माउंट आबू का सफर

माउंट आबू राजस्थान  ​माउंट आबू – आश्चर्य से भरा एक पर्वत
माउंट आबू राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित एक प्रसिद्द हिल स्टेशन है। यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता, आरामदायक जलवायु, हरी भरी पहाड़ियों, निर्मल झीलों, वास्तुशिल्पीय दृष्टि से सुंदर मंदिरों और अनेक धार्मिक स्थानों के लिए प्रसिद्द है। यह स्थान जैनियों के प्रसिद्द तीर्थ स्थानों में से एक है। यह हिल स्टेशन अरावली पर्वत की सबसे ऊँची चोटी पर 1220 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
माउंट आबू अपने शानदार इतिहास, प्राचीन पुरातात्विक स्थलों और अद्भुत मौसम के कारण राजस्थान के पर्यटन के आकर्षणों में सबसे बड़ा है। अधिकांशतः गर्मियों में और मानसून के दौरान यहाँ प्रतिवर्ष हजारों पर्यटक और भक्त आते हैं। पिछले दशकों में यह हिल स्टेशन गर्मियों और हनीमून के लिए एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल के रूप में उभरा है।
पौराणिक कथाओं में माउंट आबू
इस स्थान को ‘अर्बुदरान्य’ भी कहा जाता है, जिसका नाम नाग देवता ‘अर्बुदा’ के नाम पर पड़ा। किवदंतियों के अनुसार भगवान शिव के पवित्र बैल नंदी की रक्षा करने के लिए नागदेवता इस पहाड़ी के नीचे आए थे। अर्बुदारन्य का नाम बाद में बदलकर ‘अबू पर्वत’ या ‘माउंट आबू’ कर दिया गया। ऐतिहासिक रूप से यह स्थान गुर्जरों या गुज्जरों द्वारा बसाया गया और अर्बुदा पर्वत के साथ इनका जुड़ाव इस क्षेत्र में पाए जाने वाले शास्त्रों और शिलालेखों में दिखता है।

माउंट आबू में पर्यटन स्थलों का भ्रमण
इस स्थान के प्रमुख पर्यटन स्थल नक्की झील, सनसेट पॉइंट, टोड रॉक, अबू रोड का शहर, गुरू शिखर चोटी और माउंट आबू वन्य जीवन अभयारण्य हैं। माउंट आबू में धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के अनेक स्मारक हैं जिनमें मुख्य रूप से दिलवारा के जैन मंदिर, आधार देवी मंदिर, दूध बावडी, श्री रघुनाथ जी मंदिर और अचलगढ़ किला आते हैं।

माउंट आबू पहुँचना
माउंट आबू रास्ते, रेल और वायुमार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। वायुमार्ग द्वारा यहाँ पहुँचने के लिए पर्यटक उदयपुर की उड़ान ले सकते हैं जो यहाँ से लगभग 185 किमी. की दूरी पर है। यहाँ वर्ष भर मौसम खुशनुमा रहता है हालांकि इस स्थान की सैर के लिए गर्मियों का मौसम सबसे अच्छा है।


नक्की झील, माउंट आबू Nakki Lake, Mount Abu
नक्की झील माउंट आबू का एक अन्य लोकप्रिय पर्यटन स्थल है जहाँ अनेक पर्यटक और स्थानीय लोग आते हैं। यह 1200 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और भारत की एकमात्र कृत्रिम झील है। यह एक सुंदर और शांत स्थान है जिसकी पृष्ठभूमि में सुरम्य पहाडियाँ हैं। इस झील का नाम एक किवदंती के आधार पर पड़ा जिसके अनुसार इस झील की खुदाई देवों ने अपने नाखूनों से की थी जिससे वे दुष्ट राक्षसों से अपनी रक्षा कर सकें। एक अन्य किवदंती के अनुसार इस झील की खुदाई दिलवारा जैन मंदिर के एक मूर्तिकार रसिया बालम ने एक रात में की थी। पर्यटक गाँधी घाट का भ्रमण भी कर सकते हैं जो महात्मा गाँधी की याद में बनाया गया था। 12 फरवरी 1948 को उनकी राख इस झील में विसर्जित की गई। इस झील के पास कई चट्टानी पर्वत हैं जो पर्यटकों और साहसिक कार्यों के प्रेमियों को रॉक क्लाइम्बिंग का अवसर प्रदान करते हैं। इसके अलावा आप यहाँ बोटिंग(नाव की सवारी) भी कर सकते हैं और इस झील के शांत और स्थिर पानी का आनंद उठा सकते हैं।


