मंजिले सुख निवास हॉल का हिस्सा हैं। इसके अलावा, यहां रंग मंदिर, शोभा निवास या सौंदर्य निवास और छवि निवास या हाउस ऑफ मिरर भी है।
गोविंद देवजी मंदिर, जयपुर
गोविंद देवजी मंदिर, हिंदूओं के देवता भगवान कृष्ण को समर्पित है। यह मंदिर जयपुर में जय निवास गार्डन में स्थित है। इस मंदिर में रखी गई मूर्ति पहले वृंदावन के एक मंदिर में रखी हुई थी जिसे बाद में जयपुर के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने अपने परिवार के देवता के रूप में इस मंदिर में पुर्नस्थापित कर लिया था। इस मंदिर में हर साल हजारों भक्त दर्शन करने आते हैं क्यूंकि यह जयपुर के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।
हवा महल, जयपुर
हवा महल एक प्रसिद्ध स्मारक है जिसका निर्माण जयपुर के कवि राजा सवाई प्रताप सिंह ने 1799 ई. में करवाया था। यह इमारत पांच मंजिला है जो जयपुर के प्रसिद्ध जौहरी बाजार के पास स्थित है जो कि पूर्ण रूप से लाल और गुलाबी बलुआ पत्थर से बनी हुई है। हवा महल की डिजायन, लाल चंद उस्ता ने बनाई थी जिसमें 950 से भी ज्यादा खिड़कियां है। इस महल का निर्माण विशेष रूप से महिलाओं के लिए किया गया था ताकि वह जाली स्क्रीन के माध्यम से शाही जुलूस के दृश्यों का आनंद उठा सकें। इस इमारत में एक पुरातात्विक संग्रहालय भी स्थित है।
जल महल, जयपुर
जल महल एक सुंदर महल है जो जयपुर की एक छोटी सी झील के बीच में स्थित है। इस महल को राजा - महाराजा और उनके परिवारों के लिए शिकार लॉज के रूप में बनाया गया था। जल महल को झील के किनारे से भी देखा जा सकता है।
सामोद पैलेस, जयपुर
जयपुर में सामोद पैलेस अपनी वास्तुकला और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में यह पैलेस एक लक्जरी होटल में परिवर्तित हो गया है जो जयपुर शहर से छोटी दूरी पर ही स्थित है। 4000 साल पुराने इस महल में, पर्यटक सामोद गार्डन, सामोद किला और दरबार तम्बू भी देख सकते हैं।
शिला देवी मंदिर, जयपुर
शिला देवी मंदिर, हिंदूओं की देवी काली को समर्पित है। यह मंदिर अम्बेर किले के परिसर में ही स्थित है। कहा जाता है कि राजा मान सिंह काली माता के बहुत बड़े भक्त थे, वह इस मूर्ति को बंगाल से लेकर आए थे। पूरे मंदिर के निर्माण में सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया है। माना जाता है कि देवी काली अम्बेर किले की रक्षक है। हिंदूऔ के त्यौहार नवरात्रि को इस मंदिर में पूरे उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है।
जम्वा रामगढ़, जयपुर
जम्वा रामगढ़, जयपुर का एक प्रसिद्ध गांव है जो मुख्य शहर से थोड़ी दूरी पर स्थित है। यह स्थल यहां स्थित कृत्रिम झील और वन्यजीव अभयारण्य के लिए विख्यात है। यहां की झील में कई प्रवासी पक्षी और दूसरे देशों के यानि अर्न्तर्देशीय प्रजातियों के पक्षी भी पाएं जाते है।यहां की वाइल्डलाइफ सेंचुरी में कई प्रकार और प्रजातियों के पक्षियों व वनस्पतियों का भी अच्छा खासा जमावड़ा देखने को मिलता है। पर्यटक, सेंचुरी का आनंद सफारी पर सैर करके उठा सकते है। झील और वाइल्डलाइफ सेंचुरी के अलावा यह गांव मंदिरों, हवेली और पुराने किलों के भी जाना जाता है। यह जगह जयपुर के राजाओं के स्मारकों के लिए भी प्रसिद्ध है।
मोती डोंगरी, जयपुर
मोती डोंगरी या पर्ल हिल एक महल और मंदिर के कारण जाना जाता है। यह स्थल स्कॉटलैंड के एक महल जैसा ही बना हुआ है जो जयपुर के अंतिम राजा सवाई मान सिंह द्वितीय द्वारा बनवाया गया था, जो बाद में उनके ही पुत्र जगत सिंह का निवास स्थल बन गया था। यहां बना हुआ मंदिर हिंदूओं के भगवान गणेश जी को समर्पित है। यह मंदिर एक चोटी पर बना हुआ है
