अलवर का सफर
अलवर का सफर राजस्थान
अलवर एक पहाड़ी क्षेत्र है जो राजस्थान राज्य में अरावली की पथरीली चट्टानों के बीच स्थित है। यह स्थान अलवर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस क्षेत्र को मत्स्य देश के नाम से जाना जाता था जहाँ पांडवों ने अपने निर्वासन का 13 वाँ वर्ष भेष बदलकर बिताया था। ऐतिहासिक रूप से यह स्थान मेवाड़ के नाम से भी जाना जाता था। अलवर सुंदर झीलों, भव्य महलों, शानदार मंदिरों, शानदार स्मारकों और विशाल किलों के लिए प्रसिद्द है।
किले, महल, झील, संग्रहालय और अधिक …
पर्यटक अलवर आते हैं ताकि वे बाला किले का भ्रमण कर सकें, जो अलवर किले के नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण वर्ष 1550 में हसन खान मेवाती ने करवाया था। किले की चिनाई और संरचनात्मक डिज़ाईन की भव्यता पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है।
इस किले में छह द्वार हैं जैसे जय पोल, लक्ष्मण पोल, सूरत पोल, चाँद पोल, अंधेरी द्वार और कृष्णा द्वार। सिटी पैलेस और विजय मंदिर पैलेस अलवर के अन्य वास्तु चमत्कार हैं। प्रथम पैलेस(महल) अपनी वास्तुकला की शैली और और संग्रहालय के लिए प्रसिद्द है। विजय मंदिर महल 105 भव्य कमरों, सुरम्य उद्यान और एक झील के लिए जाना जाता है।
इस स्थान के अन्य पर्यटन के आकर्षण जयसमंद झील, सिल्लीसेढ़ झील और सागर झील हैं। अलवर की यात्रा करते समय पर्यटक मूसी महारानी की छतरी, त्रिपोलिया, मोती डूंगरी, भानगढ़ के अवशेष, कंपनी बाग, क्लॉक टॉवर, सरकारी संग्रहालय, फ़तेह जंग का मकबरा, कलाकंद बाज़ार और नाल्देश्वर भी देख सकते हैं
अलवर पहुँचना
पर्यटक रेल, वायुमार्ग और रास्ते द्वारा अलवर पहुँच सकते हैं। अलवर का निकटतम हवाई अड्डा जयपुर का सांगानेर हवाई अड्डा है। विदेशी पर्यटक नई दिल्ली के इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से इस गंतव्य तक पहुँच सकते हैं। अलवर रेलवे स्टेशन दिल्ली और जयपुर से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन दोनों स्थानों से टैक्सी सुविधा उपलब्ध है। पड़ोसी शहरों से अलवर के लिए बस और टैक्सी भी चलती हैं।
अलवर में वर्ष में अधिकांश समय मौसम सूखा होता है। अक्टूबर से मार्च के बीच का समय छुट्टियों में अलवर की यात्रा के लिए उत्तम होता है।
बाला किला, अलवर
बाला किला जिसे अलवर किले के नाम से भी जाना जाता है, अलवर शहर में एक पहाड़ी पर स्थित है। इस किले का निर्माण ईसा पश्चात वर्ष 1550 में हसन खान मेवाती ने करवाया था। यह स्मारक अपने चिनाई के माक और भव्य संरचनात्मक डिज़ाइन के लिए प्रसिद्द है। यहाँ छह प्रमुख द्वार हैं जो इस प्रकार हैं, जय पोल, लक्ष्मण पोल, सूरत पोल, चाँद पोल, अंधेरी द्वार और कृष्णा द्वार जो किले की ओर जाते हैं। किले की संपूर्ण संरचना उत्तर से दक्षिण की ओर 5 किलोमीटर और पूर्व से पश्चिम की ओर 2 किलोमीटर तक फ़ैली हुई है। इस किले में बंदूकें चलाने के लिए 446 छिद्र हैं। 15 बड़े टॉवर और 51 छोटे टॉवर इस भव्य स्मारक को बनाते हैं। यह किला जो अपनी वास्तुकला के डिज़ाइन के लिए प्रसिद्द है, मुगल काल में बनाया गया था और बाद में इस पर कछवाहा राजपूतों ने कब्ज़ा कर लिया।
सिटी पैलेस, अलवर
सिटी महल जिसे विनय विलास महल भी कहा जाता है, अलवर शहर का एक भव्य महल है जो महाराजाओं की प्रतापी जीवन शैली की एक झलक प्रस्तुत करता है। इस भव्य स्मारक का निर्माण राजा बख्तावर ने ईसा पश्चात 1793 में करवाया था। इस महल का एक जीवंत इतिहास है। अनेक प्रसिद्द मुगल राजा जैसे बाबर, जहाँगीर और
राजपूत राजा जैसे महाराजा प्रताप सिंह ने इस किले में समय बिताया है। यह शानदार संरचना अपने केंद्रीय आँगन के लिए प्रसिद्द है जिसमें संगमरमर से बनाया हुआ कमल के आकार का टॉवर है। इस भव्य महल के दर्पण और दीवारों का काम तथा साथ ही साथ लघु चित्रों की शानदार श्रेणी दर्शकों के लिए दावत के समान है। महल के राजकोष में सोने और मखमल से अलंकृत सिंहासन और एक अमूल्य पीने का कप है जो एक अकेले पन्ने को काटकर बनाया गया है। अस्तबल बहुत बड़ा है और यहाँ चार हाथियों वाला दो मंजिली रथ है। इस महल में अब एक संग्रहालय है जहाँ शाही यादगार, ऐतिहासिक वस्तुएँ, कीमती टुकड़े और कुछ दुर्लभ पांडुलिपियाँ संरक्षित हैं।
नीमराना हिल फोर्ट केसरोली
केसरोली में स्थित व 14वीं सदी में निर्मित ये किला अब एक हेरिटेज होटल बन चुका है । ये किला एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है जहाँ से आने वाले पर्यटक गाँव की खूबसूरती और उसके हरे भरे वातावरण को निहार सकते हैं । इस किले का निर्माण 6 सदी पूर्व यदुवंसी राजपूतों द्वारा किया गया था जो भगवान कृष्ण के वंशज माने जाते हैं । सुरक्षा और युद्ध के दृष्टिकोण से इस किले को बेहद मजबूत बनाया गया था।समय के साथ साथ इस किले पर कई अलग अलग शासकों ने अपना झंडा फहराया। पहले इस किले पर मुग़लों, जाटों और 1775 के बाद जब अलवर राज्य की स्थापना हुई तब यहाँ इस किले पर राजपूतों ने अपना शासन किया। यह किला कई राजवंशों की उत्पत्ति और उनके विनाश का गवाह रहा है। अब इस किले को कमांडर मंगल सिंह द्वारा नीमराना हेरिटेज को लीज पर दे दिया गया है जिसे इनके द्वारा एक आलिशान होटल में तब्दील कर दिया गया है। यह होटल अपनी खूबसूरत नक्काशी और धनुषाकार बरामदे के कारण हमेशा ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है और आज इसका शुमार भारत के सबसे अच्छे हेरिटेज होटलों में है।
क्लॉक टावर, अलवर
क्लॉक टॉवर अलवर में चर्च रोड पर एक स्मारक है। टावर के शीर्ष पर एक बड़ी चार पक्षीय घड़ी है जिसे बहुत दूर से देखा जा सकता है और यह पर्यटन का मुख्य आकर्षण है। टावर के निचले हिस्से में सुंदर वास्तुशिल्प संरचनाएँ हैं जबकि मध्य भाग में कुछ लोकप्रिय देशभक्ति नारे हैं। यह प्राचीन टावर भीड़भाड़ वाले चौराहे, पुराने बाज़ारों और आस पास के व्यस्त इलाकों में आज भी भव्यता से खड़ा है। यह वास्तुशिल्प प्राचीन राजपूत शासनकाल का एक शानदार दिखावा है।
सरकारी संग्रहालय, अलवर
राजकीय संग्रहालय अलवर के इतिहास की झलक प्रदान करता है। यह सिटी पैलेस के अंदर स्थित है। इस संग्रहालय में ताड़ के पत्तों पर चित्रों और लेखन का एक दुर्लभ संग्रह प्रदर्शित किया गया है। पर्यटक यहाँ प्राचीन शाही हथियारों, फारसी और संस्कृत पांडुलिपियों, संगीत वाद्ययंत्र, बीदर काम, भरवां पशु, लघु चित्रों, मिट्टी के बर्तनों और पीतल का काम भी देख सकते हैं। हाथी दांत का काम और रंग रोगन की गई मूर्तियां संग्रहालय के मुख्य आकर्षण हैं।
कंपनी बाग़, अलवर
कंपनी बाग़ एक सुंदर उद्यान है, हरियाली और आकर्षक लॉन इसका गौरव है एवं यह चारों ओर से सैर करने वाले विशाल स्थानों से घिरा हुआ है। यह अलवर के ध्यान आकर्षित करने वाले स्थलों में से एक है। इस बाग़ को राजा शिव दान सिंह ने ईसा पश्चात 1868 में बनवाया था।
देश के मरूस्थलीय क्षेत्र में स्थित, यह प्रचुर हरियाली थार मरूस्थल के मध्य में एक सुखदायक स्थल के रूप में भी जानी जाती है। इस उद्यान में विशिष्ट बंगाली शीर्ष और मोड़ के साथ एक “छतरी” भी स्थापित की गई है। इस उद्यान में एक प्रमुख संरचना भी है जिसे शिमला हाउस कहा जाता है और यह अपने बड़े वॉल्ट( गुफा, खोह) आकार के लिए प्रसिद्ध है। यह वास्तुशिल्प वैभव महाराजा मंगल सिंह द्वारा ईसा पश्चात 1885 में गर्मी के लिए एक घर के रूप में बनवाया था।