सनसेट पॉइंट, माउंट आबू Sunset Point, Mount Abu
सनसेट पॉइंट माउंट आबू का शाम के पर्यटन का प्रमुख आकर्षण है जो नक्की झील के दक्षिण पश्चिम में स्थित है। इस स्थान की पृष्ठभूमि में सुंदर पहाड़ हैं, जो देखने में सुंदर लगते हैं, विशेषत: सूर्यास्त के समय। गर्मियों के मौसम में यह स्थान पर्यटन का एक लोकप्रिय आकर्षण रहता है क्योंकि बड़ी संख्या में यात्री इस स्थान के आरामदायक ठंडे परिवेश का आनंद उठाने के लिए यहाँ आते हैं। शॉपिंग में रूचि रखने वाले लोग पास स्थित हनीमून पॉइंट पर जा सकते हैं जो अपनी शिल्पकृतियों और खाने के स्थानों के लिए प्रसिद्द है। इस स्थान से पर्यटक यादगार के रूप में छोटी लकड़ी की मूर्तियाँ, आभूषण और खिलौने खरीद सकते हैं।


अबू रोड़, माउंट आबू Abu Road, Mount Abu
अबू रोड़, राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित एक शहर है। यह माउंट आबू के दक्षिण पूर्व में स्थित है। पहले यह शहर खराड़ी के नाम से जाना जाता था। अबू रोड़ सिरोही जिले का सबसे बड़ा शहर है जो समुद्र सतह से औसतन 263 मीटर की ऊँचाई पर बनास नदी के किनारे स्थित है। अबू रोड़ के कुछ प्रमुख पर्यटन आकर्षण गणेश मंदिर, ब्रह्म कुमारी आश्रम, चन्द्रावती मंदिर और भद्रकाली मंदिर हैं।


अंचलगढ़, माउंट आबू  Achalgarh, Mount Abu
अंचलगढ़ राजमाची में स्थित एक छोटा गाँव है। यह अंचलगढ़ किले के लिए प्रसिद्द है जो माउंट आबू से 11 किमी. की दूरी पर स्थित है। वे पर्यटक जो इस हिल स्टेशन की सैर के लिए आते हैं वे अंचलगढ़ किले के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के कारण यहाँ अवश्य आते हैं। मूल रूप से परमार वंश के राजाओं द्वारा बनाए गए इस किले का पुनर्निर्माण ईसा पश्चात 1452 में मेवाड़ के राजा राणा कुम्भा द्वारा किया गया।. अंचलगढ़ किले के परिसर में अंचलेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। ऐसा विश्वास है कि इस मंदिर में स्थित चट्टान पर भगवान के पदचिन्ह हैं। इस मंदिर में भगवान शिव के बैल नंदी की पीतल की बड़ी मूर्ति और पत्थर की भैसों की तीन बड़ी मूर्तियाँ भी स्थित है। इस किले में कई जैन मंदिर भी हैं जो इस स्थान के धार्मिक महत्व को बढ़ाते हैं। मंदिर के दो मुख्य प्रवेश द्वार हैं एक हनुमानपोल और दूसरा चंपापोल। अंचलगढ़ किले का निर्माण शत्रुओं से इस क्षेत्र से रक्षा करने के लिए बनाया गया था जिससे निवासी सुरक्षित रह सकें।