अक्षरधाम मंदिर, जयपुर
अक्षरधाम मंदिर, जयपुर आने वाले हर पर्यटक का मुख्य आकर्षण होता है। यह मंदिर वैशाली नगर में स्थित है जो अपनी सुंदर वास्तुकला, शानदार मूर्तियों, पुतलों और नक्काशी के लिए जाना जाता है। यह मंदिर हिंदूओं के भगवान नारायण को समर्पित है।
अनोखी म्यूजियम ऑफ हैंड प्रिंटिग, जयपुर
अनोखी म्यूजियम ऑफ हैंड आर्ट प्रिंटिग, जयपुर में पुराने चानवार पालकी वालों की हवेली में स्थित है। यह एक चैरिटेवल फांउडेशन है जो जयपुर के पारंपरिक कलाकारों के संरक्षण के लिए काम करती है। यह गैर सरकारी संगठन न केवल रोजगार की ट्रेनिंग देता है बल्कि उभरते कलाकारों और कारीगरों को भी रोजगार के अवसर प्रदान करता है और प्रशिक्षण देता है। इस फाउंडेशन का मुख्य उदे्श्य हाथ ब्लॉक छपाई को बढ़ावा देना है जो जयपुर की प्राचीन परंपरा है। इस संग्रहालय में एक कैफे और दुकान है जिसमें हस्तनिर्मित कार्ड, आभूषण और कपड़े बिकते है।
बी एम बिरला प्लानिटोरियम, जयपुर
बी एक बिरला तारामंडल, जयपुर का एक शानदार लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यह स्थल पूर्णत: नवीनतम कम्प्यूटरीकृत प्रोजेक्शन सिस्टम से लैस है जो पर्यटकों को शानदार दृश्य - श्रव्य मनोरंजन प्रदान करता है। यह देश के आधुनिक ग्रह विज्ञान संग्रहालयों में से गिना जाता है।
सेंट्रल पार्क, जयपुर
सेंट्रल पार्क का निर्माण जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा करवाया गया था जो जयपुर का सबसे बड़ा पार्क है। यह पार्क, शहर के केंद्र में स्थित है जो रामबाग पोलो ग्राउंड और क्लब से भी बड़ा होने का दावा करता है। इस पार्क में 5 किमी. लम्बा जॉगिंग ट्रैक और वाकिंग जोन बना है। यह पक्षियों को देखने के लिए आर्दश स्थल है। हर साल दूसरे देशों से काफी बड़ी मात्रा में यहां कई पक्षी प्रवासी बनकर आते है।
विधाधरजी का बाग, जयपुर
विधाधरजी का बाग एक सुंदर गार्डन है जो जयपुर शहर के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य के सम्मान में बनवाया गया है। यह उद्यान, आगरा सड़क पर जयपुर शहर से 8 किमी् की दूरी पर स्थित है। इस गार्डन में कई सुंदर वॉटर चैनल्स है। यह गार्डन, घाट की गूनी पर स्थित है जहां पर्यटक निजी सैर सपाटे के लिए जा सकते है।
गैटोर, जयपुर
गैटोर, जयपुर के राजाओं के लिए अंतिम विश्राम की जगह है जो मैन सागर झील के सामने जयपुर - अम्बेर रोड़ पर स्थित है। इस स्थल में छाते के आकर के स्मारक बने है जो संगमरमर और बलुआ पत्थरों से निर्मित है।
गल्टाजी, जयपुर
गल्टाजी एक धार्मिक स्थल है जो जयपुर शहर से लगभग 10 किमी. की दूरी पर स्थित है। गल्टाजी परिसर में मंदिरों, मंडपों और प्राकृतिक झरनों का काफी विस्तार है। यह जगह पहाड़ी क्षेत्रों के बीच स्थित है। यह मंदिर यहां स्थित सूर्य देवता को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण जयपुर की सबसे ऊंची चोटी दीवान कृपाराम पर किया गया है जहां से शहर के हर हिस्से को देखा जा सकता है। मंदिर के निर्माण में गुलाबी पत्थर का इस्तेमाल किया गया है साथ ही इसकी दीवारों पर काफी सुंदर चित्र और नक्काशियों को भी सुंदरता से अलंकृत किया गया है।
जैन मंदिर, जयपुर