कलाकंद बाज़ार, अलवर
कलाकंद बाज़ार खरीददारों के लिए एक आनंद है जो मुँह में पानी लाने वाले मीठे व्यंजनों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस बाज़ार में कई विभिन्न गलियाँ है जिनके नाम इनमें मिलने वाले प्रसिद्ध व्यंजनों के नाम पर रखे गये हैं। पर्यटक आस पास की दुकानों में आकर्षक हस्तकला एवं आभूषण उचित कीमतों पर खरीद सकते हैं। इस बाज़ार के खरीददारी के क्षेत्र सराफा बाज़ार, बजाजा बजार, होप सर्कस, केडालगंज बाज़ार और मालाखेडा बाज़ार के नाम से भी जाने जाते हैं। यह बाज़ार मंगलवार को छोडकर पूरे सप्ताह खुला रहता है।
नालदेश्वर, अलवर
नालदेश्वर, अलवर शहर से 24 किमी दूर दक्षिण में स्थित है। यह सुरम्य गांव अपने प्राचीन महादेव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह पत्थर की चोटियों और सुंदर हरियाली से चारों ओर से घिरा हुआ है। इस मंदिर में एक प्राकृतिक शिवलिंग है जिसकी बड़ी संख्या में भक्त वर्ष भर पूजा करते हैं। पर्यटक यहाँ दो प्राकृतिक तालाब भी देख सकते हैं जिनमें पास की पहाड़ियों से पानी आता है। मानसून की पहली बारिश के बाद इस स्थान की सुंदरता कई गुना बढ़ जाती है।
मूसी महारानी की छतरी, अलवर
मूसी महारानी की छतरी ऐतिहासिक महत्व का एक प्रमुख स्मारक है। इस दुमंजिला भवन का निर्माण विनय सिंह ने महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी रानी मूसी के सम्मान में ईसा पश्चात वर्ष 1815 में करवाया था। इस स्मारक की वास्तुकला की भव्यता इस स्मारक को शानदार दृश्य प्रदान करती है। लाल बालूपत्थर से बनी हाथी के आकार की संरचनाएँ इसकी ओर ध्यान आकर्षित करती हैं। ऊपरी मंजिल में संगमरमर से बनी हुई असामान्य गोल छत, शानदार पट्टी और मेहराब हैं। स्मारक की आंतरिक संरचना में शानदार नक्काशी है और दीवारों पर चित्र हैं। इस परिसर में सैंकडों पक्षी और मोर देखने को मिलते हैं जो यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए दावत के समान है। अरावली का सुरम्य स्थान, हरी भरी पत्तियाँ और रंग-बिरंगे फूल इस स्थान की शोभा बढ़ाते हैं।
सागर झील, अलवर
सागर झील सिटी पैलेस के पीछे स्थित है।इसका निर्माण ईसा पश्चात 1815 में हुआ था। इस सुंदर झील को नहाने के पवित्र घाट के रूप में माना जाता है। इस झील के किनारे पूजनीय और पवित्र हैं और भूमि का उपयोग श्रद्धालुओं द्वारा कबूतरों को खिलाने की पारंपरिक प्रथा के लिए किया जाता है। इसके तट पर भी धार्मिक स्थान, मंदिर और स्मारक हैं। शानदार स्मारकों के साथ तालाब का जगमगाता पानी पर्यटकों के लिए एक मनोहर वातावरण बनाता है
त्रिपोलिया, अलवर
त्रिपोलिया एक उत्कृष्ट वास्तुशिल्प कृति है जिसका निर्माण ईसा पश्चात 1417 में योद्धा सुबेर पाल की याद में किया गया। यह एक चपटी गुंबददार संरचना है जिसके प्रत्येक ओर उल्लेखनीय द्वार हैं। यह स्मारक अलवर के व्यस्त क्षेत्र में है। इसके उत्तर में मुंशी बाज़ार, दक्षिण में मालाखेड बाज़ार और दक्षिण में सराफा बाज़ार है। सभी पुराने बाज़ार सोने के गहनों और कपड़ों के लिए प्रसिद्ध हैं।
इस बड़ी छतरी में पूर्वी छोर पर एक प्रभावशाली महादेव मंदिर है जो पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। इस स्मारक में एक संग्रहालय भी है जहाँ बड़ी मात्रा में सुबेर पाल के समय की कलाकृतियों का संग्रह है।
फतेह जंग का मकबरा, अलवर
फतेह जंग के मकबरे को फतेह जंग की गुंबज के नाम से भी जाना जाता है, जो अलवर में स्थित एक मुख्य पर्यटक आकर्षण है। यह स्मारक फतेह जंग, मुगल सम्राट शाहजहां के एक मंत्री को समर्पित है। इस भवन में पांच मंजिलें है और और इसका डिजाइन मुगल और राजपूत स्थापत्य शैली के एक मिश्रण को दर्शाता है। यात्री एक बड़ी संख्या में सुंदर उद्यानों से घिरे हुए, कलात्मक आकृति वाले इस मकबरे को देखने के लिए आते हैं।
अलवर सरिस्का राजस्थान
वन्य जीव अभ्यारण्य और टाइगर रिजर्व के लिए प्रसिद्ध राजस्थान के अलवर जिले में अरावली की पहाड़ियों पर 800 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला सरिस्का मुख्य रूप से वन्य जीव अभ्यारण्य और टाइगर रिजर्व के लिए प्रसिद्ध है। इसकी गिनती भारत के जाने माने वन्य जीव अभ्यारण्यों में की जाती है। इसके अलावा इस स्थान का ऐतिहासिक महत्व भी है। सरिस्का में बने मंदिर के अवशेष गौरवशाली अतीत की झलक दिखाती है। ईसापूर्व पांचवीं शताब्दी के धर्मग्रन्थों में इस स्थान का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास के दौरान सरिस्का में आश्रय लिया था। मध्यकाल में औरंगजेब ने अपने भाई को कैद करने के लिए कंकावड़ी किले का प्रयोग किया था। 8वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान यहां के अमीरों ने अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया। बीसवीं शताब्दी में महाराजा जयसिंह ने सरिस्का को संरक्षित क्षेत्र बनाने के लिए अभियान चलाया। आजादी के बाद 1958 में भारत सरकार ने इसे वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित किया और 1979 में इसे प्रोजेक्ट टाईगर के अधीन लाया गया।
सरिस्का बाघ अभ्यारण
यहां प्रत्येक तरह के विभिन्न किस्म के वन्यजीव जैसे तेंदुआ, चीतल, नीलगाय, लंगूर, लकड़बग्घा, सांभर और सुनहरा सियार, सरिस्का राष्ट्रीय पार्क को जंगल सफारी के लिए एक आदर्श गंतव्य स्थल बनाते हैं। यह पार्क किंगफिशर, सैंड ग्राउस, गोल्डन बैक, और कठफोड़वा समेत बड़ी संख्या में पक्षियों को आकर्षित करता है। टाइगर रिजर्व के अंदर निजी वाहनों को ले जाने की अनुमति नहीं हैं,तथा पर्यटक जीप या हाथी की सवारी से वन अभ्यारण मे सफारी का आनन्द लेने ले सकते हैं।
किले,मंदिर और झील
सरिस्का में बहुत सारे किले,मंदिर,और झीलें भी है। 17वीं सदी में जयसिंह द्धितीय द्वारा बनवाये हुये कनकावड़ी किले का बहुत ऐतिहासिक महत्व है। इस क्षेत्र में स्थित अन्य स्मारकों में भानगढ़ का किला,प्रतापगढ़ का किला और अजबगढ़ का किला शामिल हैं।
यहाँ स्थित मंदिरों में से कुछ मंदिर जैसे पांडुपोल का हनुमान मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर और भर्तहरि मंदिर ऐसे मंदिर हैं जो देश भर से भक्तों को यहां आकर्षित करते हैं। रमणीय पिकनिक स्पॉट के रूप में दो सुंदर जल निकाय -सिलीसेड झील और जय समंद झीलें यहां हैं। सरिस्का पैलेस जो कभी महाराजा जय सिंह का शिकारगाह था, इस गंतव्य स्थल का एक और लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है।
सरिस्का पहुँचना
सड़कों का एक अच्छा नेटवर्क राजस्थान के अन्य सभी शहरों से सरिस्का को जोड़ता है। दिल्ली सरिस्का से 200 किमी और जयपुर 110 किमी की दूरी पर स्थित हैं यहां के लिए बसें उपलब्ध हैं। 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जयपुर का सांगानेर हवाई अड्डा निकटतम एयरबेस है। इसके अलावा, पर्यटक गंतव्य से 36 किमी की दूरी पर स्थित अलवर रेलवे स्टेशन से भी सरिस्का पहुँच सकते हैं।
सरिस्का यात्रा करने के लिए भ्रमण समय ?