अचलगढ़ क़िला
माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है। माउंट आबू में अनेक पर्यटन स्थल हैं। इनमें कुछ शहर से दूर हैं तो कुछ शहर के आसपास ही हैं। दिलवाड़ा के मंदिरों से 8 किलोमीटर उत्तर पूर्व में यह क़िला और मंदिर स्थित हैं। राजस्थान में आबू के निकट अवस्थित अचलगढ़ पूर्व मध्यकाल में मालवा के परमारों की राजधानी रहा है। अचलगढ़ क़िला मेवाड़ के राजा राणा कुंभा ने एक पहाड़ी के ऊपर बनवाया था। परमारों एवं चौहानों के इष्टदेव अचलेश्वर महादेव का प्राचीन मन्दिर अचलगढ़ में ही है। पहाड़ी के तल पर 15वीं शताब्दी में बना अचलेश्वर मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है।
कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव के पैरों के निशान हैं।
नज़दीक ही 16वीं शताब्दी में बने काशीनाथ जैन मंदिर भी हैं।
अचलगढ़ से प्राप्त एक शिलालेख से आबू के परमारों एवं सोलंकियों के इतिहास का अभिज्ञान होता है।
इस शिलालेख से यह ज्ञात होता है, कि दिलवाड़ा के विश्व प्रसिद्ध मन्दिर के निर्माताओं- यथा वस्तुपाल एवं तेजपाल ने जैन होने पर भी कई शिव मन्दिरों का उद्धार करवाया था।
इतिहास
मालवा के परमार राजपूत मूलरूप से अचलगढ़ और चन्द्रावती के रहने वाले थे। 810 ई. के लगभग उपेंद्र अथवा कृष्णराज परमान ने इस स्थान को छोड़कर मालवा में पहली बार अपनी राजधानी स्थापित की थी। इससे पहले बहुत समय तक अचलगढ़ में परमारों का निवासस्थान रहा था।


ब्रह्म कुमारी आध्यात्मिक विश्वविद्यालय, माउंट आबू
माउंट आबू में स्थित ब्रह्म कुमारी आध्यात्मिक विश्वविद्यालय विश्व प्रसिद्द सामाजिक – आध्यात्मिक शैक्षणिक संस्था है। यह विश्वविद्यालय ब्रह्म कुमारी विश्व आध्यात्मिक संस्था के प्रशासन के अधीन है। इसकी स्थापना 1936 में विश्व शान्ति और भाईचारे का प्रचार करने के उद्देश्य से की गई।इस विश्वविद्यालय में कई पाठ्क्रम जैसे ध्यान, योग, अध्यात्म आदि सिखाए जाते हैं। ब्रह्म कुमारी आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के 132 देशों में लगभग 8500 केंद्र हैं। विश्वभर में इसके 8,00,000 सदस्य हैं।


आधार देवी मंदिर, माउंट आबू Adhar Devi Temple, Mount Abu
आधार देवी मंदिर माउंट आबू का अन्य लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यह मंदिर ऊँची चोटी पर बना है और देवी दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर एक गुफ़ा के अंदर स्थित है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए भक्त 365 सीढियां चढ़कर यहाँ आते हैं जिसमें प्रत्येक सीढ़ी एक वर्ष के एक दिन का प्रतीक है। लंबी यात्रा भक्तों को रोक नहीं पाती जो बड़ी संख्या में यहाँ देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आते हैं।


दातदा सी वर्ल्ड, माउंट आबू Datda Sea World, Mount Abu
दातदा सी वर्ल्ड माउंट आबू में दिलवारा मंदिर की ओर जाने वाले रास्ते पर स्थित है। इसे भारत का सबसे बड़ा अक्वेरियम (मछलीघर) माना जाता है। यहाँ मछलियों का और समुद्री जीवों का बड़ा संग्रह पाया जाता है। दातदा सी वर्ल्ड में कई अन्य देशों जैसे सिंगापुर, नीदरलैंड, संयक्त राज्य अमेरिका, केन्या से लाई गई मछलियां भी हैं।
आज यह माउंट आबू का लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। दातदा सी वर्ल्ड के परिसर में एक संग्रहालय भी है। इस संग्रहालय में 10,000 से भी ज़्यादा समुद्री जीव पाए जाते हैं जो विभिन्न प्रकार, आकार और नाप के होते हैं।


