बाड़मेर का सफर

बाड़मेर
राजस्थान के जिले में स्थित एक प्राचीन शहर है। इस शहर को 13 वीं शताब्दी ईस्वी में बहाडा  राव जिन्हें बार राव के नाम  से भी जाना  जाता है  द्वारा स्थापित किया गया था। पहले बाड़मेर को बहाडमेर के नाम से जाना जाता था जिसका शाब्दिक अर्थ होता है बहाडा  का पर्वत किला, लेकिन समय के साथ साथ इसके नाम में कई परिवर्तन हुए और अब इसे बाड़मेर के नाम से जाना जाता है। राजस्थान का यह क्षेत्र अपने  समृद्ध हस्तशिल्प और पारंपरिक कला के कारण  दुनिया भर में जाना जाता है । विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों की उपस्थिति इस स्थान को आने वाले पर्यटकों में और भी लोकप्रिय पर्यटन स्थल बनती  है।

इतिहास में एक झलक
प्राचीन इतिहास में बाड़मेर जिला एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । इस शहर ने अपनी धरती पर विभिन्न राजवंशों की कामयाबी और उनके नाश को देखा है । बताया जाता है की बाड़मेर के प्राचीन शहरों में खेड़, किराड़ू, पचपदरा, जसोल तिलवारा शेओ। बालोतारा और मल्लानी शामिल हैं।
1836 से पहले बाड़मेर में अधीक्षकों का शासन था उसके बाद यहाँ अंग्रेजों का शासन रहा । 1891 में बाड़मेर को जोधपुर के राज्य के साथ एकीकृत किया गया । 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बाड़मेर जोधपुर से अलग हुआ और आज ये राजस्था के दो बिलकुल अलग अलग हिस्से हैं । आज बाड़मेर जिले में कई सारे ऐतिहासिक स्थल हैं जिनमें मल्लानी शिव, पचपदरा, सिवाना , चोहटन शामिल हैं ।

बाड़मेर की कला, शिल्प, संगीत एवं रचनात्मकता पर एक नजर
बाड़मेर शुरू से ही अपनी परंपरागत कला रूपों, शिल्प,  कढ़ाई के कारण भारत के साथ साथ ही विदेशों में जाना जाता है ।   लोक संगीत और नृत्य के साथ भी  जुड़ा हुआ है। बाड़मेर के लोक संगीतकार केवल एक विशेष समुदाय  से ताल्लुख न रखकर कई समुदायों से आते हैं जिनमें भोपा और ढोलियों का विशेष स्थान है । कहा जाता है की इनमें भोपा पुजारी गायक हैं जो युद्ध नायकों और देवताओं के बारे में गाते हैं । जबकि दूसरी तरफ ढोली मुस्लिम धर्म  के अनुनायी  हैं जो लोक संगीत और  गायन के माध्यम से अपनी जीविका चलाते हैं। बाड़मेर कपडे और लकड़ी पर हाथ द्वारा  छपाई  के लिए भी प्रसिद्द है । यहाँ के लोग कितने रचनात्मक हैं इस बात का अंदाजा उनकी मिटटी की बनी झोपड़ियां देख के लगाया जा सकता है जिनमें इनके द्वारा कई अलग अलग लोक चित्रों की आकृतियाँ बनाई जाती हैं  ये आकृतियाँ इस बात को प्रदर्शित करती हैं की यहाँ के लोगों में कला के लिए अच्छी समझ है ।

बाड़मेर - राजस्थान की संस्कृति और विरासत का एक प्रतीक
बाड़मेर की यात्रा करने पर यहाँ आने वाले पर्यटक ग्रामीण सौंदर्य, संस्कृति और राजस्थान की विरासत की  पूरी खोज कर सकते हैं। यहाँ पर पर्यटकों  के लिए कई सारे आकर्षण मौजूद हैं जिनमें बाड़मेर किला रानी भातिअनी मंदिर, विष्णु मंदिर, देवका सूर्य मंदिर, जूना जैन मंदिर, सफ़ेद अखाड़ा प्रमुख हैं।
विभिन्न त्योहारों और मेलों को यहाँ के लोगों द्वारा  धूमधाम और हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है । रावल मल्लिनाथ की याद में मनाया जाने वाला मल्लिनाथ तिलवारा पशु मेला यहाँ के प्रमुख मेलों में शामिल है । वीरातारा मेला और बाड़मेर थार फेस्टिवल यहाँ के अन्य प्रमुख मेले हैं जिन्हें यहाँ के लोगों द्वारा बहुत ही प्रमुखता दी जाती है।