सरिस्का घूमने के लिए सबसे अच्छा समय सितंबर से मार्च तक होता है क्योंकि इस समय मौसम शांत होता है। मार्च - अप्रैल के दौरान मनाया जाने वाला गणगौर त्योहार इस क्षेत्र का एक लोकप्रिय त्योहार है।
सरिस्का बाघ अभ्यारण
स्का अभयारण्य 800 किमी क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें 500 किमी का मुख्य क्षेत्र है। उत्तरी अरावली पहाड़ियाँ और संकीर्ण घाटियाँ मन को मोह लेती हैं। 1955 में इसे अभयारण्य घोषित किया गया और 1979 में राष्ट्रीय उद्यान बना। अनिश्चित जलवायु होने के कारण यहाँ विभिन्ना प्रजातियों के वन्य प्राणी पाए जाते हैं। पानी के आसपास यहाँ के वन्य जीवों
को आसानी से देखा जा सकता है। उद्यान में तेंदुए, जंगली कुत्ते, जंगली बिल्ली, बिच्छू, सियार और बाघ रहते हैं। सांबर, चीतल, नीलगाय, जंगली सूअर और लंगूर बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। पक्षियों में मोर, ग्रे तीतर, बटेर, कठफोड़वा, बाज और भारतीय उल्लू बहुतायत से रहते हैं। वन्य जीवों को देखने का अनुकूल समय अक्टूबर से अप्रैल तक है। यहाँ जीप द्वारा सफारी उपलब्ध की जाती है। यहाँ राजा
जयसिंह द्वारा बनाया गया महल भी है। इसमें लकड़ी का खूबसूरत सामान तथा 1920 के समय के शाही शिकार के चित्र भी उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय उद्यान के प्रवेश द्वार से भीतर जाने के बाद 18 किमी दूर कनकवारी किला है। यहाँ जाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि यहाँ बाघों के आवास स्थान हैं। यहाँ मुगल गद्दी के वारिस राजकुमार शिकोह को औरंगजेब ने बंदी बनाकर रखा था। इसके अलावा अलवर के
आसपास भानगढ़, तिजारा का जैन मंदिर, नरैनी, नीमराना, नीलकंठ तथा नाल्देश्वर मंदिर भी प्रसिद्ध और दर्शनीय हैं।
राजस्थान के अलवर ज़िले में अरावली की पहाड़ियों पर 800 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला सरिस्का मुख्य रूप से वन्य जीव अभयारण्य और टाइगर रिजर्व के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा इस स्थान का ऐतिहासिक महत्त्व भी है।
यह दिल्ली से लगभग 200 किमी और जयपुर से 107 किमी की दूरी पर स्थित है।
सरिस्का में बने मंदिरों के अवशेषों में गौरवशाली अतीत की झलक दिखती है।
ईसापूर्व 5वीं शताब्दी के धर्मग्रन्थों में इस स्थान का उल्लेख मिलता है।
कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास के दौरान सरिस्का में आश्रय लिया था।
मध्यकाल में औरंगज़ेब ने अपने भाई को कैद करने के लिए कंकावड़ी क़िले का प्रयोग किया था।
8वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान यहाँ के अमीरों ने अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया।
20वीं शताब्दी में महाराजा जयसिंह ने सरिस्का को संरक्षित क्षेत्र बनाने के लिए अभियान चलाया।
आज़ादी के बाद 1958 में भारत सरकार ने इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया और 1979 में इसे प्रोजेक्ट टाईगर के अधीन लाया गया। पहाड़ों और जंगलों से घिरा यह अभयारण स्तनधारी जानवरों, पक्षियों, सापों, बाघों और तेंदुओं के लिए ख़ास पहचान रखता है। सरिस्का वन्यजीव अभयारण में पूरे साल सैलानियों की भीड़ लगी रहती है। यहाँ पर जाने का सबसे अधिक अच्छा समय जून से अक्तूबर तक का है। इस दौरान यहाँ पर जंगल के राजा को उसके परिवार के साथ घूमते हुए बड़ी आसानी से देखा जा सकता है।
जंगल सफारी, सरिस्का
सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान में जंगल सफारी रोमांच और उत्साह से भरा है, क्योंकि पार्क में जंगली जानवर बड़ी संख्या में मौजूद हैं और यहां कुछ दुर्लभ वनस्पतियां और जीव पाये जाते हैं। ट्रेकिंग, लंबी पैदल यात्रा पैदल या जीप द्वारा जंगल सफारी, सरिस्का के अंदरूनी भागों की एक रोमांचक खोज है। सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान,हालांकि एक टाइगर रिजर्व के रूप में प्रसिद्ध है, लेकिन यहां सांभर, चीतल, जंगली सुअर, खरगोश, नीलगाय, सीविट, चार सींग वाले मृग, गौर (भारतीय काली जंगली भैंसा) और साही सहित अन्य वन्य जीव भी पाये जाते हैं। आगंतुक यहां यदि कुछ नाम लिए जाएं तो मोर, ग्रे तीतर, पाई के पेड़ और स्वर्ण समर्थित कठफोड़वा सहित विभिन्न प्रकार के पक्षियों को देख सकते हैं।
भानगढ़ का किला,
भानगढ़ राजस्थान के अलवर ज़िले में 'सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान' के पास स्थित एक पूरा का पूरा खंडहर शहर है। भानगढ़ के क़िले को आमेर के राजा भगवानदास ने 1573 ई. में बनवाया था। किसी समय यह स्थान राजपूत आन, बान और शान का प्रतीक हुआ करता था। कहने को यहाँ बाज़ार, गलियाँ, हवेलियाँ, महल, कुएँ और बावड़िया
तथाबाग़-बगीचे आदि सब कुछ हैं, लेकिन सब के सब खंडहर हैं। जैसे एक ही रात में सब कुछ उजड़ गया हो। पूरे शहर में एक भी घर या हवेली ऐसी नहीं है, जिस पर छत हो, लेकिन मंदिरों के शिखर आत्ममुग्ध खड़े दिखाई देते हैं। हर दीवार में पड़ी दरारें अतीत के भयावह पंजों से खंरोची हुई लगती हैं। विनाश के इन्हीं चिन्हों ने सदियों से यहाँ की हवाओं में एक अफवाह घोल रखी है कि यह स्थान शापित है और यहाँ भूत-पिशाचों का वास है।
इतिहास
भानगढ़ का महल आमेर के राजा भगवानदास ने 1573 ई. में बनवाया था। भगवानदास ने पूरी नगर योजना के साथ इस शहर का निर्माण कराया था। बाद में 1605 ई. तक माधोसिंह ने यहाँ आकर अपना राज जमाया और भानगढ़ को राजधानी बना लिया। राजा मानसिंह के भाई माधोसिंह अकबर के दरबार में दीवान के ओहदे पर थे। माधोसिंह के तीन पुत्र थे- तेजसिंह, छत्रसिंह और सुजानसिंह। माधोसिंह के बाद छत्रसिंह भानगढ़ के शासक बने। सन 1630 ई. में एक युद्ध के दौरान युद्ध मैदान में ही छत्रसिंह की मृत्यू हो गई। शासकहीन भानगढ़ की रौनक घटने लगी। तत्पश्चात छत्रसिंह के पुत्र अजबसिंह ने भानगढ़ के पास ही नया नगर बसाया और वहीं रहने लगा। यह नगर अजबगढ़ था। लेकिन अजबसिंह का पुत्र हरिसिंह भानगढ़ में ही रहा। मुग़लों के बढ़ते प्रभाव के चलते संरक्षण के लिए हरिसिंह के दो बेटे औरंगज़ेब के समय मुसलमान बन गए और भानगढ़ पर राज करने लगे। आमेर के कछवाहा शासकों को यह गवारा नहीं था। मुग़लों के कमज़ोर पड़ने पर सवाई जयसिंह ने सन 1720 ई. में इन्हें मारकर भानगढ़ पर क़ब्ज़ा कर लिया और भानगढ़ को अपनी रियासत में मिला लिया। लेकिन इलाके में पानी की कमी के चलते यह शहर आबाद नहीं रह सका और 1783 ई. के अकाल ने महल को पूरी तरह उजाड़ दिया। साथ ही वक्त की मार ने इसकी शक्ल भूतहा कर दी।
तंत्रिक का शाप
एक किंवदंति के अनुसार अरावली की पहाडि़यों में सिंघिया नाम का तांत्रिक अपने तंत्र-मंत्र और टोटकों के लिए जाना जाता था। कहते हैं कि वह मन ही मन भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती को चाहने लगा और राजकुमारी को प्राप्त करने की कोशिशें करने लगा। राजकुमारी को पाने के लिए उसने सिर में लगाने वाले तेल को अभिमंत्रित कर दिया। कहा जाता है कि रत्नावली भी तंत्र-मंत्र और टोटके करना जानती थी। उसने अपनी शक्ति से तेल के टोटके को पहचान लिया और तेल एक बड़ी शिला पर डाल दिया। शिला तांत्रिक की ओर उड़ चली। चट्टान को अपनी ओर आते देख तांत्रिक बौखला गया।
भानगढ़ के अवशेष उसने शिला से कुचलकर मरने से पहले एक और तंत्र किया और शिला को समूचे भानगढ़ को बर्बाद करने का आदेश दिया। चट्टान ने रातों रात भानगढ़ के महल, बाज़ारों और घरों को खंडहर में तब्दील कर दिया। लेकिन मंदिरों और धार्मिक स्थानों पर तांत्रिक का तंत्र नहीं चला और मंदिरों के शिखर ध्वस्त होने से बच गए। आस-पास के लोग अब भी यही मानते हैं कि रत्नावती और तांत्रिक के आपसी टकराव के कारण रातों रात हुई मौतों के कारण यह जगह शापित हो गई और आज भी यहाँ उन लोगों की आत्माएँ विचरण करती हैं। इस किंवदंति ने स्थानीय तांत्रिकों को भी यहाँ तंत्र-कर्म करने के लिए उकसाया और पुरातत्त्व विभाग के संरक्षण से पूर्व यहाँ महल के अंदर तांत्रिक क्रियाएं होने के प्रमाण भी मिलते हैं।
प्रवेश