दिलवारा जैन मंदिर, माउंट आबू
दिलवाड़ा जैन मंदिर राजस्थान राज्य के सिरोही ज़िले के माउंट आबू नगर में स्थित है। दिलवाड़ा मंदिर वस्तुतः पांच मंदिरों का समूह है। इन मंदिरों का निर्माण 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच में हुआ था। यह विशाल एवं दिव्य मंदिर जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित है।
इतिहास
दिलवाड़ा जैन मंदिर 11वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान चालुक्य राजाओं वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाईयों द्वारा 1231 ई. में बनवाया गया था। जैन वास्तुकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण-स्वरूप दो प्रसिद्ध संगमरमर के बने मंदिर जो दिलवाड़ा या देवलवाड़ा मंदिर कहलाते हैं इस पर्वतीय नगर के जगत् प्रसिद्ध स्मारक हैं। विमलसाह ने पहले कुंभेरिया में पार्श्वनाथ के 360 मंदिर बनवाए थे किंतु उनकी इष्टदेवी अंबा जी ने किसी बात पर रुष्ट होकर पाँच मंदिरों को छोड़ अवशिष्ट सारे मंदिर नष्ट कर दिए और स्वप्न में उन्हें दिलवाड़ा में आदिनाथ का मंदिर बनाने का आदेश दिया। किंतु आबूपर्वत के परमार नरेश ने विमलसाह को मंदिर के लिए भूमि देना तभी स्वीकार किया जब उन्होंने संपूर्ण भूमि को रजतखंडों से ढक दिया। इस प्रकार 56 लाख रूपय में यह ज़मीन ख़रीदी गई थी। दिलवाड़ा जैन मंदिर प्राचीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के र्तीथकरों को समर्पित हैं।

प्रवेश द्वार
दिलवाड़ा जैन मंदिर का प्रवेशद्वार गुंबद वाले मंडप से हो कर है जिसके सामने एक वर्गाकृति भवन है। इसमें छ: स्तंभ और दस हाथियों की प्रतिमाएं हैं। इसके पीछे मध्य में मुख्य पूजागृह है जिसमें एक प्रकोष्ठ में ध्यानमुद्रा में अवस्थित जिन की मूर्ति हैं।

दिलवाड़ा जैन मंदिर, माउंट आबू
इस प्रकोष्ठ की छत शिखर रूप में बनी है यद्यपि यह अधिक ऊंची नहीं है। इसके साथ एक दूसरा प्रकोष्ठ बना है जिसके आगे एक मंडप स्थित है। इस मंडप के गुंबद के आठ स्तंभ हैं। संपूर्ण मंदिर एक प्रांगण के अंदर घिरा हुआ है जिसकी लंबाई 128 फुट और चौड़ाई 75 फुट है। इसके चतुर्दिक छोटे स्तंभों की दुहरी पंक्तियां हैं जिनसे प्रांगण की लगभग 52 कोठरियों के आगे बरामदा-सा बन जाता है।

