दौसा का सफर

कच्छवाह राजपूतों की पहली राजधानी
जयपुर से 54 किमी. दूर दौसा राजस्थान का एक ऐतिहासिक नगर है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग 11 पर स्थित है। दौसा का नाम पास ही की देवगिरी पहाड़ी के नाम पर पड़ा। दौसा कच्छवाह राजपूतों की पहली राजधानी थी। इसके बाद ही उन्होंने आमेर और बाद में जयपुर को अपना मुख्यालय बनाया। 1562 में जब अकबर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जियारत को गए तब वे दौसा में रुके थे।

दौसा में ऐतिहासिक महत्व के अनेक स्थान है जो यहां के प्राचीन साम्राज्य की याद दिलाते हैं। यहां पर मेहंदीपुर बालाजी और नीलकंठ आदि मंदिर भी हैं जहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।


अभनेरी
अभनेरी पुरा गुप्त काल या आरंभिक मध्यकालीन स्मारकों के लिए जाना जाता है। यह जिला मुख्यालय से करीब 33 किमी. दूर बंदीकुई की ओर स्थित है। चांद बावड़ी और हर्षत माता का मंदिर यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। मंदिर में पत्थरों पर की गई नक्काशी देखने योग्य है जबकि सीढ़ीनुमा बावड़ी की कलात्मकता और वास्तुशिल्प की कुशलता देखते ही बनती है।

भांडारज
भांडारज दीवारों, मूर्तियों, टैराकोटा कलाकारी आदि के लिए प्रसिद्ध है। यह दौसा शहर से करीब 10 किमी. दूर राष्ट्रीय राजमार्ग  11 पर स्थित है। यहां का मुख्य आकर्षण भांडारज बावड़ी है। बावड़ी में 150 सीढ़ियां हैं जो मुख्य कुंए की तरफ जाती हैं। यहां का होटल भद्रावती पैलेस भी दर्शनीय है। यह महल मुगल और राजपूत वास्तुकला का अद्भुत मिश्रण है। आंगन, खिड़कियों और बरामदों में परंपरागत शैली का रूप देखा जा सकता है।

झाझीरामपुर
झाझीरामपुर प्राकृतिक कुंड और रुद्र, बालाजी तथा अन्य देवी-देवताओं के मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान दौसा शहर से 45 किमी. दूर है। पहाड़ियों से घिरी इस जगह की प्राकृतिक और आध्यात्मिक सुंदरता मन को सुकून पहुंचाती है।

मेहंदीपुर बालाजी
मंदिर श्री मेहंदीपुर बालाजी घंटा मेहंदीपुर में स्थित है। हनुमान जी को समर्पित इस मंदिर का निर्माण श्रीराम गोस्वामी ने करवाया था। हनुमान जयंती, जन्माष्टमी, जल झूलनी एकादशी, दशहरा, शरद पूर्णिमा, दीवाली, मकर सक्रांति, महाशिवरात्रि, होली और रामनवमी यहां धूमधाम से मनाए जाते हैं। मंदिर के बारे में माना जाता है कि यहां प्रेतराज भूत-प्रेत से संकटग्रस्त लोगों का इलाज करते हैं। दुनिया भर में विज्ञान के क्षेत्र में हुई प्रगति के बावजूद बड़ी संख्या में लोग इस प्रकार की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए यहां आते हैं।

माताजी का मंदिर
माताजी के मंदिर को सचिनी देवी के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह दौसा का एक प्राचीन मंदिर है। देवी दुर्गा को समर्पित इस मंदिर में 12वीं शताब्दी की दुर्लभ मूर्तिकला को देखा जा सकता है।




नीलकंठ और पंच महादेव
दौसा को देवनगरी के नाम से भी जाना जाता है। दौसा के मंदिर में भगवान शिव के पांच रूप, सहजनाथ, सोमनाथ, गुप्तेश्‍वर और नीलकंठ, विराजमान हैं। पठार के ऊपर स्थित नीलकंठ मंदिर प्राचीन भव्यता और आध्यात्म का प्रतीक है। यहां का रोपवे भी पर्यटकों को आकर्षित करता है।

कैसे जाएं
वायु मार्ग: नजदीकी हवाई अड्डा जयपुर 56 किमी. दूर है।
रेल मार्ग: यह जिला रेल मार्ग के जरिए देश के बाकी हिस्सों से जुड़ा है। यहां पर बंदीकुई का महत्वपूर्ण जंक्शन भी है। 2915- आश्रम एक्सप्रेस, 2414- जम्मू जयपुर एक्सप्रेस और 2461- मंदोर एक्सप्रेस यहां से होकर गुजरती हैं।
सड़क मार्ग: बीकानेर और अगरा को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 11 दौसा जिले से होकर गुजरता है।

दौसा- एक नजर में
राज्य: राजस्थान
क्षेत्रफल: 3404.78 वर्ग किमी.
कब जाएं: अक्टूबर से मार्च



Comments

Popular posts from this blog

झुंझनू का सफर

पिलानी का सफर

झालावाड़ का सफर