अरावली की पहाडि़यों से घिरे भानगढ़ में प्रवेश का मार्ग पूर्व में हनुमान गेट से है। यह प्रवेश द्वार शहर की क़िलेबंदी के लिए निर्मित की गई प्राचीर का प्रमुख दरवाज़ा है। उत्तर से दक्षिण की ओर फैली इस प्राचीर में कुल पांच दरवाज़े हैं, जिन्हें 'दिल्ली गेट', 'फुलवारी गेट', 'हनुमान गेट', 'अजमेरी गेट' और 'लाहौरी गेट' के नाम से जाना जाता है। भानगढ़ में मुख्य प्रवेश हनुमान गेट से होता है। गेट के दोनों ओर यहाँ चौकीदारी की बैरकनुमा कोठरियाँ हैं। गेट के दाहिनी ओर हनुमानजी का प्राचीन मंदिर और तिबारियाँ है। सामने एक पत्थर की सड़क जौहरी बाज़ार से होती हुई महल के परिसर के द्वार तक जाती है। हनुमान गेट के पास ही पुरातत्त्व विभाग की ओर से महल परिसर और कस्बे के नक्शे का शैलपट्ट लगाया हुआ है। पट्ट पर कस्बे और महल परिसर में स्थित सभी मुख्य स्थानों का विवरण दिया गया है
शानदार पर्यटन स्थल
स्थानीय लोगों में अब भी यही धारणा चली आ रही है कि भानगढ़ एक शापित स्थान है, लेकिन यह एक शानदार स्थल है, जो पर्यटन की दृष्टि से बेहद खूबसूरत है और इसे अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के तौर पर बढ़ावा दिया जा सकता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अरावली की गोद में सोया यह शहर महत्वपूर्ण है ही, साथ ही फ़ोटोग्राफ़ी के शौकीन लोगों के लिए भी यहाँ के खंडहर और प्राकृतिक वातावरण बेमिसाल हैं। 'भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग' ने अपने अधीन लेकर महल और इसके अवशेषों का संरक्षण किया है। वर्तमान में भानगढ़ पर्यटन का खूबसूरत केंद्र बन चुका है।
हवेलियाँ और अवशेष
तीन ओर प्राचीर से घिरे इस कस्बे में जगह-जगह हवेलियाँ और अवशेष दिखाई देते हैं। हनुमान गेट से प्रवेश करने के बाद बायें हाथ से पहाड़ी की ओर एक ठोस रास्ता महल तक जाता है, जिसके दोनों ओर दो मंजिला बिना छत वाली दुकानें हैं। इस बाज़ार को "जौहरी बाज़ार" का नाम दिया गया है। दुकानों के साथ मकानों के भी अवशेष हैं, जो सोलहवीं सदी की नागर शैली में बने दिखाई पड़ते हैं। जौहरी बाज़ार के ही दाहिनी तरफ़ मोड़ों की हवेली, हनुमान मंदिर, तिबारियाँ और पहाड़ी पर निगरानी टॉवर नजर आती है। जबकि बायें हाथ की ओर अजमेरी गेट, लाहौरी गेट, मंगला माता मंदिर, केशोराय मंदिर, पुरोहितजी की हवेली आदि दिखाई पड़ते हैं।
जौहरी बाज़ार पार करने के बाद एक पहाड़ी नाला गुजरता है, जिसके दोनो ओर घनी वृक्षावली है। यहाँ के वृक्ष भी रहस्यमयी ढंग से बल खाए और तुड़े-मुड़े नजर आते हैं। नाले से आगे चलने पर महल परिसर का त्रिपोलिया गेट आता है, जिसके भीतर दूर महल तक ऊंचे-नीचे ढलानों पर शानदार बाग़ और मंदिर, हवेलियाँ, कुंड आदि नजर आते हैं। त्रिपोलिया गेट से अंदर दाहिने हाथ की ओर एक ऊंचे चौरस स्थल पर गोपीनाथजी का मंदिर है। पास ही सामंतों की बड़ी हवेलियाँ भी हैं। महल तक की पगडंडी के बायें हाथ की ओर सोमेश्वर मंदिर और दो कुंड हैं, जहां वर्षभर पहाड़ों से जलधारा आकर मिलती है। महल के मुख्यद्वार से अंग्रेज़ी के ज़ेड आकार का रास्ता महल के अहाते में जाता है। मुख्यद्वार के बायें हाथ की ओर केवड़ा बाग़ है। कहा जाता है यह महल सात मंजिला था, लेकिन वर्तमान में इसकी तीन मंजिलें ही अस्तित्व मे हैं और छत पर बने भवन और परिसर भी खंडित हैं, जबकि महल के निचले बरामदों और कक्षों में अब भी चमगादड़ों का राज है। किंवदंतियाँ, किस्से, कहानियाँ आदि अपने स्थान पर हैं। भानगढ़ को उसकी किस्मत ने उजाड़ बनाया, लेकिन भानगढ़ अपने आप में सोलहवीं सदी में इतिहास की हलचल और उथल-पुथल को समेटे हुए है। पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग इसके अतीत को जानने और निष्कर्ष निकालने पर कार्य कर रहा है। यहाँ भानगढ़ में पर्यटन विभाग या पुरातत्त्व विभाग का कोई कार्यालय नहीं है, लेकिन यहाँ रह रहे चौकीदारों का कहना है कि हम रात-दिन यहीं रहते हैं। हमें ऐसा कोई अनुभव नहीं हुआ है, जिससे यह लगे कि भानगढ़ में किसी प्रकार का डर है। उन्होंने माना कि यहाँ जंगली जानवरों का डर है, इसलिए रात्रि के समय वे पहरे पर कम ही निकलते हैं। सरकार ने भी डर जैसी चीज सिरे से खारिज की है।
भानगढ़ दुर्ग
भानगढ़ दुर्ग वास्तव में १७वीं शताब्दी में निर्मित एक नगर था जो अब परित्यक्त है। इसका निर्माण राजा माधो सिंह ने की थी। यह किला बहुत प्रसिद्ध है और 'भूतहा किला' माना जाता है।भानगढ़ किला सत्रहवीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस किले का निर्माण मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करावाया था। राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे। उस समय भानगड़ की जनसंख्या तकरीबन 10,000 थी। भानगढ़ अल्वार जिले में स्थित एक शानदार किला है जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है।
चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्पकलाओ का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदी के बेहतरीन और अति प्राचिन मंदिर विध्यमान है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और साथ साथ एक मुख्य दीवार है। इस किले में दृण और मजबूत पत्थरों का प्रयोग किया गया है जो अति प्राचिन काल से अपने यथा स्थिती में पड़े हुये है।
फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्त हिदायत दे रखा है कि सूर्यास्त के बाद इस इलाके किसी भी व्यक्ति के रूकने के लिए मनाही है
भानगढ़ का गोपीनाथ मन्दिर
किले में स्थित गोपीनाथ मंदिर में तो कोई मूर्ति भी नहीं है। तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए अक्सर उन अंधेरे कोनों और तंग कोठरियों का इस्तेमाल करते है। जहां तक आम तौर पर सैलानियों की पहुंच नहीं होती। किले के बाहर पहाड़ पर बनी एक छतरी तांत्रिकों की साधना का प्रमुख अड्डा बताई जाती है। इस छतरी के बारे में कहा जाता है कि तांत्रिक सिंघिया वहीं रहा करता था।
अजबगढ़ का किला, सरिस्का
राजस्थान के अलवर जिले में स्थित अजबगढ़ का किला घुमने लायक है यह भानगढ़ और प्रतापगढ़ किले के बीच स्थित है और सरिस्का के काफी करीब है। यह किला भानगढ़ किले तथा शहर के इतिहास और पौराणिक कथाओं के साथ जुड़ा हुआ है।
यह किला, माधो सिंह के पुत्र अजब सिंह राजावत द्वारा बनवाया गया था और यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। इस किले से अजबगढ़ टाउन और उसके आसपास के क्षेत्र साफ दिखाई पड़ते हैं।
टाइगर गेट अलवर
विजय मंदिर पैलेस महाराजा जयसिंह का 1918 में बना शाही निवास स्थान है। इस महल के पास स्थित छोटे तालाब में विदेशी पक्षी और झरने देखे जा सकते हैं। विजय मंदिर 105 कमरों वाला विशाल महल है। कहते हैं कि विजय सागर तालाब एक जहाज की रूपरेखा के अनुसार बनाया गया था।
भर्तहरि मंदिर, सरिस्का
भर्तहरि मंदिर राजस्थान में अलवर से 30 किमी की दूरी पर स्थित है और विश्व प्रसिद्ध सरिस्का राष्ट्रीय टाइगर रिजर्व के काफी करीब है। योगी भर्तहरि नाथ को समर्पित यह मंदिर देश भर से श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या को आकर्षित करता है। यह योगी भर्तहरि नाथ की समाधि पर स्थित है और वास्तुकला की उत्कृष्ट राजस्थानी शैली के लिए जाना जाता है।
सिलीसेढ झील
मार्ग में सरिस्का के लिए, 12 किलोमीटर। पश्चिम अलवर के दक्षिण कम, जंगली पहाड़ियों, अब एक राजस्थान पर्यटन का होटल से घिरे एक झील के साथ सिलीसेढ झील का पानी स्थानों पर है। झील नदी की एक छोटी सहायक नदी का पानी स्टोर करने के लिए दो पहाड़ियों के बीच एक मिट्टी के बांध के निर्माण से 1845 ईस्वी में बनाया गया था। यह झील सरिस्का वन्य जीव अभ्यारण्य के किनारे स्थित है। झील में जलपक्षियों के अलावा अनेक मगरमच्छों को देखा जा सकता है। झील के समीप ही सिलीसढ़ महल है जिसे महाराजा विनय सिंह ने अपनी रानी शीला के लिए बनवाया था।जब पूरा, कुल जल प्रसार के बारे में 10 वर्ग के एक क्षेत्र को शामिल किया गया। कि.मी.। गुंबददार स्मारकों के साथ सजी, सिलीसेढ झील सरसतापूर्वक अरावली पहाड़ियों के जंगलों ढलानों के बीच निर्धारित है। सिलीसेढ झील पैलेस की खुली छतों पानी झील के प्रसार और उसके आसपास के वातावरण के एक लुभावनी दृश्य प्रदान करते हैं। इस का निर्माण पुराने महल अब एक पर्यटक होटल में परिवर्तित कर दिया जाता है और राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा किया जाता है। इस चार मंजिला महल के तहखाने झील के जल स्तर की ओर जाता है। विशेष रूप से सर्दियों के मौसम के दौरान झील में एक नाव यात्रा, एक पुरस्कृत अनुभव है।
सरिस्का : एक नजर
राज्य- राजस्थान जिला अलवर
क्षेत्रफल- लगभग 800 वर्ग किमी.