स्थापत्य कला
जैन मंदिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने है। पाँच मंदिरों के इस समूह में विमल वासाही मन्दिर सबसे पुराना है। इन मंदिरों की अद्भुत कारीगरी देखने योग्य है। अपने ऐतिहासिक महत्त्व और संगमरमर पत्थर पर बारीक नक़्क़ाशी की जादूगरी के लिए पहचाने जाने वाले राज्य के सिरोही ज़िले के इन विश्वविख्यात मंदिरों में शिल्प-सौंदर्य का ऐसा बेजोड़ ख़ज़ाना है, जिसे दुनिया में अन्यत्र और कहीं नहीं देखा जा सकता। इस मंदिर में आदिनाथ की मूर्ति की आंखें असली हीरक की बनी हुई हैं। और उसके गले में बहुमूल्य रत्नों का हार है। यहाँ पाँच मंदिरों का एक समूह है, जो बाहर से देखने में साधारण से प्रतीत होते हैं। फूल-पत्तियों व अन्य मोहक डिजाइनों से अलंकृत, नक़्क़ाशीदार छतें, पशु-पक्षियों की शानदार संगमरमरीय आकृतियां, सफ़ेद स्तंभों पर बारीकी से उकेर कर बनाई सुंदर बेलें, जालीदार नक़्क़ाशी से सजे तोरण और इन सबसे बढ़कर जैन तीर्थकरों की प्रतिमाएं। विमल वसही मंदिर के अष्टकोणीय कक्ष में स्थित है।
बाहर से मंदिर नितांत सामान्य दिखाई देता है और इससे भीतर के अद्भुत कलावैभव का तनिक भी आभास नहीं होता। किंतु श्वेत संगमरमर के गुंबद का भीतरी भाग, दीवारें, छतें तथा स्तंभ अपनी महीन नक़्क़ाशी और अभूतपूर्व मूर्तिकारी के लिए संसार-प्रसिद्ध हैं। इस मूर्तिकारी में तरह-तरह के फूल-पत्ते, पशु-पक्षी तथा मानवों की आकृतियां इतनी बारीकी से चित्रित हैं मानो यहाँ के शिल्पियों की छेनी के सामने कठोर संगमरमर मोम बन गया हो। पत्थर की शिल्पकला का इतना महान् वैभव भारत में अन्यत्र नहीं है। दूसरा मंदिर जो तेजपाल का कहलाता है, निकट ही है और पहले की अपेक्षा प्रत्येक बात में अधिक भव्य और शानदार दिखाई देता है। इसी शैली में बने तीन अन्य जैन-मन्दिर भी यहाँ आसपास ही हैं। किंवदंती है कि वशिष्ठ का आश्रम देवलवाड़ा के निकट ही स्थित था।

अन्य मंदिर
यहाँ के पांच मंदिरों में दो विशाल मंदिर है तथा तीन मंदिर उसके अनुपूरक है। यहाँ पर विमल वासाही मंदिर प्रथम तीर्थंकर को समर्पित सबसे प्राचीन है, बाइसवें तीर्थंकर नेमीनाथ को समर्पित लुन वासाही मंदिर भी बहुत दर्शनीय है। यहाँ पर भगवान कुंथुनाथ का दिगम्बर जैन मंदिर भी स्थापित है। यहाँ पर एक अदभुत देवरानी जेठानी का मंदिर भी है जिसमें परमपूजनीय भगवान आदिनाथ एवं शान्तिनाथ जी की मूर्तियां स्थापित है। यहाँ के मंदिर परिसर में खरतरसाही, पीतलहर और भगवान महावीर का मंदिर भी स्थित है इनमें भगवान महावीर स्वामी का मंदिर सबसे छोटा बना हुआ है।


दत्तात्रय मंदिर, माउंट आबू Dattatreya Temple, Mount Abu
दत्तात्रय मंदिर गुरू दत्तात्रय को समर्पित है। यह अरावली श्रृंखला की सबसे ऊँची चोटी गुरू शिखर पर स्थित है। ऐसा विश्वास है कि भगवान दत्तात्रय दिव्य त्रिमूर्ति भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव के अवतार हैं। इसके अलावा पर्यटक गुरू दत्तात्रय की माता अहिल्या को समर्पित मंदिर का भ्रमण भी कर सकते हैं। यह मंदिर गुरू शिखर के उत्तर पश्चिम में स्थित है।