जैन मंदिर, सात मंजिला ऊंची इमारत है जो देखने में माउंट आबू के दिलवाड़ा मंदिर जैसा लगता है। इस मंदिर का निर्माण 10 वीं सदी में पूरा किया गया था। यह मंदिर भगवान आदिनाथ को समर्पित है। मंदिर में स्थापित देवता की मूर्ति को 400 साल से अधिक पुराना माना जा रहा है। मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति भी अलग से स्थापित की गई है जिसमें फूलों और जानवरों की कलाकृति भी बनी हुई है।
झलाना नेचर पार्क, जयपुर
झलाना प्रकृति पार्क, नाहरगढ़ जैविक उद्यान के रूप में भी जाना जाता है। यहां कई प्रकार की वनस्पतियों और जीवों को देखा जा सकता है। यह पार्क कुल 7.2 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है जो नाहरगढ़ किले के पास में ही स्थित है। इस पार्क में काफी बड़ी संख्या में क्वार्टजाइट चट्टान और सैंडस्टोन पाएं जाते है।पर्यटक यहां आकर बाघ, सरीसृप के विभिन्न प्रकार, बंदर और कई अन्य जानवर भी देख सकते हैं। यहां भारी संख्या में आने वाले प्रवासी पक्षियों को भी देखा जा सकता है। इस सुंदर पार्क के भ्रमण के लिए पर्यटकों को जंगल सफारी की सवारी की सलाह दी जाती है।
सरगासूली, जयपुर
सरगासूली को लोकप्रिय नाम ईश्वर लाट से जाना जाता है। यह एक टॉवर है जिसे महाराजा ईश्वरी सिंह ने 18 वीं सदी के दौरान एक लड़ाई में जीते जाने की खुशी में बनवाया था। हालांकि यहां की प्रजा को बाद में राजा से नफरत हो गई थी क्यूंकि उसे एक आम लड़की से प्यार हो गया था। वह केवल एक ऐसा कच्छच्चावाहा राजा है जिसे गैटोर की उपाधि से नवाजा नहीं गया था।
सिसौदिया रानी का बाग, जयपुर
सिसोदिया रानी का बाग, जयपुर का एक लोकप्रिय गार्डन है जो शहर से लगभग 8 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस गार्डन का निर्माण 1728 में राजा सवाई जय सिंह द्वारा अपनी रानी सिसोदिया के लिए किया था। बगीचे की वास्तुकला भारतीय और मुगल शैली से प्रेरित है जिसमें फव्वारे, दीघाओं और पेंट मंडप का काफी अच्छा डेकोरेशन है। गार्डन में आने वाले पर्यटक भगवान कृष्ण और राधा जी की प्रेम कहानी का खूबसूरती से किया गया चित्रण भी देख सकते है। वैसे इस गार्डन में विवाह व अन्य शुभ कार्य भी होते है
सांभर झील जयपुर
सांभर झील भारत के राजस्थान राज्य में जयपुर नगर के समीप स्थित है। यह लवण जल अर्थात 'खारे पानी' की झील है। यह देश की सबसे बडी खारे पानी की झील और नमक का सबसे बड़ा स्रोत होने के साथ ही पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यन्त आकर्षक स्थल है। इस झील से नमक उत्पादन हेतु 'साम्भर नामक परियोजना' भी चलाई जा रही है। उत्तर भारत के चौहान राजाओं की प्रथम राजधानी सांभर पौराणिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहाँ पर शाकम्भरी देवी का मंदिर है।सांभर झील समुद्र तल से 1,200 फुट की ऊँचाई पर स्थित है।
जब यह झील भरी रहती है, तब इसका क्षेत्रफल 90 वर्ग मील रहता है।
सांभर झील में तीन नदियाँ आकर गिरती हैं।
झील से बड़े पैमाने पर नमक का उत्पादन किया जाता है।
अनुमान है कि अरावली के शिष्ट और नाइस के गर्तों में भरा हुआ गाद ही नमक का स्रोत है। गाद में स्थित विलयशील सोडियम यौगिक वर्षा के जल में घुसकर नदियों द्वारा झील में पहुँचाता है और जल के वाष्पन के पश्चात झील में नमक के रूप में रह जाता है
बिड़ला मंदिर जयपुर
