करौली का सफर
करौली राजस्थान में एक जिला है जो जयपुर से 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । ये जिला 5530 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है । पूर्व में इस स्थान का बाम कल्याणपुरी था जो यहाँ की एक स्थानीय देवी कल्याणजी के नाम के बाद रखा गया था । करौली में 300 मंदिरों की उपस्थिति इसे राज्य के पवित्रतम स्थानों में से एक बनती है।
चूँकि मध्ययुगीन काल में इस स्थान में लगातार हमलों का खतरा था,अतः इस कारण पूरे जिले को एक किले की तरह बनाया गया था। उस समय इस जिले में एक दीवार बनाई गयी जो लाल बलुआ पत्थरों की थी जो यहाँ आज भी मौजूद है । वर्तमान में ये दीवार अपना बुरा दौर देख रही है और जीर्ण हालत में है। इस दीवार में 6 मुख्य द्वार है और इसके अलग अलग हिस्सों में कुछ खिडकियां भी हैं जो इस दीवार को एक मजबूत ढांचा बनाते हैं।
करौली ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है और 902 फुट की औसत ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ का सबसे ऊंचा शिखर 1400 फिट की ऊंचाई पर स्थित है । किंवदंतियों के अनुसार, इस राज्य का निर्माण 995 ई में भगवान कृष्ण के 88 वें वंशज राजा बिजाई पाल जादोन द्वारा किया गया था । हालांकि, आधिकारिक तौर पर करौली यदुवंशी राजपूत, राजा अर्जुन पाल द्वारा 1348 ई. में स्थापित किया गया।
राजस्थान का ये जिला अपनी लाल पत्थर वास्तुकला के लिए जाना जाता है साथ ही इस शहर में सिटी पैलेस, तिमांगढ़ किला, कैला देवी मंदिर, मदन मोहन जी मंदिर इस शहर को वास्तुकला और पर्यटन दोनों की दृष्टी से महत्त्वपूर्ण बनाते हैं। आज भी यहाँ स्थित सिटी पैलेस को क्षेत्र की समृद्ध विरासत का एक प्रतीक माना जाता है ।
मेले और त्योहार
पूरे उत्तर भारत में मेलों का अपना एक विशेष महत्त्व है कुछ इसी तर्ज पर राजस्थान के लोगों में भी मेले के प्रति खासी दिलचस्पी है । करौली में भी हिंदू महीने चैत्र (मार्च - अप्रैल) के दौरान एक मेले का आयोजन किया जाता है जिसको देखने के लिए काफी दूर दूर से लोग आते हैं।
यहाँ आने वाले पर्यटकों में हमेशा ही उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा के लोगों की तादाद ज्यादा रहती है। करौली की एक प्रमुख आबादी हस्तशिल्प, जो करौली आने वाले पर्यटकों के लिए लोकप्रिय स्मृति चिन्ह है बनाने में लगी हुई है और यही इस वर्ग का मुख्य व्यवसाय भी है ।
करौली पहुंचना
जयपुर स्थित सांगानेर हवाई अड्डे और गंगपुर रेलवे स्टेशन से आसानी से करौली पहुंचा जा सकता है । इन सब के अलावा सड़कों का एक अच्छा नेटवर्क होने की वजह से यहाँ सड़क मार्ग से भी जाया जा सकता है।
करौली घूमने का सबसे अच्छा मौसम सितम्बर से मार्च के बीच का है।
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करौली स्थित भंवर विलास पैलेस को उस समय के तत्कालीन शासक महाराजा गणेश पाल देव बहादुर के द्वारा 1938 में बनाया गया था, तब इस पैलेस में तत्कालीन शाही परिवार निवास करता था। ये एक एक औपनिवेशिक शैली में बनाया गया पैलेस है जो उस समय की सजावट और फर्नीचर से सुसज्जित है। आज ये स्थान एक मॉडर्न हेरिटेज होटल के रूप में विकसित हो चुका है जहाँ समस्त सुख सुविधाओं से लैस 45 कमरे हैं।
तीमंगढ़ किला, करौली