दूध बावडी, माउंट आबू Doodh Baori, Mount Abu
दूध बावडी आधार देवी मंदिर की तलहटी में स्थित है जो एक पवित्र कुआँ हैं और माउंट आबू के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। इसका नाम दूध बावडी इसलिए पड़ा क्योंकि इस कुएं में जो पानी है उसका रंग दूध की तरह है। इस कुएं के पानी के रंग के साथ कई किवदंतियाँ जुड़ी हुई हैं। एक ऐसी ही किवदंती के अनुसार यह कुआँ देवी देवताओं के लिए दूध का स्त्रोत है। स्थानीय निवासियों द्वारा इस पानी को पवित्र माना जाता है।उनका यह विश्वास है कि कुएं के पानी में कुछ जादुई शक्तियां हैं। अनेक भक्त इस कुएं को गायों की देवी कामधेनु का प्रतीक भी मानते हैं।



गुरू शिखर चोटी, माउंट आबू Guru Shikhar Peak, Mount Abu
गुरू शिखर चोटी अरावली क्षेत्र की सबसे ऊँची चोटी है जो माउंट आबू से 15 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह 1722 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। पर्यटक इस भव्य शानदार चोटी पर पैदल ही जाते हैं। यात्री पहाड़ की चोटी से अरावली क्षेत्र का पूरा दृश्य देख सकते हैं। गुरू दत्तात्रय मंदिर एक प्राचीन मंदिर है जो इस पर्वत की चोटी पर स्थित है।यह मंदिर भगवान दत्तात्रय को समर्पित है जो दिव्य त्रिमूर्ति भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं। इस पर्वत पर स्थित अन्य मंदिर शिव मंदिर, मीरा मंदिर और चामुंडी मंदिर है। इन मंदिरों के अलावा यहाँ वेधशाला भी है जहाँ से खगोलीय पिंडों की भूमि आधारित अवरक्त टिप्पणियाँ की जा सकती हैं। वेधशाला फिज़िकल रिसर्च लेबोरेटरी (पीआरएल) के प्रशासन के अधीन है।


हनीमून पॉइंट, माउंट आबू Honeymoon Point, Mount Abu
हनीमून पॉइंट समुद्र सतह से 1220 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह नक्की झील के उत्तर पूर्व में स्थित है और इसे अनादरा पॉइंट भी कहा जाता है। यहाँ से सूर्यास्त का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। इस स्थान को हनीमून पॉइंट भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ पर एक चट्टान है जिसका आकार एक स्त्री और एक पुरुष के जैसा है।


मोगली लैंड, माउंट आबू Mogli Land, Mount Abu
अभी कुछ समय पहले ही माउंट आबू में आरन गाँव से 800 मीटर दूर पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले हैं। वन अधिकारियों के एक समूह को इस स्थान की खुदाई के दौरान प्राचीन बर्तन और ईंटें मिली हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि ये अवशेष 1000 वर्ष से भी ज़्यादा पुराने हैं जो उस समय के यात्रियों के आराम करने की जगह थी। अब इस स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। इस स्थान को मोगली लैंड कहा जाता है क्योंकि जंगल का यह स्थान रुडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्द पुस्तक ‘द जंगल बुक’ के चित्र से मिलता जुलता है। इस पुस्तक में प्रमुख किरदार ‘मोगली’ था।


ऋषिकेश मंदिर, माउंट आबू Rishikesh Temple, Mount Abu
ऋषिकेश मंदिर एक प्राचीन मंदिर है जो अर्धचंद्राकार पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण लगभग 7000 वर्ष पूर्व राजा अमरीश ने किया था, जिसने माउंट आबू में अमरावती सभ्यता की स्थापना की। इस मंदिर का नाम राजा अमरीश के इष्ट देवता भगवान ऋषिकेश के नाम पर पड़ा। किवदंती के अनुसार राजा 100 अश्वमेघ यज्ञ करने में सफल हुआ जिससे भगवान इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने राजा पर आक्रमण कर दिया। हालांकि भगवान ऋषिकेश ने राजा अमरीश को भगवान इंद्र के क्रोध से बचा लिया।