बिड़ला मंदिर राजस्थान राज्य के जयपुर नगर के मोती डुंगरी के ठीक नीचे स्थित भगवान लक्ष्मीनारायण को समर्पित एक ख़ूबसूरत मंदिर है। जयपुर का बिड़ला मंदिर 1988 में बनाया गया था। जयपुर का बिड़ला मंदिर सफ़ेद संगमरमर में की गई सूक्ष्म नक़्क़ाशी के लिए प्रसिद्ध है। बिड़ला मंदिर को बड़ला प्रतिष्ठान ने जयपुर के तत्कालीन महाराजा से एक रुपये की नाममात्र की राशि देकर ख़रीदा था। बिड़ला मंदिर की मूर्तिकला देखने योग्य है और इसे राजमिस्त्रियों व मूर्तिकारों की निरंतर प्रवर्तमान कला का उदाहरणप्रदर्श माना गया है। बिड़ला मंदिर में कितने ही देवी-देवताओं की सुन्दर-सुन्दर मूर्तियाँ है। बिड़ला मंदिर की बाहरी दीवारों पर अनेक महान ऐतिहासिक विभूतियाँ और धार्मिक व्यक्तित्व चित्रित हैं जिनमें सुकरात, जरथुस्त्र, ईसा मसीह, गौतम बुद्ध और कंफ्यूशियस आदि हैं।।कैसे पहुँचें जयपुर एयर द्वारा
जयपुर का नजदीकी एयरपोर्ट संगानेर है जो शहर से कुल 11 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह जयपुर का नजदीकी एयरबेस है। यह एयरपोर्ट देश के कई शहरों जैसे मुम्बई, दिल्ली, औरंगाबाद, उदयपुर और जोधपुर आदि से फ्लाइट द्वारा सीधे जुड़ा है। यात्री, एयरपोर्ट से शहर तक आने के लिए टैक्सी किराए पर ले सकते है।
कैसे पहुँचें जयपुर ट्रेन द्वारा
जयपुर रेलवे स्टेशन, राजस्थान राज्य का सेंट्रल रेल हेड है। यह देश के कई मुख्य शहरों से नियमित रूप से चलने वाली ट्रेनों द्वारा जुड़ा है। कॉमन ट्रेन के अलावा, पर्यटक जयपुर तक एक स्पेशल ट्रेन के द्वारा भी पहुंच सकते है जिसे पैलेस ऑन व्हील कहा जाता है। यह ट्रेन दिल्ली से चलती है। यह एक लक्जरी ट्रेन है जो राजस्थान के प्रमुख शहरों जैसे जयपुर, अल्वर, और उदयपुर से होकर गुजरती है।
कैसे पहुँचें जयपुर सड़क मार्ग
पिंक सिटी जयपुर, देश के गंतव्य स्थलों तक सड़क मार्ग द्वारा भली - भांति जुड़ा हुआ है। नई दिल्ली और आगरा से जयपुर के लिए कई सीधी बसें मिलती है। दिल्ली और आगरा के बीच का यह सड़क मार्ग गोल्डन ट्रैवल क्षेत्र का हिस्सा है।
जयपुर
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विवरण | जयपुर राजस्थान राज्य की राजधानी है। यहाँ के भवनों के निर्माण में गुलाबी रंग के पत्थरों का उपयोग किया गया है, इसलिए इसे 'गुलाबी नगर' भी कहते हैं। |
राज्य | राजस्थान |
ज़िला | जयपुर ज़िला |
निर्माता | राजा जयसिंह द्वितीय |
स्थापना | सन 1728 ई. में स्थापित |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 26.9260°, पूर्व- 75.8235° |
प्रसिद्धि | कराँची का हलवा |
कब जाएँ | सितंबर से मार्च[1] |
कैसे पहुँचें | दिल्ली से अजमेर शताब्दी और दिल्ली-जयपुर एक्सप्रेस से जयपुर पहुँचा जा सकता है। कोलकाता से हावड़ा-जयपुर एक्सप्रेस औरमुम्बई से अरावली व बॉम्बे सेन्ट्रल एक्सप्रेस से जयपुर पहुँचा जा सकता है। दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 8 से जयपुर पहुँचा जा सकता है जो 256 किलोमीटर की दूरी पर है। राजस्थान परिवहन निगम की बसें अनेक शहरों से जयपुर जाती हैं। |
जयपुर के दक्षिण में स्थित संगनेर हवाई अड्डा नज़दीकी हवाई अड्डा है। जयपुर और संगनेर की दूरी 14 किलोमीटर है। | |
जयपुर जंक्शन | |
सिन्धी कैम्प, घाट गेट | |
स्थानीय बस, ऑटो रिक्शा, साईकिल रिक्शा | |
क्या देखें | सिटी पैलेस , हवा महल, जन्तर मन्तर, जल महल, अल्बर्ट हॉल संग्रहालय, आमेर का क़िला,अम्बर क़िला, सांभर झील, गोविंद देवजी का मंदिर आदि |
क्या ख़रीदें | कला व हस्तशिल्प द्वारा तैयारआभूषण, हथकरघा बुनाई, आसवन व शीशा, क़ालीन, कम्बल आदि ख़रीदे जा सकते हैं। |
एस.टी.डी. कोड | 0141 |
गूगल मानचित्र, हवाई अड्डा | |
अन्य जानकारी | जयपुर सूखी झील के मैदान में बसा है जिसके तीन ओर की पहाड़ियों की चोटी पर पुराने क़िले हैं। यह बड़ा सुनियोजित नगर है। |
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