बाड़मेर पहुंचना
बाड़मेर भारत के सभी हिस्सों से रेल, सड़क और वायुमार्ग से आसानी से जुड़ा है। इस कारण यहाँ आसानी से पहुंचा जा सकता है । बाड़मेर तक आसानी से पहुँचने के लिए यहाँ के  रेलवे स्टेशन को छोटी लाइन के माध्यम से जोधपुर रेलवे स्टेशन से भी जोड़ा गया है। राजस्थान के किसी भी हिस्से से यहाँ आने के लिए आने वाले पर्यटकों को बसें और टेक्सियाँ बड़ी ही आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। जोधपुर हवाई अड्डा यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा है जो बाड़मेर से 220 किलोमीटर की दूरी  पर स्थित है।
बाड़मेर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच का है इस दौरान यहाँ का मौसम राजस्थान घूमने के लिए बिलकुल अनुकूल होता है।


 बाड़मेर किला, बाड़मेर
बाड़मेर किला , चट्टानी पहाड़ी की चोटी पर स्थित है,  जो कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रह चुका है जो अब बहुत ही जीर्ण - शीर्ण हालत में है लेकिन अभी भी यहाँ काफी पर्यटक आते हैं और आज भीअपने गौरव को बरकरार रखे हुए है और आने वाले पर्यटकों के बीच एक प्रमुख आकर्षण है।









चिंतामणि पारसनाथ जैन मंदिर, बाड़मेर
चिंतामणि पारसनाथ जैन मंदिर, 12 शताब्दी में बनवाया गया था जो एक जैन तीर्थंकर - पार्श्वनाथ को समर्पित है । इस मंदिर के अन्दर की मूर्तियाँ, आकर्षक तस्वीरें और सुन्दरता किसी का भी मन मोहने के लिए काफी हैं । साथ ही यहाँ मंदिर की भीतरी दीवारों पर मौजूद समृद्ध शीशे की दीवारें इसे और भी सुन्दर बनाती  हैं और इस बात का एहसास कराती हैं की इस मंदिर को बड़ी ही ख़ूबसूरती के साथ बनाया गया था।


रानी भातिअनी मंदिर, बाड़मेर
रानी भातिअनी मंदिर जसोल में नाकोडा बालोतरा रोड पर स्थित है । ये मंदिर माता रानी भतिअनि को समर्पित है । इस मंदिर को बनाने में वही  निर्माण सामग्री का इस्तेमाल किया गया है जिससे खेड  स्थित जैन मंदिर बना है । साथ ही इस मंदिर के कई शस्त्र भी खेड से लाये गए हैं । ये मंदिर अपने चमत्कारी आशीर्वादों के लिए जाना जाता है जो यहाँ आने वाले भक्त को माता रानी भतिअनि की तरफ से मिलता है। ये मंदिर यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं के लिए साल भर खुला रहता है।

जूना जैन मंदिर, बाड़मेर
जूना जैन मंदिर, जैन समुदाय का एक प्रमुख मंदिर है जो जूना बाड़मेर की खूबसूरत पर्वत चोटियों पर बनाया गया था। इस मंदिर का निर्माण 12 या 13 वीं शताब्दी में किया गया था। एक समय में जूना बाड़मेर एक व्यस्तम कज्बा था लेकिन समय के साथ साथ यहाँ के लोगों ने दूसरे शहरों की तरफ पलायन शुरू कर दिया जिस कारण अब यहाँ ज्यादा लोग नहीं रहते हैं । इस जगह के बारे में ये भी कहा जाता है की जिन्होंने यहाँ से पलायन नहीं किया उन्होंने ही वर्तमान बाड़मेर का निर्माण किया है।