तीमंगढ़ किला , मसलपुर उप तहसील के अन्दर आने वाले करौली के पास ही स्थित है। इतिहासकारों का मानना है की यहाँ निर्मित ये किला 1100 ई में बनवाया गया था जो जल्द ही नष्ट कर दिया गया। इस किले को 1244ई में यदुवंशी राजा तीमंपल जो राजा विजय पाल के वंशज थे द्वारा दोबारा बनवाया गया था। लोगों का मानना है की आज भी इस किले में अष्ठधातु की प्राचीन मूर्तियां, मिट्टी की विशाल और छोटी मूर्तियों को इस किले के मंदिर के नीचे छुपाया गया है। यहाँ बने मंदिरों की छतों और स्तंभों पर सुंदर ज्यामितीय और फूल के नमूने किसी भी पर्यटक का मन मोहने के लिए काफी हैं साथ ही यहाँ आने वाले पर्यटक मंदिर के स्तंभों पर अलग अलग देवी देवताओं की तस्वीरों को भी बनाया गया है जो प्राचीन कला का एक बेमिसाल नमूना है। कई रिकॉर्ड साइट से खोज की पुष्टि करते हैं कि किला 1196 और 1244 ई. के लोगों के बीच मुहम्मद घोरी बलों द्वारा कब्जा किया गया था का मानना है कि वहाँ एक सागर झील के तल पर पत्थर पारस, किले के पक्ष में मौजूद है। इस साइट से प्राप्त कई रिकॉर्ड इस बात की पुष्टि करते हैं कि 1196 से 1244 के बीच इस किले पर मुहम्मद गौरी ने कब्ज़ा कर रखा था। लोगों का मानना है की आज भी किले के पास स्थित सागर झील में पारस पत्थर है जिसके स्पर्श से कोई भी चीज सोने की हो सकती है।
अमरगढ़ किला, करौली
अमरगढ़ किला 250 साल पुराना किला है जो यहाँ अमरगढ़ गाँव के पास स्थित एक पहाड़ की चोटी पर स्थित है । इस किले का नाम राजा अमर मल के नाम पर रखा गया जिन्होंने इस किले का निर्माण कराया था । धान के खेत और प्रचुर मात्रा में हरियाली इस किले की शोभा में चार चाँद लगाती हैं। चारों तरफ से जंगलों और पहाड़ों से घिरा होने के कारण यहाँ आने वाले पर्यटक को एक बेहतरीन दृश्य देखने को मिलता है।
कैला देवी वन्यजीव अभयारण्य, करौली
कैला देवी वन्यजीव अभयारण्य करौली में स्थित है जो राजस्थान मध्य प्रदेश सीमा से लगा हुआ है ये वन्य जीव अभ्यारण 676.40 वर्ग किमी के एक क्षेत्र में फैला हुआ है। इस अभयारण्य के पश्चिमी किनारे पर बनास नदी बहती है जबकि दक्षिण - पूर्व दिशा में चम्बल नदी का प्रवाह है। ये अभयारण्य, जो केला देवी मंदिर के नाम पर है दर्शकों को प्रकृति के लिए एक सुंदर परिदृश्य प्रस्तुत करता है। इस अभयारण्य में चिंकारा, जंगली सुअरों और सियार के अलावा बाघ, तेंदुओं , स्लॉथ भालू, हाइना, भेड़ियों और साम्भर को आसानी से विचरण करते हुए देखा जा सकता है।
सिटी पैलेस, करौली
राजस्थान के करौली स्थित सिटी पैलेस का निर्माण 14 वीं शताब्दी में यहाँ के शाही परिवार द्वारा किया गया था । ये महल अपने क्लासिक चित्रों, पत्थर की नक्काशी, वास्तुकला और जाली के काम के कारण बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ के दरबार हॉल में कई सारी पुरानी तस्वीरें हैं जो यहाँ के 600 साल पहले के आर्ट वर्क को दर्शाती हैं। ये महल 1938 तक यहाँ के शाही परिवार का सरकारी निवास था जो यहाँ स्थित एक अन्य दूसरे महल भंवर विलास पैलेस के निर्माण के बाद वहां रहने चली गयी। हालांकि मूल सिटी पैलेस का निर्माण 14 वीं सदी में हुआ था जबकि वर्तमान सिटी पैलेस 18 वीं सदी में बना है जिसके अन्दर की वास्तुकला और इसके अन्दर किया गया काम मन मोह लेने वाला है।
कल्याणजी मंदिर, करौली