कब जाएं- अक्टूबर से मार्च
मुख्य आकर्षण- वन्य जीव और ऐतिहासिक स्मारक
अलवर एक पहाड़ी क्षेत्र है जो राजस्थान राज्य में अरावली की पथरीली चट्टानों के बीच स्थित है। यह स्थान अलवर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस क्षेत्र को मत्स्य देश के नाम से जाना जाता था जहाँ पांडवों ने अपने निर्वासन का 13 वाँ वर्ष भेष बदलकर बिताया था। ऐतिहासिक रूप से यह स्थान मेवाड़ के नाम से भी जाना जाता था। अलवर सुंदर झीलों, भव्य महलों, शानदार मंदिरों, शानदार स्मारकों और विशाल किलों के लिए प्रसिद्द है।
किले, महल, झील, संग्रहालय और अधिक …
पर्यटक अलवर आते हैं ताकि वे बाला किले का भ्रमण कर सकें, जो अलवर किले के नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण वर्ष 1550 में हसन खान मेवाती ने करवाया था। किले की चिनाई और संरचनात्मक डिज़ाईन की भव्यता पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है।
इस किले में छह द्वार हैं जैसे जय पोल, लक्ष्मण पोल, सूरत पोल, चाँद पोल, अंधेरी द्वार और कृष्णा द्वार। सिटी पैलेस और विजय मंदिर पैलेस अलवर के अन्य वास्तु चमत्कार हैं। प्रथम पैलेस(महल) अपनी वास्तुकला की शैली और और संग्रहालय के लिए प्रसिद्द है। विजय मंदिर महल 105 भव्य कमरों, सुरम्य उद्यान और एक झील के लिए जाना जाता है।
इस स्थान के अन्य पर्यटन के आकर्षण जयसमंद झील, सिल्लीसेढ़ झील और सागर झील हैं। अलवर की यात्रा करते समय पर्यटक मूसी महारानी की छतरी, त्रिपोलिया, मोती डूंगरी, भानगढ़ के अवशेष, कंपनी बाग, क्लॉक टॉवर, सरकारी संग्रहालय, फ़तेह जंग का मकबरा, कलाकंद बाज़ार और नाल्देश्वर भी देख सकते हैं
अलवर पहुँचना
पर्यटक रेल, वायुमार्ग और रास्ते द्वारा अलवर पहुँच सकते हैं। अलवर का निकटतम हवाई अड्डा जयपुर का सांगानेर हवाई अड्डा है। विदेशी पर्यटक नई दिल्ली के इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से इस गंतव्य तक पहुँच सकते हैं। अलवर रेलवे स्टेशन दिल्ली और जयपुर से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन दोनों स्थानों से टैक्सी सुविधा उपलब्ध है। पड़ोसी शहरों से अलवर के लिए बस और टैक्सी भी चलती हैं।
अलवर में वर्ष में अधिकांश समय मौसम सूखा होता है। अक्टूबर से मार्च के बीच का समय छुट्टियों में अलवर की यात्रा के लिए उत्तम होता है।
बाला किला, अलवर
बाला किला जिसे अलवर किले के नाम से भी जाना जाता है, अलवर शहर में एक पहाड़ी पर स्थित है। इस किले का निर्माण ईसा पश्चात वर्ष 1550 में हसन खान मेवाती ने करवाया था। यह स्मारक अपने चिनाई के माक और भव्य संरचनात्मक डिज़ाइन के लिए प्रसिद्द है। यहाँ छह प्रमुख द्वार हैं जो इस प्रकार हैं, जय पोल, लक्ष्मण पोल, सूरत पोल, चाँद पोल, अंधेरी द्वार और कृष्णा द्वार जो किले की ओर जाते हैं। किले की संपूर्ण संरचना उत्तर से दक्षिण की ओर 5 किलोमीटर और पूर्व से पश्चिम की ओर 2 किलोमीटर तक फ़ैली हुई है। इस किले में बंदूकें चलाने के लिए 446 छिद्र हैं। 15 बड़े टॉवर और 51 छोटे टॉवर इस भव्य स्मारक को बनाते हैं। यह किला जो अपनी वास्तुकला के डिज़ाइन के लिए प्रसिद्द है, मुगल काल में बनाया गया था और बाद में इस पर कछवाहा राजपूतों ने कब्ज़ा कर लिया।
सिटी पैलेस, अलवर
सिटी महल जिसे विनय विलास महल भी कहा जाता है, अलवर शहर का एक भव्य महल है जो महाराजाओं की प्रतापी जीवन शैली की एक झलक प्रस्तुत करता है। इस भव्य स्मारक का निर्माण राजा बख्तावर ने ईसा पश्चात 1793 में करवाया था। इस महल का एक जीवंत इतिहास है। अनेक प्रसिद्द मुगल राजा जैसे बाबर, जहाँगीर और
राजपूत राजा जैसे महाराजा प्रताप सिंह ने इस किले में समय बिताया है। यह शानदार संरचना अपने केंद्रीय आँगन के लिए प्रसिद्द है जिसमें संगमरमर से बनाया हुआ कमल के आकार का टॉवर है। इस भव्य महल के दर्पण और दीवारों का काम तथा साथ ही साथ लघु चित्रों की शानदार श्रेणी दर्शकों के लिए दावत के समान है। महल के राजकोष में सोने और मखमल से अलंकृत सिंहासन और एक अमूल्य पीने का कप है जो एक अकेले पन्ने को काटकर बनाया गया है। अस्तबल बहुत बड़ा है और यहाँ चार हाथियों वाला दो मंजिली रथ है। इस महल में अब एक संग्रहालय है जहाँ शाही यादगार, ऐतिहासिक वस्तुएँ, कीमती टुकड़े और कुछ दुर्लभ पांडुलिपियाँ संरक्षित हैं।
नीमराना हिल फोर्ट केसरोली
केसरोली में स्थित व 14वीं सदी में निर्मित ये किला अब एक हेरिटेज होटल बन चुका है । ये किला एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है जहाँ से आने वाले पर्यटक गाँव की खूबसूरती और उसके हरे भरे वातावरण को निहार सकते हैं । इस किले का निर्माण 6 सदी पूर्व यदुवंसी राजपूतों द्वारा किया गया था जो भगवान कृष्ण के वंशज माने जाते हैं । सुरक्षा और युद्ध के दृष्टिकोण से इस किले को बेहद मजबूत बनाया गया था।समय के साथ साथ इस किले पर कई अलग अलग शासकों ने अपना झंडा फहराया। पहले इस किले पर मुग़लों, जाटों और 1775 के बाद जब अलवर राज्य की स्थापना हुई तब यहाँ इस किले पर राजपूतों ने अपना शासन किया। यह किला कई राजवंशों की उत्पत्ति और उनके विनाश का गवाह रहा है। अब इस किले को कमांडर मंगल सिंह द्वारा नीमराना हेरिटेज को लीज पर दे दिया गया है जिसे इनके द्वारा एक आलिशान होटल में तब्दील कर दिया गया है। यह होटल अपनी खूबसूरत नक्काशी और धनुषाकार बरामदे के कारण हमेशा ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है और आज इसका शुमार भारत के सबसे अच्छे हेरिटेज होटलों में है।
क्लॉक टावर, अलवर
क्लॉक टॉवर अलवर में चर्च रोड पर एक स्मारक है। टावर के शीर्ष पर एक बड़ी चार पक्षीय घड़ी है जिसे बहुत दूर से देखा जा सकता है और यह पर्यटन का मुख्य आकर्षण है। टावर के निचले हिस्से में सुंदर वास्तुशिल्प संरचनाएँ हैं जबकि मध्य भाग में कुछ लोकप्रिय देशभक्ति नारे हैं। यह प्राचीन टावर भीड़भाड़ वाले चौराहे, पुराने बाज़ारों और आस पास के व्यस्त इलाकों में आज भी भव्यता से खड़ा है। यह वास्तुशिल्प प्राचीन राजपूत शासनकाल का एक शानदार दिखावा है।
सरकारी संग्रहालय, अलवर

कंपनी बाग़, अलवर
कंपनी बाग़ एक सुंदर उद्यान है, हरियाली और आकर्षक लॉन इसका गौरव है एवं यह चारों ओर से सैर करने वाले विशाल स्थानों से घिरा हुआ है। यह अलवर के ध्यान आकर्षित करने वाले स्थलों में से एक है। इस बाग़ को राजा शिव दान सिंह ने ईसा पश्चात 1868 में बनवाया था।
देश के मरूस्थलीय क्षेत्र में स्थित, यह प्रचुर हरियाली थार मरूस्थल के मध्य में एक सुखदायक स्थल के रूप में भी जानी जाती है। इस उद्यान में विशिष्ट बंगाली शीर्ष और मोड़ के साथ एक “छतरी” भी स्थापित की गई है। इस उद्यान में एक प्रमुख संरचना भी है जिसे शिमला हाउस कहा जाता है और यह अपने बड़े वॉल्ट( गुफा, खोह) आकार के लिए प्रसिद्ध है। यह वास्तुशिल्प वैभव महाराजा मंगल सिंह द्वारा ईसा पश्चात 1885 में गर्मी के लिए एक घर के रूप में बनवाया था।
कलाकंद बाज़ार, अलवर