माउंट आबू वन्य जीवन अभयारण्य, माउंट आबू
Mount Abu Wildlife Sanctuary, Mount Abu
इस हिल स्टेशन की सैर के लिए आने वाले पर्यटकों के लिए माउंट आबू वन्य जीवन अभयारण्य एक अवश्य देखने योग्य स्थान है। यह अभ्यारण्य अरावली पर्वत श्रेणियों में स्थित है और यह 19 किमी. लंबे और 5 – 8 किमी. चौड़े पठार पर स्थित है। 1960 में इसे वन्य जीवन अभ्यारण्य घोषित किया गया। यहाँ पर्यटक विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ और जीवजन्तु देख सकते हैं
जो प्रकृति प्रेमियों और वन्य जीवन उत्साहियों के लिए एक दावत के समान है। माउंट आबू वन्य जीवन अभयारण्य में फूलों की विविधता पाई जाती है। यहाँ लगभग 820 प्रजाति के पौधे पाए जाते हैं। यहाँ ऑर्किड फूलों की बड़ी विविधता
भी पाई जाती है। हरियाली से घिरे होने के अलावा यह अभयारण्य अपने जीवजन्तुओं के लिए भी प्रसिद्द है। वन्यजीव प्रेमी यहाँ अनेक अद्वितीय और दुर्लभ प्रजातियों के जानवर देख सकते हैं। पहले इन पहाड़ों पर शेर और बाघ मिलते थे परंतु अब यहाँ केवल तेंदुएं मिलते हैं। फिर भी यहाँ अन्य जंगली प्रजातियां जैसे सांबर डियर, जंगली सुअर, भालू, सियार, भारतीय लोमड़ी, भेड़िया, हायना, छोटी भारतीय सीविट और जंगली बिल्ली पाए जाते हैं।


शंकर मठ, माउंट आबू  Shankar Math, Mount Abu
शंकर मठ एक भव्य पत्थर से बना हुआ शिवलिंग है जो भगवान शिव को समर्पित है। इसका निर्माण लगभग 25 वर्ष पूर्व हुआ था। यह स्थान माउंट आबू के मुख्य बाज़ार के पास स्थित है। शंकर मठ माउंट आबू का प्रसिद्द धार्मिक आकर्षण है जिसका नेतृत्व स्वामी महेशानंदजी गिरी करते हैं।


श्री रघुनाथ जी मंदिर, माउंट आबू  Shri Raghunath Ji Temple, Mount Abu
श्री रघुनाथ जी मंदिर माउंट आबू का एक महत्वपूर्ण धार्मिक आकर्षण है जो नक्की झील के किनारे स्थित है। कह जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 14 वीं शताब्दी में हिंदू पंडित श्री रामानंद ने करवाया था। भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर में बड़ी संख्या में वे भक्त आते हैं जो हिंदू धर्म के वैष्णव पंथ के अनुयायी हैं। भित्ति चित्रों और जटिल नक्काशियों से सुसज्जित यह मंदिर मारवाड़ की संस्कृति और वास्तुकला की विरासत का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण श्री रघुनाथ जी की भव्य मूर्ति है। भक्तों के अलावा यहाँ प्रतिदिन बड़ी संख्या में पर्यटक भी आते हैं। नक्की झील का भ्रमण करने के लिए आने वाले पर्यटक श्री रघुनाथ जी मंदिर का भ्रमण भी करते हैं ताकि वे स्थापत्य प्रतिभा के गवाह बन सकें।