कल्याणजी मंदिर, राजस्थान के करौली में स्थित है जिसे आज से 200 साल पहले महाराजा गोपाल सिंह द्वारा बनवाया गया था। यहाँ के लोगों द्वारा कल्याणजी को अपना कुल देवता माना जाता है इस कारण करौली को पहले कल्याणपुरी के नाम से जाना जाता था। ये यहां स्थित प्रमुख मंदिर है जिसके मुख्य हॉल में कल्याणजी की एक विशाल मूर्ति है जो बेहतरीन वास्तुकला और सुन्दर पारंपरिक शैली को दर्शाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार ये मंदिर करौली के कल्याण और विकास को बल प्रदान करता है साथ ही प्राचीन समय में युद्ध के समय इसका मार्गदर्शन और इसे ताकत देता था।
शॉपिंग, करौली
यहाँ के स्थानीय बाज़ारों में शॉपिंग हमेशा से ही एक रमणीय काम रहा है। या यूँ भी कहा जा सकता है की यदि आपने यहाँ के स्थानीय बाज़ारों से खरीदारी नहीं की तो आपकी यात्रा अधूरी है। यहाँ आने वाले पर्यटक यहाँ के स्थानीय बाज़ारों से हस्तशिल्प खरीद सकते हैं जिनमें हाथ की छपाई से बनाए गए कपडे, कड़े, चूडियां आदि शामिल हैं। जब भी आप इन सामानों को निहारेंगे तो करौली आपकी आँखों के सामने आ जायगा। यहाँ आने वालों को करौली स्थित चूड़ी बाज़ार में चूड़ियां खरीदते हुए देखा जा सकता है। यहाँ आने वाले लोग सामान को चुनते है उस पर मोल तोल करते हैं यहाँ ये सब देखना एक आम बात है। हमारी तरफ से यहाँ आने वाले पर्यटकों को ये सलाह दी जाती है की वे यहाँ अगर कुछ भी लें तो उसका मोल तोल अवश्य करें।
मदन मोहन जी मंदिर, करौली
मदन मोहनजी मंदिर करौली किले के अन्दर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण महाराजा गोपाल सिंह ने करवाया था जिन्होंने इस मंदिर को मदन मोहनजी जो भगवान कृष्ण के एक रूप है को समर्पित किया था । इस मंदिर में भगवान कृष्ण और देवी राधा की 2 मूर्तियाँ है जो 3 और 2 फीट उंची हैं । लोगों का मानना है की दौलताबाद को जीतने के बाद एक बार महाराजा गोपाल सिंह ने भगवान श्री कृष्ण को अपने सपने में देखा जिन्होंने राजा को अपना मंदिर बनवाने का निर्देश दिया था राजा ने निर्देश का पालन करते हुए अजमेर से भगवान की मूर्ति मंगवाई और उसे यहाँ स्थापित कराया। इस मंदिर के निर्माण में करौली के पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है जिसकी वास्तुकला मन को मोह कर रख देने वाली है साथ ही ये मंदिर मध्ययुगीन कला को बहुत ही बेहतर ढंग से दर्शाता है । मंदिर के गर्भगृह के चक्करदार पथ पर चित्रों की एक बड़ी संख्या को
भी देखा जा सकता है। मंदिर की वास्तुकला के सौंदर्य को गर्भगृह, चौक और यहाँ के विशाल जगमोहन में दर्शाया गया है। राधा और कृष्ण से सम्बन्ध रखने वाले त्योहारों को यहाँ के लोगों द्वारा बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है । यहाँ आने वाले पर्यटक जन्माष्टमी, राधा अष्ठमी, गोपष्ठमी और हिंडोला में भाग ले सकते हैं साथ ही यहाँ पर अमावस्या में स्थानीय लोगों के अलावा बाहर से आये हुए लोगों के लिए एक मेले का भी आयोजन किया जाता है।
रामाथरा किला, करौली
ये किला राजस्थान के सपोतारा में स्थित है । ये किला भरतपुर और सवाई माधोपुर में रणथंभौर टाइगर रिजर्व में केवलादेव घाना पक्षी अभयारण्य के बीच स्थित है। केला देवी वन्यजीव
अभयारण्य इस किले से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह किला झील के किनारे और गाँव के मनोरम दृश्य के लिए प्रसिद्द है। ये किला 1645 में राजा भोजपाल को उनके पिता की तरफ से जागीर में मिला था जो यहाँ के राजा थे । उस समय ठाकुर बृजेंद्र राज पाल और उनके परिवार द्वारा इस किले का प्रबंधन किया जाता था।