कलाकंद बाज़ार खरीददारों के लिए एक आनंद है जो मुँह में पानी लाने वाले मीठे व्यंजनों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस बाज़ार में कई विभिन्न गलियाँ है जिनके नाम इनमें मिलने वाले प्रसिद्ध व्यंजनों के नाम पर रखे गये हैं। पर्यटक आस पास की दुकानों में आकर्षक हस्तकला एवं आभूषण उचित कीमतों पर खरीद सकते हैं। इस बाज़ार के खरीददारी के क्षेत्र सराफा बाज़ार, बजाजा बजार, होप सर्कस, केडालगंज बाज़ार और मालाखेडा बाज़ार के नाम से भी जाने जाते हैं। यह बाज़ार मंगलवार को छोडकर पूरे सप्ताह खुला रहता है।
नालदेश्वर, अलवर
नालदेश्वर, अलवर शहर से 24 किमी दूर दक्षिण में स्थित है। यह सुरम्य गांव अपने प्राचीन महादेव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह पत्थर की चोटियों और सुंदर हरियाली से चारों ओर से घिरा हुआ है। इस मंदिर में एक प्राकृतिक शिवलिंग है जिसकी बड़ी संख्या में भक्त वर्ष भर पूजा करते हैं। पर्यटक यहाँ दो प्राकृतिक तालाब भी देख सकते हैं जिनमें पास की पहाड़ियों से पानी आता है। मानसून की पहली बारिश के बाद इस स्थान की सुंदरता कई गुना बढ़ जाती है।
मूसी महारानी की छतरी, अलवर
मूसी महारानी की छतरी ऐतिहासिक महत्व का एक प्रमुख स्मारक है। इस दुमंजिला भवन का निर्माण विनय सिंह ने महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी रानी मूसी के सम्मान में ईसा पश्चात वर्ष 1815 में करवाया था। इस स्मारक की वास्तुकला की भव्यता इस स्मारक को शानदार दृश्य प्रदान करती है। लाल बालूपत्थर से बनी हाथी के आकार की संरचनाएँ इसकी ओर ध्यान आकर्षित करती हैं। ऊपरी मंजिल में संगमरमर से बनी हुई असामान्य गोल छत, शानदार पट्टी और मेहराब हैं। स्मारक की आंतरिक संरचना में शानदार नक्काशी है और दीवारों पर चित्र हैं। इस परिसर में सैंकडों पक्षी और मोर देखने को मिलते हैं जो यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए दावत के समान है। अरावली का सुरम्य स्थान, हरी भरी पत्तियाँ और रंग-बिरंगे फूल इस स्थान की शोभा बढ़ाते हैं।
सागर झील, अलवर
सागर झील सिटी पैलेस के पीछे स्थित है।इसका निर्माण ईसा पश्चात 1815 में हुआ था। इस सुंदर झील को नहाने के पवित्र घाट के रूप में माना जाता है। इस झील के किनारे पूजनीय और पवित्र हैं और भूमि का उपयोग श्रद्धालुओं द्वारा कबूतरों को खिलाने की पारंपरिक प्रथा के लिए किया जाता है। इसके तट पर भी धार्मिक स्थान, मंदिर और स्मारक हैं। शानदार स्मारकों के साथ तालाब का जगमगाता पानी पर्यटकों के लिए एक मनोहर वातावरण बनाता है
त्रिपोलिया, अलवर
त्रिपोलिया एक उत्कृष्ट वास्तुशिल्प कृति है जिसका निर्माण ईसा पश्चात 1417 में योद्धा सुबेर पाल की याद में किया गया। यह एक चपटी गुंबददार संरचना है जिसके प्रत्येक ओर उल्लेखनीय द्वार हैं। यह स्मारक अलवर के व्यस्त क्षेत्र में है। इसके उत्तर में मुंशी बाज़ार, दक्षिण में मालाखेड बाज़ार और दक्षिण में सराफा बाज़ार है। सभी पुराने बाज़ार सोने के गहनों और कपड़ों के लिए प्रसिद्ध हैं।
इस बड़ी छतरी में पूर्वी छोर पर एक प्रभावशाली महादेव मंदिर है जो पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। इस स्मारक में एक संग्रहालय भी है जहाँ बड़ी मात्रा में सुबेर पाल के समय की कलाकृतियों का संग्रह है।
फतेह जंग का मकबरा, अलवर
फतेह जंग के मकबरे को फतेह जंग की गुंबज के नाम से भी जाना जाता है, जो अलवर में स्थित एक मुख्य पर्यटक आकर्षण है। यह स्मारक फतेह जंग, मुगल सम्राट शाहजहां के एक मंत्री को समर्पित है। इस भवन में पांच मंजिलें है और और इसका डिजाइन मुगल और राजपूत स्थापत्य शैली के एक मिश्रण को दर्शाता है। यात्री एक बड़ी संख्या में सुंदर उद्यानों से घिरे हुए, कलात्मक आकृति वाले इस मकबरे को देखने के लिए आते हैं।
अलवर सरिस्का राजस्थान
वन्य जीव अभ्यारण्य और टाइगर रिजर्व के लिए प्रसिद्ध राजस्थान के अलवर जिले में अरावली की पहाड़ियों पर 800 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला सरिस्का मुख्य रूप से वन्य जीव अभ्यारण्य और टाइगर रिजर्व के लिए प्रसिद्ध है। इसकी गिनती भारत के जाने माने वन्य जीव अभ्यारण्यों में की जाती है। इसके अलावा इस स्थान का ऐतिहासिक महत्व भी है। सरिस्का में बने मंदिर के अवशेष गौरवशाली अतीत की झलक दिखाती है। ईसापूर्व पांचवीं शताब्दी के धर्मग्रन्थों में इस स्थान का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास के दौरान सरिस्का में आश्रय लिया था। मध्यकाल में औरंगजेब ने अपने भाई को कैद करने के लिए कंकावड़ी किले का प्रयोग किया था। 8वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान यहां के अमीरों ने अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया। बीसवीं शताब्दी में महाराजा जयसिंह ने सरिस्का को संरक्षित क्षेत्र बनाने के लिए अभियान चलाया। आजादी के बाद 1958 में भारत सरकार ने इसे वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित किया और 1979 में इसे प्रोजेक्ट टाईगर के अधीन लाया गया।
सरिस्का बाघ अभ्यारण
यहां प्रत्येक तरह के विभिन्न किस्म के वन्यजीव जैसे तेंदुआ, चीतल, नीलगाय, लंगूर, लकड़बग्घा, सांभर और सुनहरा सियार, सरिस्का राष्ट्रीय पार्क को जंगल सफारी के लिए एक आदर्श गंतव्य स्थल बनाते हैं। यह पार्क किंगफिशर, सैंड ग्राउस, गोल्डन बैक, और कठफोड़वा समेत बड़ी संख्या में पक्षियों को आकर्षित करता है। टाइगर रिजर्व के अंदर निजी वाहनों को ले जाने की अनुमति नहीं हैं,तथा पर्यटक जीप या हाथी की सवारी से वन अभ्यारण मे सफारी का आनन्द लेने ले सकते हैं।
किले,मंदिर और झील
सरिस्का में बहुत सारे किले,मंदिर,और झीलें भी है। 17वीं सदी में जयसिंह द्धितीय द्वारा बनवाये हुये कनकावड़ी किले का बहुत ऐतिहासिक महत्व है। इस क्षेत्र में स्थित अन्य स्मारकों में भानगढ़ का किला,प्रतापगढ़ का किला और अजबगढ़ का किला शामिल हैं।
यहाँ स्थित मंदिरों में से कुछ मंदिर जैसे पांडुपोल का हनुमान मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर और भर्तहरि मंदिर ऐसे मंदिर हैं जो देश भर से भक्तों को यहां आकर्षित करते हैं। रमणीय पिकनिक स्पॉट के रूप में दो सुंदर जल निकाय -सिलीसेड झील और जय समंद झीलें यहां हैं। सरिस्का पैलेस जो कभी महाराजा जय सिंह का शिकारगाह था, इस गंतव्य स्थल का एक और लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है।
सरिस्का पहुँचना
सड़कों का एक अच्छा नेटवर्क राजस्थान के अन्य सभी शहरों से सरिस्का को जोड़ता है। दिल्ली सरिस्का से 200 किमी और जयपुर 110 किमी की दूरी पर स्थित हैं यहां के लिए बसें उपलब्ध हैं। 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जयपुर का सांगानेर हवाई अड्डा निकटतम एयरबेस है। इसके अलावा, पर्यटक गंतव्य से 36 किमी की दूरी पर स्थित अलवर रेलवे स्टेशन से भी सरिस्का पहुँच सकते हैं।
सरिस्का यात्रा करने के लिए भ्रमण समय ?