टोड रॉक, माउंट आबू  Toad Rock, Mount Abu
टोड रॉक माउंट आबू का एक जाना माना पर्यटन स्थल है जो नक्की झील के पास स्थित एक बड़ी चट्टान है। यह पहाड़ी शहर से मुख्य ट्रेकिंग के रास्ते पर स्थित है। इस बुलंद चट्टान का आकार मेंढक से मिलता है अत: इसे टोड रॉक कहा जाता है।इसके अलावा इस टोड रॉक के आसपास कई चट्टानी संरचनाएँ हैं जिनमें प्रमुख रूप से कैमल रॉक, नंदी रॉक और नून रॉक आते हैं। ये चट्टानें ट्रेकिंग के लिए उपयुक्त है। इस चट्टानों के ऊपर पहुँचने पर ट्रैकर्स (पदयात्री) नक्की झील और उसके परिवेश का सुंदर दृश्य देख सकते हैं।


ट्रेवोर्स टैंक, माउंट आबू Trevor's Tank, Mount Abu
ट्रेवोर्स टैंक माउंट आबू का एक जाना माना पर्यटन स्थल है। यह माउंट आबू के मुख्य शहर से 5 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस स्थान का नाम ब्रिटिश इंजीनियर ट्रेवोर के नाम पर पड़ा जिसने इसे बनाया था। इस टैंक का उपयोग मगरमच्छों के प्रजनन के लिए किया जाता था। आज यह एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल है। यहाँ कई पक्षी जैसे कबूतर, मोर, तीतर देखे जा सकते हैं। यहाँ की सुंदरता का आनंद के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक यहाँ आते हैं।


गोमुख मंदिर Gaumukh-Temple-Mount-Abu
माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है। माउंट आबू में अनेक पर्यटन स्थल हैं। इनमें कुछ शहर से दूर हैं तो कुछ शहर के आसपास ही हैं। गोमुख मंदिर परिसर में गाय की एक मूर्ति है जिसके सिर के ऊपर प्राकृतिक रूप से एक धारा बहती रहती है। इसी कारण इस मंदिर को गोमुख मंदिर कहा जाता है। संत वशिष्ठ ने इसी स्थान पर यज्ञ का आयोजन किया था। मंदिर में अरबुआदा सर्प की एक विशाल प्रतिमा है। संगमरमर से बनी नंदी की आकर्षक प्रतिमा को भी यहाँ देखा जा सकता है। गुरु शिखर पर एक घंटा लगा हुआ है जिसे हर पर्यटक बजाता है। दूर तक फैली उसकी गूंज में एक आनंद है। यहाँ से आसपास का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है।


अर्बुदा देवी मन्दिर Arbuda Devi Temple
अर्बुदा देवी मन्दिर राजस्थान राज्य के माउंट आबू शहर के पहाड़ के ऊपर स्थित है। जैन ग्रन्थ विविधतीर्थकल्प के अनुसार आबूपर्वत की तलहटी में अर्बुद नामक नाग का निवास था, इसी के कारण यह पहाड़ आबू कहलाया। इसका पुराना नाम नंदिवर्धन था। पहाड़ के पास मन्दाकिनी नदी बहती है और श्रीमाता अचलेश्वर और वशिष्ठाश्रम तीर्थ हैं अर्बुद-गिरि पर परमार नरेशों ने राज्य किया था जिनकी राजधानी चंद्रावती में थी। इस जैन ग्रन्थ के अनुसार विमल नामक सेनापति ने ऋषभदेव की पीतल की मूर्ति सहित यहाँ एक चैत्यबनवाया था और 1088 विक्रम संवत में उसने विमल-वसति नामक एक मंदिर बनवाया 1288 विक्रम संवत में राजा के मुख्य मंत्री ने नेमि का मंदिर- लूणिगवसति बनवाया। 1243 विक्रम संवत में चंडसिंह के पुत्र पीठपद और महनसिंह के पुत्र लल्ल ने तेजपाल द्वारा निर्मित मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। इसी मूर्ति के लिए चालुक्यवंशी कुमारपाल भूपति ने श्रीवीर का मन्दिर बनवाया था। अर्बुद का उल्लेख एक अन्य जैन ग्रन्थ तीर्थमाला चैत्यवन्दन में भी मिलता है-​














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