इस किले के अन्दर दो मंदिर हैं जिसमें से एक भगवान गणेश तो दूसरा भगवान शिव को समर्पित है। यहाँ स्थित शिव मंदिर में भगवान शिव की एक संगमरमर से बनी विशाल मूर्ति है जो 18 वीं शताब्दी की वास्तुकला को दर्शाती है। इस किले की यात्रा करने पर यहाँ आने वाले पर्यटक सुन्दर खेतों, डांग के पठार कलिसिल झील के मनोरम दृश्यों को भी देख सकते हैं। भरतपुर पक्षी अभयारण्य यहाँ से नजदीक होने के कारण यहाँ आप सुदूर देश से उढ़कर आने वाली चिड़ियों को भी देख सकते हैं।
शिव महावीर जी मंदिर, करौली
शिव महावीर जी मंदिर करौली के चन्दन गांव में स्थित है। कई साल पहले इस गांव से भगवान महावीर की 78 सेमी ऊंची प्रतिमा खुदाई में इस गाँव से निकली थी और उसी के बाद इस मंदिर का निर्माण किया गया था ये प्रतिमा तांबे की है जिसमें भगवान महावीर पद्मासन मुद्रा में बैठे हुए हैं।
कैलादेवी मन्दिर करौली
कैलादेवी मन्दिर राजस्थान राज्य के करौली नगर में स्थित एक प्रसिद्व हिन्दू धार्मिक स्थल है। जहाँ प्रतिवर्ष मार्च - अप्रॅल माह में एक बहुत बड़ा मेला लगता है। इस मेले में राजस्थान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश के तीर्थ यात्री आते है। मुख्य मन्दिर संगमरमर से बना हुआ है जिसमें कैला (दुर्गा देवी) एवं चामुण्डा देवी की प्रतिमाएँ हैं। कैलादेवी की आठ भुजाऐं एवं सिंह पर सवारी करते हुए बताया है। यहाँ क्षेत्रीय लांगुरिया के गीत विशेष रूप से गाये जाते है। जिसमें लांगुरिया के माध्यम से कैलादेवी को अपनी भक्ति-भाव प्रदर्शित करते है।
इतिहास
उत्तर भारत के प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में ख्याति प्राप्त कैला देवी मंदिर देवी भक्तों के लिए पूजनीय है, यहाँ आने वालों को सांसारिक भागमभाग से अलग अनोखा सुकून मिलता है। यही कारण है कि साल दर साल कैला माँ के दर्शनार्थियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। राजस्थान के करौली ज़िला से लगभग 25 किमी दूर कैला गाँव में कैला देवी मंदिर स्थापित है। त्रिकूट मंदिर की मनोरम पहाड़ियों की तलहटी में स्थित इस मंदिर का निर्माण राजा भोमपाल ने 1600 ई. में करवाया था। इस मंदिर से जुड़ी अनेक कथाएं यहाँ प्रचलित है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव और देवकी को जेल में डालकर जिस कन्या योगमाया का वध कंस ने करना चाहा था, वह योगमाया कैला देवी के रूप में इस मंदिर में विराजमान है। एक अन्य मान्यता के अनुसार पुरातन काल में त्रिकूट पर्वत के आसपास का इलाका घने वन से घिरा हुआ था। इस इलाके में नरकासुर नामक आतातायी राक्षस रहता था। नरकासुर ने आसपास के इलाके में काफ़ी आतंक कायम कर रखा था। उसके अत्याचारों से आम जनता दु:खी थी। परेशान जनता ने तब माँ दुर्गा की पूजा की और उन्हें यहाँ अवतरित होकर उनकी रक्षा करने की गुहार की। बताया जाता है कि आम जनता के दुःख निवारण हेतु माँ कैला देवी ने इस स्थान पर अवतरित होकर नरकासुर का वध किया और अपने भक्तों को भयमुक्त किया। तभी से भक्तगण उन्हें माँ दुर्गा का अवतार मानकर उनकी पूजा करते हुए आ रहे हैं। कैला देवी का मंदिर सफ़ेद संगमरमर और लाल पत्थरों से निर्मित है,
सुख विलास बाग एवं शाही कुण्ड
ज़िला मुख्यालय स्थित भद्रावती नदी के किनारे एक सुन्दर महलनुमा चारदिवारी के अन्दर बाग लगाया गया था जिसका उपयोग रानियाँ अपने आमोद-प्रमोद के लिए करती थीं। अत: इसे सुख विलास बाग कहते है। शहर के पर कोटे के बहार सुखविलास के पास भव्य शाही कुण्ड बना हुआ है। तीन मंज़िला बावडीनुमा इस कुण्ड की बनावट अद्वितीय है इसमें प्रत्येक मंज़िल पर बरामदे एवं उतरने हेतू चारो तरफ सीढियां बनी है। रियासत काल में इस कुण्ड का उपयोग शहर में पेयजल सप्लाई के लिए किया जाता था।