सरिस्का घूमने के लिए सबसे अच्छा समय सितंबर से मार्च तक होता है क्योंकि इस समय मौसम शांत होता है। मार्च - अप्रैल के दौरान मनाया जाने वाला गणगौर त्योहार इस क्षेत्र का एक लोकप्रिय त्योहार है।
सरिस्का बाघ अभ्यारण
स्का अभयारण्य 800 किमी क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें 500 किमी का मुख्य क्षेत्र है। उत्तरी अरावली पहाड़ियाँ और संकीर्ण घाटियाँ मन को मोह लेती हैं। 1955 में इसे अभयारण्य घोषित किया गया और 1979 में राष्ट्रीय उद्यान बना। अनिश्चित जलवायु होने के कारण यहाँ विभिन्ना प्रजातियों के वन्य प्राणी पाए जाते हैं। पानी के आसपास यहाँ के वन्य जीवों
को आसानी से देखा जा सकता है। उद्यान में तेंदुए, जंगली कुत्ते, जंगली बिल्ली, बिच्छू, सियार और बाघ रहते हैं। सांबर, चीतल, नीलगाय, जंगली सूअर और लंगूर बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। पक्षियों में मोर, ग्रे तीतर, बटेर, कठफोड़वा, बाज और भारतीय उल्लू बहुतायत से रहते हैं। वन्य जीवों को देखने का अनुकूल समय अक्टूबर से अप्रैल तक है। यहाँ जीप द्वारा सफारी उपलब्ध की जाती है। यहाँ राजा
जयसिंह द्वारा बनाया गया महल भी है। इसमें लकड़ी का खूबसूरत सामान तथा 1920 के समय के शाही शिकार के चित्र भी उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय उद्यान के प्रवेश द्वार से भीतर जाने के बाद 18 किमी दूर कनकवारी किला है। यहाँ जाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि यहाँ बाघों के आवास स्थान हैं। यहाँ मुगल गद्दी के वारिस राजकुमार शिकोह को औरंगजेब ने बंदी बनाकर रखा था। इसके अलावा अलवर के
आसपास भानगढ़, तिजारा का जैन मंदिर, नरैनी, नीमराना, नीलकंठ तथा नाल्देश्वर मंदिर भी प्रसिद्ध और दर्शनीय हैं।
राजस्थान के अलवर ज़िले में अरावली की पहाड़ियों पर 800 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला सरिस्का मुख्य रूप से वन्य जीव अभयारण्य और टाइगर रिजर्व के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा इस स्थान का ऐतिहासिक महत्त्व भी है।
यह दिल्ली से लगभग 200 किमी और जयपुर से 107 किमी की दूरी पर स्थित है।
सरिस्का में बने मंदिरों के अवशेषों में गौरवशाली अतीत की झलक दिखती है।
ईसापूर्व 5वीं शताब्दी के धर्मग्रन्थों में इस स्थान का उल्लेख मिलता है।
कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास के दौरान सरिस्का में आश्रय लिया था।
मध्यकाल में औरंगज़ेब ने अपने भाई को कैद करने के लिए कंकावड़ी क़िले का प्रयोग किया था।
8वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान यहाँ के अमीरों ने अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया।
20वीं शताब्दी में महाराजा जयसिंह ने सरिस्का को संरक्षित क्षेत्र बनाने के लिए अभियान चलाया।
आज़ादी के बाद 1958 में भारत सरकार ने इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया और 1979 में इसे प्रोजेक्ट टाईगर के अधीन लाया गया। पहाड़ों और जंगलों से घिरा यह अभयारण स्तनधारी जानवरों, पक्षियों, सापों, बाघों और तेंदुओं के लिए ख़ास पहचान रखता है। सरिस्का वन्यजीव अभयारण में पूरे साल सैलानियों की भीड़ लगी रहती है। यहाँ पर जाने का सबसे अधिक अच्छा समय जून से अक्तूबर तक का है। इस दौरान यहाँ पर जंगल के राजा को उसके परिवार के साथ घूमते हुए बड़ी आसानी से देखा जा सकता है।
जंगल सफारी, सरिस्का
सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान में जंगल सफारी रोमांच और उत्साह से भरा है, क्योंकि पार्क में जंगली जानवर बड़ी संख्या में मौजूद हैं और यहां कुछ दुर्लभ वनस्पतियां और जीव पाये जाते हैं। ट्रेकिंग, लंबी पैदल यात्रा पैदल या जीप द्वारा जंगल सफारी, सरिस्का के अंदरूनी भागों की एक रोमांचक खोज है। सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान,हालांकि एक टाइगर रिजर्व के रूप में प्रसिद्ध है, लेकिन यहां सांभर, चीतल, जंगली सुअर, खरगोश, नीलगाय, सीविट, चार सींग वाले मृग, गौर (भारतीय काली जंगली भैंसा) और साही सहित अन्य वन्य जीव भी पाये जाते हैं। आगंतुक यहां यदि कुछ नाम लिए जाएं तो मोर, ग्रे तीतर, पाई के पेड़ और स्वर्ण समर्थित कठफोड़वा सहित विभिन्न प्रकार के पक्षियों को देख सकते हैं।
तथाबाग़-बगीचे आदि सब कुछ हैं, लेकिन सब के सब खंडहर हैं। जैसे एक ही रात में सब कुछ उजड़ गया हो। पूरे शहर में एक भी घर या हवेली ऐसी नहीं है, जिस पर छत हो, लेकिन मंदिरों के शिखर आत्ममुग्ध खड़े दिखाई देते हैं। हर दीवार में पड़ी दरारें अतीत के भयावह पंजों से खंरोची हुई लगती हैं। विनाश के इन्हीं चिन्हों ने सदियों से यहाँ की हवाओं में एक अफवाह घोल रखी है कि यह स्थान शापित है और यहाँ भूत-पिशाचों का वास है।
इतिहास
भानगढ़ का महल आमेर के राजा भगवानदास ने 1573 ई. में बनवाया था। भगवानदास ने पूरी नगर योजना के साथ इस शहर का निर्माण कराया था। बाद में 1605 ई. तक माधोसिंह ने यहाँ आकर अपना राज जमाया और भानगढ़ को राजधानी बना लिया। राजा मानसिंह के भाई माधोसिंह अकबर के दरबार में दीवान के ओहदे पर थे। माधोसिंह के तीन पुत्र थे- तेजसिंह, छत्रसिंह और सुजानसिंह। माधोसिंह के बाद छत्रसिंह भानगढ़ के शासक बने। सन 1630 ई. में एक युद्ध के दौरान युद्ध मैदान में ही छत्रसिंह की मृत्यू हो गई। शासकहीन भानगढ़ की रौनक घटने लगी। तत्पश्चात छत्रसिंह के पुत्र अजबसिंह ने भानगढ़ के पास ही नया नगर बसाया और वहीं रहने लगा। यह नगर अजबगढ़ था। लेकिन अजबसिंह का पुत्र हरिसिंह भानगढ़ में ही रहा। मुग़लों के बढ़ते प्रभाव के चलते संरक्षण के लिए हरिसिंह के दो बेटे औरंगज़ेब के समय मुसलमान बन गए और भानगढ़ पर राज करने लगे। आमेर के कछवाहा शासकों को यह गवारा नहीं था। मुग़लों के कमज़ोर पड़ने पर सवाई जयसिंह ने सन 1720 ई. में इन्हें मारकर भानगढ़ पर क़ब्ज़ा कर लिया और भानगढ़ को अपनी रियासत में मिला लिया। लेकिन इलाके में पानी की कमी के चलते यह शहर आबाद नहीं रह सका और 1783 ई. के अकाल ने महल को पूरी तरह उजाड़ दिया। साथ ही वक्त की मार ने इसकी शक्ल भूतहा कर दी।
तंत्रिक का शाप
एक किंवदंति के अनुसार अरावली की पहाडि़यों में सिंघिया नाम का तांत्रिक अपने तंत्र-मंत्र और टोटकों के लिए जाना जाता था। कहते हैं कि वह मन ही मन भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती को चाहने लगा और राजकुमारी को प्राप्त करने की कोशिशें करने लगा। राजकुमारी को पाने के लिए उसने सिर में लगाने वाले तेल को अभिमंत्रित कर दिया। कहा जाता है कि रत्नावली भी तंत्र-मंत्र और टोटके करना जानती थी। उसने अपनी शक्ति से तेल के टोटके को पहचान लिया और तेल एक बड़ी शिला पर डाल दिया। शिला तांत्रिक की ओर उड़ चली। चट्टान को अपनी ओर आते देख तांत्रिक बौखला गया।
भानगढ़ के अवशेष उसने शिला से कुचलकर मरने से पहले एक और तंत्र किया और शिला को समूचे भानगढ़ को बर्बाद करने का आदेश दिया। चट्टान ने रातों रात भानगढ़ के महल, बाज़ारों और घरों को खंडहर में तब्दील कर दिया। लेकिन मंदिरों और धार्मिक स्थानों पर तांत्रिक का तंत्र नहीं चला और मंदिरों के शिखर ध्वस्त होने से बच गए। आस-पास के लोग अब भी यही मानते हैं कि रत्नावती और तांत्रिक के आपसी टकराव के कारण रातों रात हुई मौतों के कारण यह जगह शापित हो गई और आज भी यहाँ उन लोगों की आत्माएँ विचरण करती हैं। इस किंवदंति ने स्थानीय तांत्रिकों को भी यहाँ तंत्र-कर्म करने के लिए उकसाया और पुरातत्त्व विभाग के संरक्षण से पूर्व यहाँ महल के अंदर तांत्रिक क्रियाएं होने के प्रमाण भी मिलते हैं।
प्रवेश
अरावली की पहाडि़यों से घिरे भानगढ़ में प्रवेश का मार्ग पूर्व में हनुमान गेट से है। यह प्रवेश द्वार शहर की क़िलेबंदी के लिए निर्मित की गई प्राचीर का प्रमुख दरवाज़ा है। उत्तर से दक्षिण की ओर फैली इस प्राचीर में कुल पांच दरवाज़े हैं, जिन्हें 'दिल्ली गेट', 'फुलवारी गेट', 'हनुमान गेट', 'अजमेरी गेट' और 'लाहौरी गेट' के नाम से जाना जाता है। भानगढ़ में मुख्य प्रवेश हनुमान गेट से होता है। गेट के दोनों ओर यहाँ चौकीदारी की बैरकनुमा कोठरियाँ हैं। गेट के दाहिनी ओर हनुमानजी का प्राचीन मंदिर और तिबारियाँ है। सामने एक पत्थर की सड़क जौहरी बाज़ार से होती हुई महल के परिसर के द्वार तक जाती है। हनुमान गेट के पास ही पुरातत्त्व विभाग की ओर से महल परिसर और कस्बे के नक्शे का शैलपट्ट लगाया हुआ है। पट्ट पर कस्बे और महल परिसर में स्थित सभी मुख्य स्थानों का विवरण दिया गया है
शानदार पर्यटन स्थल