किराड़ू का अनोखा प्राचीन मंदिर, बाड़मेर
किराड़ू प्राचीन मंदिर, पांच मंदिरों का एक समूह है जो बाड़मेर से 39 किलोमीटर की दूरी  पर हाथमा गाँव में स्थित है । 1161 के एक शिलालेख से पता चलता है की हाथमा को पहले किरतकूप के नाम से भी जाना जाता  था जो पहले पनवारा वंश की राजधानी भी थी। इस मंदिर के विषय में एक किवदंती बड़ी मशहूर है जो इसे और मंदिरों से अलग बनती है ।  इस इलाके के स्थानीय लोगों की माने तो  एक साधू के शाप ने इस मंदिर को पत्थरों की नगरी में बदल दिया। ऐसा माना जाता है कि कई सालों पहले यहां एक साधु अपने शिष्य के साथ रहता था। एक बार वह  भिक्षा के लिए कहीं गया था लेकिन उसने अपने शिष्य को इस भरोसे आश्रम में ही छोड़ा था कि गांववाले उसकी सेवा ठीक उसी प्रकार करेंगे जैसे वो उसकी करते हैं। लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत, सिवाए एक कुम्हारन के किसी ने भी उसकी सुध न ली इस कारण शिष्य की तबियत खराब हो गयी और वो बहुत कमज़ोर हो गया।
जब साधु वापस लौटा तो शिष्य को बीमार देखकर वह बहुत ज्यादा क्रोधित हुआ। क्रोध में आकर उसने शाप दिया कि जिस स्थान के निवासियों में दया और करुणा की भावना न हो वहां जीवन का क्या मतलब, इसलिए यहां के सभी लोग पत्थर के हो जाएं और पूरा शहर बर्बाद और तहस नहस हो जाए।
साधू के इस श्राप के बाद देखते ही देखते वहां के सभी निवासी पत्थर के हो गए। बस वो कुम्हारन बाख गयी, जिसने साधू के चहिते  शिष्य की सेवा की थी। साधु ने उस कुम्हारन से कहा कि तेरे ह्रदय में दूसरों के लिए करुणा और ममता है इसलिए तू यहां से चली जा। साथ में साधू ने उस औरत को ये चेतावनी भी दी कि जाते समय पीछे मुड़कर बिलकुल नहीं देखना वरना तू भी इन सब कि तरह पत्थर की हो जाएगी। इतना सुनते ही कुम्हारन वहां से तुरंत भाग गयी,
जब वो वहां से वापस जा रही थी तो जाते वक़्त  उसके मन में अचानक एक विचार आया कि क्या सच में किराडू के लोग पत्थर के हो गए हैं? यह देखने के लिए वह जैसे ही पीछे मुड़ी वह खुद भी पत्थर की मूर्ति में तब्दील हो गयी। आज भी पास ही में स्थित सिहाणी गांव के नजदीक कुम्हारन की वह पत्थर की मूर्ति आज भी अपने उस डरावने अतीत को बयां करती दिखाई देती है।
यहाँ के पाँचों मंदिरों में सोमेश्वर मंदिर सबसे बड़ा है और इस मनीर को 11वीं शताब्दी में बनाया गया था ये  मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। एक बहु बुर्जदार टॉवर और विभिन्न हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां भी इस मंदिर में मौजूद हैं। मंदिर के भीतरी कक्ष  में भगवान का एक चित्र है , जबकि मंदिर का  आधार एक रिवर्स वक्र कमल है।
यहाँ मौजूद अन्य चार मंदिर विष्णु और शिव को समर्पित है। महाकाव्य रामायण से कई सारे चित्रों को इस मंदिर के लिए लिया गया है जिनकी झलक यहाँ मंदिर की दीवारों और मूर्तियों में देखने को मिलती है। साथ ही इस मंदिर में अप्सराओं के भी कई सारे चित्र मौजूद हैं।


देवका सूर्य मंदिर, बाड़मेर
देवका सूर्य मंदिर एक छोटे से गाँव देवका में स्थित है जो बाड़मेर से 62 किलोमीटर की दूरी पर है । 13 वीं शताब्दी में बना ये मंदिर अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला के लिए हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है । विष्णु मंदिर के अलावा दो और मंदिरों के निकट होने के कारण काफी पर्यटक यहाँ आते हैं । इस मंदिर की ख़ास बात एक विशेष मूर्ति है जिसमें भगवान गणेश को एक पत्थर पर बैठे हुए दिखाया गया है ।


मेवा नगर, बाड़मेर
मेवा नगर 12वीं शताब्दी का एक गाँव है जो पहले विरानिपुर के नाम से जाना जाता था । ये पुरवा जो नगर की भकारिया नाम के पहाड़ों की ढलान पर स्थित है बालोतरा जो की बाड़मेर में स्थित है वहां से 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । यहाँ पर तीन  प्रमुख जैन मंदिरों के अलावा भगवन विष्णु  का भी एक मंदिर स्थित है ।  तीन जैन मंदिर में से एक जो सबसे बड़ा है वो नाकोडा पार्श्वनाथ को समर्पित है ।


नाकोडा मंदिर, बाड़मेर
नाकोडा मंदिर,  को पार्श्वनाथ मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, इसे भारत  में जैन तीर्थ के मुख्य केंद्रों के रूप में भी जाना जाता है । यह मंदिर जैन संत पार्श्वनाथ की याद में बना है जो मुख्यतः काले पत्थर से निर्मित किया गया है । यह मंदिर जो तीसरी शताब्दी में  दो भाइयों  नकोर्सेन और वीरसेन द्वारा निर्मित किया गया था वो 1500 फीट की ऊंचाई पर जोधपुर  बाड़मेर रोड पर स्थित है। कहा जाता है की इस मंदिर की मूर्ति को जैन आचार्य परम पूज्य स्थुलिभाद्रसुरी  द्वारा स्थापित किया गया था लेकिन 1224 में आलम शाह  के आक्रमण के बाद जैन संघ ने यहाँ स्थापित मूर्ति को छुपा दिया और बाद में फिर इसे 1373 में स्थापित किया गया । जैन समुदाय के लोगों में ऐसी धारणा है की ये मंदिर भगवान महावीर को समर्पित है । यहाँ कई अन्य मंदिर भी है जो ऋषभ देव और शांतिनाथ को समर्पित हैं।