रावल पैलेस (राजमहल)
तेरहवीं शताब्दी में स्थापित राजमहल (रावल पैलेस) लाल व सफेद पत्थर के शिल्प का बेजोड़ नमूना है। नक़्क़ाशी व कलात्मक चितराम से सुसजिजत विशाल द्वार, जालीदार झरोखे, तोपखाना, नाहर कटहरा, सुर्री गुर्ज, गोपालसिंह अखाडा, भवर बैंक, नजर बगीची, मानिक महल, फ़व्वारा कुण्ड, बारह दरी, गोपाल मन्दिर, दीवान ए आम, फौज कचहरी, किरकिरी खाना, ज्ञान बगला, शीश महल, मोतीमहल, हरविलास, रंगलाल, गेंदघर, टेडा कुआ, जनानी डयौढी आदि कुशल स्थापत्य के साथ-साथ यहां की सभ्यता व संस्कृति के परिचायक है।
बहादुरपुर का क़िला
करौली ज़िला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर मण्डरायल मार्ग पर ससेड गांव के पास जंगल और सुनसान वातावरण में अटल योद्वा सा खड़ा बहादुरपुर का क़िला मुग़लकालीन स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। दो मंज़िला नृप गोपाल भवन, सहेली की बाबडी कलात्मक झरोखे 18 फीट लम्बी चीरियों की आमखास कचहरी, पंचवीर, मगधराय की छतरी दर्शनीय है। यदुवंशी राजा तिमनपाल के पुत्र नागराज द्वारा निर्मित इस क़िले का विस्तार सन 1566 से 1644 तक होता रहा। जयपुर के राजा सवाई जयसिंह ने इस क़िले में तीन माह तक प्रवास किया था।
मण्डरायल का क़िला
करौली शहर से 40 किलो मीटर दूर दक्षिण पूर्व में पहाड़ों के मध्य एक आयताकार पहाड़ी के नीचे बसी एक मध्यकालीन बस्ती है, जो दो प्रान्तों को विभक्त करते हुए चम्बल नदी के किनारे मण्डरायल नाम से जानी जाती है। एतिहासिक दृष्टि से एक गजिटयर के अनुसार यह दुर्ग यादवों के इस क्षेत्र में प्रवेश से पूर्व का है। करौली रियासत की गाँव निर्देशिका में इसके निर्माणकर्ता के रूप में बीजाबहादुर को दर्शाया गया है, जिसकी कौम एंव काल का कोई ज़िक्र नहीं है। किवदंतियों के अनुसार पूर्व में इस दुर्ग पर मियां मकन का आधिपत्य होने के कारण उसी के नाम से कालान्तर में अपभ्रंश होकर दुर्ग का नाम मण्डरायल हो गया। यहां मुख्य दरवाज़े के रूप में दो गोलाकार गुबंद है। दूसरा दरवाज़ा सूर्यपोल नाम हैं, जो रानीपुरा इलाके की तरफ उतरता है। इस दरवाज़े की ख़ासियत है कि पौर से प्रात: से सांय तक सूर्य का प्रकाश रहता है। इसके अन्दर एक सुरक्षित टंकी और बाहर दो तालाब है। तालाब के किनारे त्रिदेव भगवान के मन्दिर ओर बारहदारी है। पूर्व में इस क़िले की दीवारों पर उर्दू में कुछ घटनायें लिपिबद्व थी, जो अब नष्ट हो चुकी है।
खरीदारी
करौली में चमड़े की जूतियां, चांदी के गहने और स्टील का सामान बहुत मशहूर है। इन्हें खरीदने के लिए सिटी पेलेस के पास के बाजार में जा सकते हैं। इसके अलावा मिट्टी से बनी भगवान की मूर्तियां और दूध की मिठाइयां भी लोगों का खूब पसंद आती हैं। इस बाजार में कोई बड़ा सामान मिलना मुश्किल है लेकिन स्थानीय लोगों द्वारा बनाए जाने वाली लाख और कांच की चूडि़यां खरीदी जा सकती हैं। लकड़ी के खिलौने सैलानियों को लुभाते हैं।
करौली-एक नजर में
राज्य: राजस्थान
लोकेशन: चंबा नदी के उत्तर में भद्रवती नदी के किनारे
क्षेत्रफल: 5530 वर्ग किमी.
समुद्र तल से ऊंचाई: 275 मी
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