स्थानीय लोगों में अब भी यही धारणा चली आ रही है कि भानगढ़ एक शापित स्थान है, लेकिन यह एक शानदार स्थल है, जो पर्यटन की दृष्टि से बेहद खूबसूरत है और इसे अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के तौर पर बढ़ावा दिया जा सकता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अरावली की गोद में सोया यह शहर महत्वपूर्ण है ही, साथ ही फ़ोटोग्राफ़ी के शौकीन लोगों के लिए भी यहाँ के खंडहर और प्राकृतिक वातावरण बेमिसाल हैं। 'भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग' ने अपने अधीन लेकर महल और इसके अवशेषों का संरक्षण किया है। वर्तमान में भानगढ़ पर्यटन का खूबसूरत केंद्र बन चुका है।
तीन ओर प्राचीर से घिरे इस कस्बे में जगह-जगह हवेलियाँ और अवशेष दिखाई देते हैं। हनुमान गेट से प्रवेश करने के बाद बायें हाथ से पहाड़ी की ओर एक ठोस रास्ता महल तक जाता है, जिसके दोनों ओर दो मंजिला बिना छत वाली दुकानें हैं। इस बाज़ार को "जौहरी बाज़ार" का नाम दिया गया है। दुकानों के साथ मकानों के भी अवशेष हैं, जो सोलहवीं सदी की नागर शैली में बने दिखाई पड़ते हैं। जौहरी बाज़ार के ही दाहिनी तरफ़ मोड़ों की हवेली, हनुमान मंदिर, तिबारियाँ और पहाड़ी पर निगरानी टॉवर नजर आती है। जबकि बायें हाथ की ओर अजमेरी गेट, लाहौरी गेट, मंगला माता मंदिर, केशोराय मंदिर, पुरोहितजी की हवेली आदि दिखाई पड़ते हैं।
जौहरी बाज़ार पार करने के बाद एक पहाड़ी नाला गुजरता है, जिसके दोनो ओर घनी वृक्षावली है। यहाँ के वृक्ष भी रहस्यमयी ढंग से बल खाए और तुड़े-मुड़े नजर आते हैं। नाले से आगे चलने पर महल परिसर का त्रिपोलिया गेट आता है, जिसके भीतर दूर महल तक ऊंचे-नीचे ढलानों पर शानदार बाग़ और मंदिर, हवेलियाँ, कुंड आदि नजर आते हैं। त्रिपोलिया गेट से अंदर दाहिने हाथ की ओर एक ऊंचे चौरस स्थल पर गोपीनाथजी का मंदिर है। पास ही सामंतों की बड़ी हवेलियाँ भी हैं। महल तक की पगडंडी के बायें हाथ की ओर सोमेश्वर मंदिर और दो कुंड हैं, जहां वर्षभर पहाड़ों से जलधारा आकर मिलती है। महल के मुख्यद्वार से अंग्रेज़ी के ज़ेड आकार का रास्ता महल के अहाते में जाता है। मुख्यद्वार के बायें हाथ की ओर केवड़ा बाग़ है। कहा जाता है यह महल सात मंजिला था, लेकिन वर्तमान में इसकी तीन मंजिलें ही अस्तित्व मे हैं और छत पर बने भवन और परिसर भी खंडित हैं, जबकि महल के निचले बरामदों और कक्षों में अब भी चमगादड़ों का राज है। किंवदंतियाँ, किस्से, कहानियाँ आदि अपने स्थान पर हैं। भानगढ़ को उसकी किस्मत ने उजाड़ बनाया, लेकिन भानगढ़ अपने आप में सोलहवीं सदी में इतिहास की हलचल और उथल-पुथल को समेटे हुए है। पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग इसके अतीत को जानने और निष्कर्ष निकालने पर कार्य कर रहा है। यहाँ भानगढ़ में पर्यटन विभाग या पुरातत्त्व विभाग का कोई कार्यालय नहीं है, लेकिन यहाँ रह रहे चौकीदारों का कहना है कि हम रात-दिन यहीं रहते हैं। हमें ऐसा कोई अनुभव नहीं हुआ है, जिससे यह लगे कि भानगढ़ में किसी प्रकार का डर है। उन्होंने माना कि यहाँ जंगली जानवरों का डर है, इसलिए रात्रि के समय वे पहरे पर कम ही निकलते हैं। सरकार ने भी डर जैसी चीज सिरे से खारिज की है।
भानगढ़ दुर्ग
भानगढ़ दुर्ग वास्तव में १७वीं शताब्दी में निर्मित एक नगर था जो अब परित्यक्त है। इसका निर्माण राजा माधो सिंह ने की थी। यह किला बहुत प्रसिद्ध है और 'भूतहा किला' माना जाता है।भानगढ़ किला सत्रहवीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस किले का निर्माण मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करावाया था। राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे। उस समय भानगड़ की जनसंख्या तकरीबन 10,000 थी। भानगढ़ अल्वार जिले में स्थित एक शानदार किला है जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है।
चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्पकलाओ का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदी के बेहतरीन और अति प्राचिन मंदिर विध्यमान है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और साथ साथ एक मुख्य दीवार है। इस किले में दृण और मजबूत पत्थरों का प्रयोग किया गया है जो अति प्राचिन काल से अपने यथा स्थिती में पड़े हुये है।
फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्त हिदायत दे रखा है कि सूर्यास्त के बाद इस इलाके किसी भी व्यक्ति के रूकने के लिए मनाही है
भानगढ़ का गोपीनाथ मन्दिर
किले में स्थित गोपीनाथ मंदिर में तो कोई मूर्ति भी नहीं है। तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए अक्सर उन अंधेरे कोनों और तंग कोठरियों का इस्तेमाल करते है। जहां तक आम तौर पर सैलानियों की पहुंच नहीं होती। किले के बाहर पहाड़ पर बनी एक छतरी तांत्रिकों की साधना का प्रमुख अड्डा बताई जाती है। इस छतरी के बारे में कहा जाता है कि तांत्रिक सिंघिया वहीं रहा करता था।
अजबगढ़ का किला, सरिस्का
राजस्थान के अलवर जिले में स्थित अजबगढ़ का किला घुमने लायक है यह भानगढ़ और प्रतापगढ़ किले के बीच स्थित है और सरिस्का के काफी करीब है। यह किला भानगढ़ किले तथा शहर के इतिहास और पौराणिक कथाओं के साथ जुड़ा हुआ है।
यह किला, माधो सिंह के पुत्र अजब सिंह राजावत द्वारा बनवाया गया था और यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। इस किले से अजबगढ़ टाउन और उसके आसपास के क्षेत्र साफ दिखाई पड़ते हैं।
टाइगर गेट अलवर
विजय मंदिर पैलेस महाराजा जयसिंह का 1918 में बना शाही निवास स्थान है। इस महल के पास स्थित छोटे तालाब में विदेशी पक्षी और झरने देखे जा सकते हैं। विजय मंदिर 105 कमरों वाला विशाल महल है। कहते हैं कि विजय सागर तालाब एक जहाज की रूपरेखा के अनुसार बनाया गया था।
भर्तहरि मंदिर, सरिस्का
भर्तहरि मंदिर राजस्थान में अलवर से 30 किमी की दूरी पर स्थित है और विश्व प्रसिद्ध सरिस्का राष्ट्रीय टाइगर रिजर्व के काफी करीब है। योगी भर्तहरि नाथ को समर्पित यह मंदिर देश भर से श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या को आकर्षित करता है। यह योगी भर्तहरि नाथ की समाधि पर स्थित है और वास्तुकला की उत्कृष्ट राजस्थानी शैली के लिए जाना जाता है।
सिलीसेढ झील
मार्ग में सरिस्का के लिए, 12 किलोमीटर। पश्चिम अलवर के दक्षिण कम, जंगली पहाड़ियों, अब एक राजस्थान पर्यटन का होटल से घिरे एक झील के साथ सिलीसेढ झील का पानी स्थानों पर है। झील नदी की एक छोटी सहायक नदी का पानी स्टोर करने के लिए दो पहाड़ियों के बीच एक मिट्टी के बांध के निर्माण से 1845 ईस्वी में बनाया गया था। यह झील सरिस्का वन्य जीव अभ्यारण्य के किनारे स्थित है। झील में जलपक्षियों के अलावा अनेक मगरमच्छों को देखा जा सकता है। झील के समीप ही सिलीसढ़ महल है जिसे महाराजा विनय सिंह ने अपनी रानी शीला के लिए बनवाया था।जब पूरा, कुल जल प्रसार के बारे में 10 वर्ग के एक क्षेत्र को शामिल किया गया। कि.मी.। गुंबददार स्मारकों के साथ सजी, सिलीसेढ झील सरसतापूर्वक अरावली पहाड़ियों के जंगलों ढलानों के बीच निर्धारित है। सिलीसेढ झील पैलेस की खुली छतों पानी झील के प्रसार और उसके आसपास के वातावरण के एक लुभावनी दृश्य प्रदान करते हैं। इस का निर्माण पुराने महल अब एक पर्यटक होटल में परिवर्तित कर दिया जाता है और राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा किया जाता है। इस चार मंजिला महल के तहखाने झील के जल स्तर की ओर जाता है। विशेष रूप से सर्दियों के मौसम के दौरान झील में एक नाव यात्रा, एक पुरस्कृत अनुभव है।
सरिस्का : एक नजर
राज्य- राजस्थान जिला अलवर
क्षेत्रफल- लगभग 800 वर्ग किमी.
कब जाएं- अक्टूबर से मार्च
मुख्य आकर्षण- वन्य जीव और ऐतिहासिक स्मारक
सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान
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विवरण | सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान राजस्थानके अलवर शहर में स्थित है। |
राज्य | राजस्थान |
ज़िला | अलवर |
स्थापना | 1958 में भारत सरकार ने इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया और 1979 में इसे प्रोजेक्ट टाईगर के अधीन लाया गया। |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 27°19′3″ - पूर्व- 76°26′13″ |
मार्ग स्थिति | सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान दिल्ली से लगभग 200 किमी और जयपुरसे 107 किमी की दूरी पर स्थित है। |
कब जाएँ | जून से अक्तूबर |
जयपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा | |
अलवर जंक्शन | |
जनरल बस अड्डा | |
ऑटो-रिक्शा और टैक्सी | |
कहाँ ठहरें | होटल, गेस्ट हाउस |
एस.टी.डी. कोड | 0144 |
ए.टी.एम | लगभग सभी |
गूगल मानचित्र | |
संबंधित लेख | बाला क़िला, नीमराना फ़ोर्ट पैलेस,सिटी पैलेस |
भाषा | हिन्दी, अंग्रेज़ी और राजस्थानी |
बाहरी कड़ियाँ | सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान की वेबसाइट |
अद्यतन |
14:18, 8 जनवरी 2012 (IST)
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