महावीर पार्क, बाड़मेर
महावीर पार्क, बाड़मेर जिले में स्थित है, ये खूबसूरत पार्क अपने संग्रहालय के लिए भी जाना जाता है जहाँ आज भी प्राचीन नक्काशीदार मूर्तियोंप्रदर्शन के लिए रखी गयीं हैं।

सफ़ेद अखाड़ा, बाड़मेर
सफ़ेद अखाड़ा, सिद्धेश्वर महादेव मंदिर के परिसर के भीतर स्थित एक उद्यान है। जो बाड़मेर के बहुत निकट है। इस स्थान पर खाना पकाने और अस्थायी आवास के लिए भी सुविधा है।



विष्णु मंदिर, बाड़मेर
रंचिर्जी विष्णु मंदिर खेड में स्थित है जो अपनी स्थापत्य भव्यता के लिए जाना जाता है । इस मंदिर के मुख्य द्वार पर एक गरुड़ की छवि है साथ ही ये भी कहा जाता है ये गरुड़ मंदिर की रखवाली करता है । ये मंदिर आज भी ढहती दीवारों से घिरा है लेकिन आज भी इसकी महिमा पहले जैसी ही है ।


नीमड़ी, बाड़मेर
नीमड़ी चौहान मार्ग पर बाड़मेर से 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक उद्यान है! वर्तमान में यहाँ पर स्विमिंग पूल आने वालों के लिए इसे और भी ख़ास बनाता  है साथ ही  ये जगह पर्यटकों को एक नैसर्गिक सौंदर्य का भी एहसास कराती है।


जूना बाड़मेर
पहाड़ी पर स्थित इस नगर में एक पुराने किले के खंडहर देखे जा सकते हैं। यहां के अन्य प्रमुख आकर्षणों में बलार्क (सूर्य) को समर्पित मंदिर और जूना बाड़मेर के अवशेष शामिल हैं। तीन जैन मंदिर, 1295 ई. का शिलालेख और महाराजा कुल श्री सामंत सिन्हा देव के सबसे बड़े मंदिर में लगे विशाल स्तंभ भी देखने लायक हैं।

खेड़
राठौड़ वंश के संस्थापक राव सिहा और उनके पुत्र ने खेड़ को गुहिल राजपूतों से जीता और यहां राठौड़ों का गढ़ बनाया। रणछीजी का विष्णु मंदिर यहां का प्रमुख आकर्षण है। मंदिर के चारों और दीवार बनी है और द्वार पर गुरुड़ की प्रतिमा लगी है जिसे देख कर लगता है मानो वे मंदिर की रक्षा कर रहे हों। पास ही ब्रह्मा, भैरव, महादेव और जैन मंदिर भी हैं।


मल्लीनाथ मेला
मल्लीनाथ मेला राजस्थान के सबसे बड़े पशु मेलों में से एक है। यह बाड़मेर जिले के तिलवारा गांव में चैत्र बुदी एकादशी से चैत्र सुदी एकादशी (मार्च-अप्रैल) में आयोजित किया जाता है। इस मेले में उच्च प्रजाति के गाय, ऊंटों, बकरी और घोडों की बिक्री के लिए लाया जाता है। इस मेले में भाग लेने के लिए सिर्फ गुजरात से ही नहीं बल्कि गुजरात और मध्य प्रदेश से भी लोग आते हैं।


खरीदारी
खरीदारी के शौकीन लोगों के लिए बाड़मेर किसी स्वर्ग से कम नहीं है। यहां रंगबिरंगी कढ़ाई में जड़े हुए शीशे सैलानियों को आकर्षित करते हैं। विशेषरूप से विदेशी सैलानी इन वस्तुओं को अवश्य खरीदते हैं। पारंपरिक रंगों और बुनाई से बने शॉल, कालीन, दरी और कंबल इस क्षेत्र की खासियत हैं। सदर बाजार के आसपास बनी छोटी-बड़ी दुकानों से इन चीजों की खरीदारी की जा सकती है।


बाड़मेर- एक नजर में
राज्य: राजस्थान
क्षेत्रफल: 15 वर्ग किमी.
एसटीडी कोड: 2982
भाषा: राजस्थानी, हिंदी, अंग्रेजी
कब जाएं: अगस्त से मार्च

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